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________________ २२६ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक २५.-उद्देशक४. .६२. [प्र०] दुपएसिए-पुच्छा । [उ०] गोयमा! नो कडजुम्मे, नो तेयोये, दावरजुम्मे, नो कलियोगे। ६३. [प्र०] तिपएसिए-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! नो कङजुम्मे, तेयोए, नो दावरजुम्मे, नो फलियोए । ६४. [प्र०] चउप्पएसिए-पुच्छा। उ०] गोयमा! कडजुम्मे, नो तेओए, नो दावरजुम्मे, नो कलियोगे। पंचपएसिए जहा परमाणुपोग्गले । छप्पएसिए जहा दुप्पएसिए । सत्तपएसिए जहा तिपएसिए । अट्ठपएसिए जहा चउप्पएसिए । नवपएसिए जहा परमाणुपोग्गले । दसपएसिए जहा दुप्पएसिए । ६५. [प्र.] संखेजपएसिए णं भंते ! पोग्गले-पुच्छा। [उ०] गोयमा। सिय कडजुम्मे, जाव-सिय कलियोए। एवं असंखेजपएसिए वि, अणंतपएसिए वि। ६६. [प्र०] परमाणुपोग्गला णं भंते ! पएसट्टयाए किं कडजुम्मा-पुच्छा। [उ०] गोयमा! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा, जाव-सिय कलियोगा। विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा, नो तेयोया, नो दावरजुम्मा, कलियोगा। ६७. [प्र.] दुप्पएसिया णं पुच्छा । उ०] गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा, नो तेयोया, सिय दावरजुम्मा, नो कलियोगा। विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा, नो तेयोया, दावरजुम्मा, नो कलियोगा। ६८. [प्र०] तिपएसिया णं-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा, जाव-सिय कलियोगा। विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा, तेयोगा, नो दावरजुम्मा, नो कलियोगा। ६९. [प्र०] चउप्पएसिया णं-पुच्छा। [उ०] गोयमा! ओघादेसेण वि विहाणादेसेण वि कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावरजुम्मा, नो कलियोगा। पंचपएसिया जहा परमाणुपोग्गला । छप्पएसिया जहा दुप्पएसिया। सत्तपएसिया जहा तिपएसिया । अट्ठपएसिया जहा चउपएसिया । नवपएसिया जहा परमाणुपोग्गला । दसपएसिया जहा दुपएसिया । ७०. [प्र०] संखेजपएसिया णं-पुछा । [उ.] गोयमा! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा, जाव-सिय कलियोगा। विहाणादेसेणं कडजुम्मा वि, जाव-कलियोगा वि । एवं असंखेजपएसिया वि, अणंतपएसिया वि।। राशिओ. द्विप्रदेशिक स्कन्धः ६२. [प्र०] द्विप्रदेशिक स्कंध संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! ते कृतयुग्म, त्र्योज के कल्योज रूप नथी, पण द्वापरयुग्म छे. त्रिप्रदेशिक स्कन्ध ६३. [प्र०] त्रिप्रदेशिक स्कंध संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! ते कृतयुग्म, द्वापर के कल्योज नथी, पण त्र्योज छे. चतुःप्रदेशिकादि ६४. [प्र०] चार प्रदेशवाळा स्कंध संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! कृतयुग्म छे, पण त्र्योज, द्वापर के कल्योज नथी. परमाणुपुद्गस्कन्ध. लनी पेठे पांच प्रदेशवाळो स्कंध, द्विप्रदेशिक स्कन्धनी पेठे षट्प्रदेशिक स्कंध, त्रिप्रदेशिक स्कन्धनी पेठे सप्त प्रदेशिक स्कंध, चतु: प्रदेशिकनी पेठे आठ प्रदेशवाळो स्कंध, परमाणुपुद्गलनी पेठे नव प्रदेशिक स्कंध अने द्विप्रदेशिक स्कन्धनी पेठे दशप्रदेशिक स्कंध जाणवो. संख्यातप्रदेशिक ६५. प्रि०] हे भगवन् ! शुं संख्यातप्रदेशिक स्कंध कृतयुग्म छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम! ते कदाच कृतयुग्म होय भने यावत्-कदाच कल्योजरूप होय. ए प्रमाणे असंख्यात प्रदेशिक तथा अनंतप्रदेशिक स्कंध संबंधे जाणवू. परमाणुओमा प्रदेश- ६६. [प्र०] हे भगवन् ! शुं परमाणुपुद्गलो प्रदेशार्थपणे कृतयुग्म छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! सामान्यादेशथी कदाच रूपे कृतयुग्मादि ६ कृतयुग्म छे, अने यावत्-कदाच कल्योज छे. तथा विशेषादेशनी अपेक्षाए कृतयुग्म, त्र्योज के द्वापरयुग्म नथी, पण कल्योज छे. दिप्रदेशिक स्कन्धो. ६७. [प्र०] द्विप्रदेशिक स्कंधो संबंधे प्रश्न. [उ०] हे गौतम! सामान्यादेशनी अपेक्षाए कदाच कृतयुग्म होय अने कदाच . द्वापरयुग्म होय, पण त्र्योज के कल्योजराशि रूप न होय. विशेषनी अपेक्षाए कृतयुग्म, त्र्योज के कल्योजरूप न होय, पण द्वापरयुग्म राशिरूप होय. त्रिप्रदेशिक स्कन्धो.. .६८. [प्र०] त्रिप्रदेशिक स्कंधो संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम! सामान्यादेशथी कदाच कृतयुग्म, यावत्-कदाच कल्योज हीय, विशेषादेशथी कृतयुग्म, द्वापरयुग्म के कल्योज न होय, पण म्योज होय. चतुष्प्रवेशिकादि ६९. [प्र०] शुं चतुष्प्रदेशिक स्कन्धो कृतयुग्म छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! सामान्यादेश अने विशेषादेशनी अपेक्षाए. स्कन्धो. कृतयुग्मरूप छे, पण त्र्योज, द्वापरयुग्म अने कल्योजरूप नथी. पंचप्रदेशिक स्कन्धो परमाणुपुद्गलनी पेठे (सू० ६०-६१) जाणवा. छप्रदेशिक स्कन्धोने द्विप्रदेशिक स्कन्धोनी पेठे (सू०६७) जाणवू. सप्तप्रदेशिक स्कन्धो त्रिप्रदेशिक स्कन्धोनी पेठे (सू०६८), अष्टप्रदेशिक स्कन्धो चतुष्प्रदेशिकनी पेठे, नवप्रदेशिक स्कन्धो परमाणुपुद्गलोनी जेम (सू० ६०-६१) अने दशप्रदेशिक स्कन्धो द्विप्रदे शिक स्कन्धोनी पेठे (सू०६१) जाणवा. संख्यातप्रदेशिकादि ७०. [प्र०] शुं संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो कृतयुग्मराशि रूप होय-इत्यादि प्रश्न. [उ०] सामान्यादेशथी कदाच कृतयुग्मरूप होय, स्कन्धो. यावत्-कदाच कल्योजरूप पण होय. विशेषादेशथी पण कदाच कृतयुग्मरूप होय, यावत्-कदाच कल्योजरूप पण होय. एम असंख्यात प्रदेशिक अने अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो जाणवा. Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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