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तीसइमं सयं
पढमो उद्देसो । १. [प्र०] कइ णं भंते ! समोसरणा पन्नत्ता ? [उ०] गोयमा ! चत्तारि समोसरणा पन्नत्ता, तंजहा-किरियावादी, अकिरियावादी, अन्नाणियवाई, वेणइयवाई।
२. [प्र०] जीवा णं भंते ! किं किरियावादी, अकिरियावादी, अन्नाणियवादी, वेणइयवादी ? [उ०] गोयमा ! जीवा किरियावादी वि, अकिरियावादी वि, अन्नाणियवादी वि, वेणइयवादी वि।।
३. [प्र०] सलेस्सा णं भंते ! जीवा किं किरियावादी-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! किरियावादी वि, अकिरियावादी वि, अन्नाणियवादी वि, वेणइयवादी वि । एवं जाव-सुक्कलेस्सा।
त्रीशमुं शतक
प्रथम उद्देशक. समवसरण. १. [प्र०] हे भगवन् ! केटला *समवसरणो-मतो-कह्या छे ? [उ०] हे गौतम ! चार समवसरणो कह्या छे. ते आ प्रमाणे
१ क्रियावादी, २ अक्रियावादी, ३ अज्ञानवादी अने ४ विनयवादी. जीवो भने क्रियावा- २. [प्र०] हे भगवन् ! शुं जीवो क्रियावादी छे, अक्रियावादी छे, अज्ञानवादी छे के विनयवादी छे! [उ० हे गौतम ! जीवो
क्रियावादी छे, अक्रियावादी छे, अज्ञानवादी छे अने विनयवादी पण छे. सलेश्य जीवो अने ३. [प्र०] हे भगवन् ! शुं लेश्यावाळा जीवो क्रियावादी छे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! तेओ क्रियावादी छे, अक्रियावादी क्रियावादित्वादि.
छे, अज्ञानवादी छे अने विनयवादी पण छे. ए प्रमाणे यावत्-शुक्ललेश्यावाळा जीवो संबंधे समजबुं.
* अनेकप्रकारना परिणामवाळा जीवो जेने विषे रहे ते समवसरण-मत अथवा दर्शन कहेवाय छे. तेना चार प्रकार छे-१ क्रियावादी, २ अक्रियावादी, ३ अज्ञानवादी भने ४ विनयवावी. आ मतोना संबंधमा सविस्तर हकीकत मळी शकती नथी. सूत्रकृतांगना प्रथम श्रुतस्कन्धना पारमा समवसरण अध्ययनमा आ मतोनुं संक्षिप्त वर्णन छे. तेम ज आचारांगनी टीकामां तेना मेदप्रमेदोनुं वर्णन छे. (जुओ अध्य० १ उ. १५० १६) परन्तु ते उपरथी तेनी चोकस शी मान्यता हती ते स्पष्ट जाणी शकातुं नथी. तो पण एटलं तो जाणी शकाय छे के क्रियावादी वगेरे खतन्त्र मतो नहि होय, पण भगवान् महावीरना समयमा जे मतो प्रचलित हता ते बधानो पूर्वोक्त चार प्रकारमा समावेश कयों होय एम लागे छे. जेमके आत्माना अस्तित्वने माननारा बधा दर्शनो क्रियावादिमां गणी शकाय. तेवी रीते आत्माने क्षणिक माननारा बौद्धादि दर्शन अक्रियावादी कहेवाय.
१क्रियावादी-आ मतोनी भिन्न भिन्न व्याख्या छे. प्रथम व्याख्या प्रमाणे क्रिया कर्ता सिवाय संभवती नथी, माटे क्रियाना कर्ता तरीके आत्माना अस्तित्वने माननार क्रियावादी कहेवाय छे. बीजी व्याख्या प्रमाणे क्रिया प्रधान छे अने ज्ञान- कंइपण प्रयोजन नथी एवी क्रियाप्राधान्यनी मान्यतावाळा होय ते क्रियावादी. त्रीजी व्याख्या प्रमाणे जीवादिपदार्थना अस्तित्वने माननारा कियावादी कहेवाय छे. तेना एकसो एंशी प्रकार छे. तेओनो मत पण अभेदोपचारथी क्रियावादी कहेवाय छे.
२ अक्रियावादी-तेओर्नु एवं मन्तव्य छे के कोइ पण अनवस्थित पदार्थमा क्रिया होती नथी, जो तेमा क्रिया होय तो तेनी अनवस्थिति न होय माटे क्रियाना अभावने माननार अक्रियावादी छे. अथवा क्रियान शुं प्रयोजन छे? मात्र चित्तशुद्धि ज आवश्यक छे-एवी मान्यतावाळा अक्रियावादी कहेवाय छे.. अथवा जीवादिना नास्तित्वने माननारा अक्रियावादी कहेवाय छे. तेना चोराशी प्रकार छे.
३ अज्ञानवादी-अज्ञान श्रेयरूप छे, कारण के ज्ञानथी कर्मनो तीव्र बन्ध थाय छे अने अज्ञानपूर्वक कर्मबन्ध निष्फळ थाय छ-एवी मान्यतावाळा अज्ञानवादी कहेवाय छे. तेना सडसठ प्रकार छे.
४ विनयवादी-खर्गापवर्गादि श्रेयर्नु कारण विनय छ, विनयने ज प्रधानपणे माननारा अने जेने कोइ पण प्रकारचं निश्चित लिंग, आचार के शास्त्र नथी ते विनयवादी कहेवाय छे, तेना बत्रीश प्रकार छे. आ बधा मिथ्यादृष्टि छ, तो पण अहीं क्रियावादी जीवादिना अस्तित्वने मानता होवाथी सम्यग्दृष्टि जाणवा. विशेष माटे जुओ-(आचारांग अध्य. १०१ टीका प०१६).
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