SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आ सूत्रमा गोशालके वर्णवेली निर्वाणप्राप्तिनी पद्धति बताववामां आवेली छे, जेमांनी घणी खरी दीघनिकायना उल्लेख साथे अक्षरशः मळती आवे छे. आ प्रमाणे सूत्रमा नामनिर्देशपूर्वक मात्र एक गोशालकनो ज निर्देश आवे छे. आ उपरांत एक समये बे क्रिया थवानुं माननार, एक समये बे आयुष्य करवानुं तथा भोगववानुं माननार वगेरे बीजा अनेक मतोने अन्यतीर्थिकना नाम नीचे जणाववामां आव्या छे (भा० १ पा० २१९ ) ( भा० १ पा० २०४) ते कोना छे ते तुरतमां कहेQ घणुं विकट छे. वळी आ सूत्रमा अने वीजा सूत्रमा घणे ठेकाणे चार समवसरणोनो निर्देश करेलो छे. ए चारमांनुं एक क्रियावादीनुं, बीजु अक्रियावादीनु, त्रीजुं अज्ञानवादीनुं अने चो) विनयवादीनुं छे एम कहेवाय छे. टीकाकारो घणे स्थळे एम लखे छे के प्राचीन समयमां त्रणसोने त्रेसठ पाखंडो-परमतो हता. ते त्रणसो त्रेसठनी समजण आपतां ते टीकाकारो आ चार समवसरणाने मूळ भूत गणावे छे. त्रणसोने सठनी संख्या मेळवबाने जे पद्धति टीकाकार स्वीकारे छे ते पद्धति बराबर समजी शकाती नथी. खरी रीते तो आ त्रणसोने त्रेसठ पाखंडोनो इतिहास कळी शकाय एवं एके साधन उपलब्ध नथी पण ते संख्याने बदले बौद्ध ग्रंथोमां साठ पाखंडोनो उल्लेख मळे छे. ते विषे केटलीक माहिती पण तेमां नोंघेली छे. ए बधुं वांचकोए बौद्ध साहित्यमांथी जोई लेवू घटे. आ सिवाय महावीरना तुरतना पुरोवर्ती जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथना केटलाक शिष्योए भगवान महावीर साथे अथवा तेमना केटलाक शिष्यो साथे चर्चा करेली छे जेनी नोंध आ सूत्रमा अनेक स्थळे छे. आ चर्चाओने बारीकाईथी वाचतां अने भगवान महावीर साथेनु पार्श्वनाथना ए शिष्योनुं वर्तन जोतां इतिहास- पृथक्करणपूर्वक गवेषण करनार कोई पण विवेकीने एम स्पष्ट मालुम पडशे के ते वखतमां पार्श्वनाथना अने भगवान महावीरना शिष्योना रीतरिवाजोमा एटलो बधो फेर हतो के तेओ बन्ने एक ज परंपराने स्वीकारवा छतां एक बीजाने ओळखी शकता पण नहि. आम छतां ते बन्नेना शिष्यपरिवारमा भेदसहिष्णुता अने समन्वयनी शक्ति होवाने लीधे भाग्ये ज अथडामण थएली. आ संबंधे वधारे जोवानी इच्छावाळाए उत्तराध्ययन सूत्रनुं केशीगौतमीय अध्ययन बराबर ध्यान दईने वांची जq. (५) व्याख्याप्रज्ञप्तिमां आवेलां केटलांक विवादास्पद स्थानो (१) सातमा शतकना नवमा उद्देशकमां वज्जी विदेहपुत्र कोणिक साथे काशी अने कोशलना नव मलकि नव लेच्छकि अढार गणराजाओना संग्रामनी हकीकत आवे छे तेमां 'वजी' ए विदेहपुत्र कोणिकनुं विशेषण छे अने ते तेना वंशनुं सूचक छे. वज्जी लोकोनी साथे मल्लवंशना अने लिच्छवीवंशना राजाओनी लडाईनी हकीकत बौद्ध ग्रंथमां पण आवे छे. आ प्रमाणे वजी शब्द एक राजवंशनो सूचक छे एमां शक नथी तेम छता टीकाकार ए 'वजी' शब्दनो अर्थ वज्जी-एटले वज्री-वज्रवाळो-इन्द्र एम करे छे. जे अहिं तद्दन असंगत छे. ज्यां आ हकीकत छे ते ठेकाणे मूळमां लखेलं छे के "गोयमा ! वज्जी विदेहपुत्ते जइत्था; नव मलई नव लेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो पराजइत्या" (भा० ३ पा० ३०) आ वाक्यमां वज्जीनो अर्थ कोई पण रीते इंद्र घटी शकतो ज नथी पण ए वजी शब्द विदेहपुत्रना विशेषणरूप छे ए हकीकत सूत्रनी ए वाक्यरचना ज बतावी आपे छे. (२) भा०१ पा० २८० में पाने देवलोकमां देवोने पेदा थवानां कारणोनी हकीकत मूकेली छे. तेमा एम जणाव्युं छे के "पूर्वना संयमने लीधे देवो देवलोकमां उत्पन्न थाय छे पण आत्मभाववक्तव्यतानी अपेक्षाए ए देवो देवलोकमां उत्पन्न थता नथी" अहीं टीकाकार आत्मभाववक्तव्यतानो अर्थ 'अहंमानिता' करे छे अने तेम बतावीने आखा सूत्रनो अर्थ ते एम संगत करे छे के "आ हकीकत 'अहंमानिता ने लीधे कहेता नथी' पण विचार करतां टीकाकारनी संगति करवानी आ पद्धति बराबर जणाती नथी. कारण के २८२ में पाने आ वाक्य भगवान महावीरना मुखमां मूकवामां आपेलं छे त्यां तेनो टीकाकारे कहेलो अर्थ जरापण संगत थई शके एम नथी. विचार करता एम जणाय छे के आत्मभाववक्तव्यतानो अर्थ आत्मभावनी दृष्टि एटले खखरूपप्राप्तिनी दृष्टि एम करीए तो कशी असंगति आवे एवं लागतुं नथी. एवो अर्थ करीए तो तात्पर्य ए आवे के देवलोकनी प्राप्तिनुं कारण आत्मभाव नथी. आत्मभाव एटले के खस्वरूपनी प्राप्ति. ए तो सीधुं ज निर्वाण- कारण छे. एथी आत्मभाववक्तव्यतानी अपेक्षाए देवो देवलोकमां उत्पन्न थता नथी एम सूत्रनो अर्थ थयो. माटे भगवान महावीरना मुखमां शोमे एवो आबो सीधो अने सादो अर्थ थई शके एम होवा छतां आत्मभाववक्तव्यतानो टीकाकारे अहंमानिता अर्थ कयों के तेनुं कारण समजी शकातुं नथी. १ जूओ दीघनिकाय ( मराठी ) पृ० ५९. Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy