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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक २६.-उद्देशक १.
३. [प्र०] कण्हलेस्से णं भंते ! जीवे पावं कम्मं किं बंधी-पुच्छा। [उ०] गोयमा ! अत्थेगतिए बंधी बंधा बंधिस्सर, अत्थेगतिए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ, एवं जाव-पम्हलेस्से । सम्वत्थ पढम-बितियभंगा। सुक्कलेस्से जहा सलेस्से तहेव चउभंगो।
४. [प्र०] अलेस्से णं भंते ! जीवे पावं कम्मं किं बंधी-पुच्छा । [उ०] गोयमा! बंधी न बंधा न बंधिस्सइ (२)। ५. [प्र०] कण्हपक्खिए णं भंते ! जीवे पावं कम्मं-पुच्छा । [उ०] गोयमा! अत्यंगतिए बंधी० पढम-बितिया भंगा । ६. [प्र०] सुक्कपक्खिए णं भंते ! जीवे-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! चउभंगो भाणियधो (३)। ७. सम्मइिट्ठीणं चत्तारि भंगा, मिच्छादिट्ठीणं पढम-बितिया, सम्मामिच्छादिट्ठीणं एवं चेव (४)।
८. नाणीणं चत्तारि भंगा, आभिणिबोहियणाणीणं जाव-मणपजवणाणीणं चत्तारि भंगा; केवलनाणीणं चरमो भंगो जहा अलेस्साणं (५)। अन्नाणीणं पढम-बितिया, एवं मइअन्नाणीणं, सुयअन्नाणीणं विभंगणाणीण वि (६)।
९. आहारसन्नोवउत्ताणं जाव-परिग्गहसन्नोवउत्ताणं पढम-बितिया, नोसन्नोवउत्ताणं चत्तारि (७)।
३. प्र०] हे भगवन् ! शुं कृष्णलेश्यावाळो जीव पूर्वे पापकर्म बांधतो हतो बांधे छे अने बांधशे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम | कोइ जीव पापकर्म बांधतो हतो, बांधे छे अने बांधशे अने कोइ जीव पाप कर्म बांधतो हतो, बांधे छे अने बांधशे नहि. ए प्रमाणे यावतपद्मलेश्यावाळा जीव सुधी समजवु. बधे स्थळे पहेलो अने बीजो-एम बे भांगा जाणवा. शुक्ललेश्यावाळाने लेश्यावाळा जीव संबन्धे
जेम *कयुं छे तेम चारे भांगा कहेवा. लेश्यारहित जीवने ४. प्र०] हे भगवन् ! शुं लेश्यारहित जीवे पाप कर्म बांध्यु हतु-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! ते जीव पूर्वे पाप कर्म बन्ध.
बांधतो हतो, अत्यारे नथी बांधतो अने बांधशे नहीं. ३ पाक्षिकद्वार- ५. [प्र०] हे भगवन् ! शुं कृष्णपाक्षिक जीव पूर्वे पाप कर्म बांधतो हतो-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! कृष्णपाक्षिक कोई कृष्ण पाक्षिकने आश्रयी बन्ध जीव पूर्वे पाप कर्म बांधतो हतो, बांधे छे अने बांधशे-ए रीते पहेलो अने बीजो भागो जाणवो. शुलपाक्षिकने आ. ६. [प्र०] हे भगवन् ! शुं शुक्लपाक्षिक जीव पाप कर्म बांधतो हतो-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! पूर्वोक्त चारे भांगा कहेवा. ४ दृष्टिद्वार
७. सम्यग्दृष्टि जीवोने चारे भांगा अने 'मिध्यादृष्टिजीवोने पहेलो अने बीजो-एम बे भांगा कहेवा. तथा सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवोने
विषे पण एमज जाणवु. ५-६ शान भने ८. ज्ञानीने चार भांगा, आभिनिबोधिक-मतिज्ञानी अने यावत्-मनःपर्यवज्ञानीने चार भांगा कहेवा, केवळज्ञानीने लेश्यारहित मशान
जीवनी पेठे एक छेल्लो भांगो कहेवो. अज्ञानी संबंधे पहेला बे भांगा, अने ए रीते मतिअज्ञानी, श्रुतअज्ञानी तथा विभंगज्ञानीने पण
बे भांगा जाणवा. ७ संशादार
९. ||आहारसंज्ञाथी मांडी यावत्-परिग्रहसंज्ञामां उपयुक्त जीवोने प्रथम अने बीजो भांगो समजवो. नोसंज्ञामा उपयुक्त जीवोने चारे भांगा जाणवा.
३ * सलेश्य जीवने चारे भांगा होय छे, कारण के शुक्ललेश्यावाळा जीवो पापकर्मना बन्धक पण होय छे. कृष्णादि पांच लेश्यावाळाने प्रथमना बेज भांगा होय छे, कारण के तेने वर्तमानकाळे मोहनीयरूप पापकर्मनो क्षय के उपशम नथी, तेथी तेने छेल्ला बे भांगा नथी होता.
५ जे जीवोने अर्धपुद्गलपरावर्तकाळथी अधिक संसार बाकी छे ते कृष्णपाक्षिक अने जेने अर्धपुद्गलपरावर्तथी अधिक संसार बाकी नथी पण तेनी अंदर जे मोक्षे जवाना छे ते शुक्लपाक्षिक कहेवाय छे. तेमां कृष्णपाक्षिकने आदिना बे भांगा होय छे. केमके वर्तमानकाळे तेनामां पापकर्मर्नु अबन्धकपणुं नथी. शुक्लपाक्षिकने चारे भांगा होय छ-१ पापकर्म बांध्यु हतुं, बांधे छे अने बांधशे-आ प्रथम भंग प्रश्नसमयनी अपेक्षाए अनन्तर (तुरतना) भविष्य समयने आश्रयी छे. २ बांध्यु हतुं, बांधे छे अने बांधशे नहिं-आ बीजो भंग पछीना भविष्य समयमा क्षपकपणानी प्राप्तिनी अपेक्षाए जाणवो. ३ बांध्यु हतुं, बांधतो नथी पण बांधशे-आ त्रीजो भंग जे मोहनीय कर्मनो उपशम करी पछी पडवानो होय तेनी अपेक्षाए छे, अने ४ 'बांध्य हतं बांधतो नथी अने बांधशे नहि'-आ चोथो भंग क्षपकपणानी अपेक्षाए होय छे.
कृष्णपाक्षिकने 'बांधशे नहि' ए अंशनो असंभव होवा छता पण बीजो भांगो मानेलो छे तो शुक्लपाक्षिकने उपर कहेल 'बांधशे नहि'-ए अंशनो अवश्य संभव होवाथी 'बांधशे' ए अंशघटित प्रथम भांगो केम घटे? आ प्रश्नना उत्तरमा शुक्लपाक्षिकने प्रश्नसमयना अनन्तर (पछीना) समयनी अपेक्षाए प्रथम भांगो, अने कृष्णपाक्षिकने बाकीना समयनी अपेक्षाए बीजो भांगो होय छे.
१ सम्यग्दृष्टि जीवोने शुक्लपाक्षिकनी पेठे चारे भांगा होय छे, अने मिथ्यादृष्टि तथा मिश्रदृष्टिने आदिना बेज भांगा होय छे. कारण के तेओने मोहनो बन्ध होवाथी छेल्ला बे भांगा होता नथी. - ८ केवलज्ञानीने वर्तमान अने भविष्यत्काळमां बन्ध थतो नथी तेथी तेने एक छेल्लो भागो होय छे.
अज्ञानीने मोहनीय कर्मनो क्षय अने उपशम नहि होवाथी पहेलो अने बीजो भांगो होय छे. ९|| आहारादिनी संज्ञा-आसक्तिवाळा जीवोने क्षपकपणुं अने उपशमकपणुं नहि होवाथी पहेलो अने बीजो भांगो होय छे. नोसंज्ञामां-आहारादिनी अनासक्तिमा उपयोगवाळा जीवोने मोहनीयनो क्षय तथा उपशमनो संभव होवाथी चारे भांगाओ संभवे छे.
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