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छवीसतिमं सयं ।
नमो सुयदेवयाए भगवईए। १जीवा य २ लेस्स ३ पक्खिय ४ दिद्वि ५ अन्नाण ६ नाण ७ सन्नाओ। ८ वेय ९. कसाए १० उवओग ११ जोग १२ एकारस वि ठाणा ॥
पढमो. उद्देसो। १. [प्र.] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव-एवं वयासी-जीवे गं भंते ! पावं कम्मं किं बंधी बंधा बंधिस्सह १ बंधी बंधइण बंधिस्सइ २, बंधी न बंधइ बंधिस्सइ ३, बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ ४१ [उ०] गोयमा! अत्थेगतिए बंधी 'बंधड बंधिस्सइ १, अत्थेगतिए बंधी बंधइ ण बंधिस्सइ २, अत्थेगतिए बंधीण बंधइ बंधिस्सइ ३, अत्थेगतिए बंधी ण बंधइ ण बंधिस्सई ४ (१)।
२. [प्र०] सलेस्से.णं भते.! जीवे पावं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ १, बंधी बंधइ ण बंधिस्सइ २-पुच्छा। [उ.] गोयमा! अत्यंगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ १, अत्थेगतिए-एवं चउभंगो।
छवीशमुं शतक - आ शतकमा अगियार उद्देशको छे अने तेमा प्रत्येक उद्देशके (१) जीवो, (२) लेश्याओ, (३) पाक्षिको (शुक्लपाक्षिको अने कृष्णपाक्षिको), (४) दृष्टि, (५) अज्ञान, (६) ज्ञान, (७) संज्ञा, (८) वेद, (९) कषाय, (१०) योग अने (११) उपयोग-एम अगियार स्थानो-विषयोने आश्रयी बन्धवक्तव्यता कहेवानी छे.
प्रथम उद्देशक. [सामान्य जीव अने नैरयिकादि चोवीश दंडकने आश्रयी उपर कहेला अगियार द्वारवड़े पापकर्म अने ज्ञानावरणीयादि आठ कर्मनी बन्धवक्तव्यता-]
१. प्र०] ते काले, ते समये राजगृह नामना नगरमा [भगवान् गौतम] यावत्-आ प्रमाणे बोल्या हे भगवन् ! शुं जीवे जीवद्वारपापकर्म बांध्युं, बांधे.छे अने बांधशे ? २ अथवा शुं जीवे पापकर्म बांध्यू, बांधे छे अने नहीं बांधशे ? ३ अथवा शुं जीवे पापकर्म
सामान्य जीवने
१ .२ मा जान पापका आश्रयी पापकर्मनी बांध्यु, नथी बांधतो अने बांधशे ? अथवा ४ शुं जीवे पापकर्म बांध्ये नथी बांधतो अने नहीं बांधशे ? [उ.] हे गौतम ! १ *कोइ - बन्धवक्तव्यता. जीवे पापकर्म बांध्युं छे, बांधे छे अने बांधशे, २ कोइ जीवे पापकर्म बांध्युं छे, बांधे छे अने बांधशे नहीं, ३ कोइ जीवे पाप कर्म बांध्यं छे, नथी बांधतो अने बांधशे तथा ४ कोइ जीवे पाप कर्म बांध्यु छे, नथी बांधतो अने बांधशे. नहीं.
२. प्र०] हे भगवन् ! शुं लेश्यावाळा. जीवे पापकर्म बांध्यु छे, बांधे छे अने बांधशे ? अथवा शुं तेणे पाप कर्म बांध्यु छे, बांधे २ लेश्याद्वारछे अने बांधशे नहीं-इत्यादि प्रश्न. उ०] हे गौतम ! कोइ लेश्यावाळो जीव पाप कर्म बांधतो हतो, बांधे छे अने बांधशे-इत्यादि चार
सलेश्य जीवने
आषयी बन्ध. भांगा जाणवा.
१ * तेमा प्रथम भंग अभव्यने आश्रयी छे. जे क्षपकत्वने प्राप्त थवानो छ एवा भव्य जीवने आश्रयी बीजो भंग छे. जेणे मोहनो उपशम कर्यो छे एवा जीवने आश्रयी त्रीजो भंग छे अने चोथो भंग क्षीणमोहनी अपेक्षाए छे.
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