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शतक २५.-उद्देशक ४. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. .
२२५ ५७. [प्र०] पएसि णं भंते ! एगगुणकालगाणं, संखेजगुणकालगाणं, असंखेजगुणकालगाणं, अणंतगुणकालगाण य पोग्गलाणं दखट्टयाए, पएसट्टयाए, दघट्टपएसट्टयाए०१ [उ.] एएसि जहा परमाणुपोग्गलाणं अप्पाबरगं तहा एपसि पि अप्पाबहुगं; एवं सेसाण वि वन्न-गंध-रसाणं ।
५८. [प्र०] एएसि णं भंते ! एगगुणकफ्खडाणं, संखेजगुणकक्खडाणं, असंखेजगुणकक्खडाणं, अणंतगुणकक्खडाण य पोग्गलाणं दखट्टयाए, पएसट्टयाए, दचट्ठपएसट्टयाए कयरे कयरे जाव-विसेसाहिया वा? [उ०] गोयमा! सवत्योवा पगगुणकक्खडा पोग्गला दवट्ठयाए, संखेजगुणकक्खडा पोग्गला दवट्टयाए संखेजगुणा, असंखेजगुणकक्खडा पोग्गला दवट्ठयाए असंखेजगुणा, अणंतगुणकक्खडा पोग्गला दवट्ठयाए अणंतगुणा, पएसट्टयाए एवं चेव, नवरं संखेजगुणकक्खडा पोग्गला पएसट्टयाए असंखेजगुणा, सेसं तं चेव । दवट्ठपएसट्टयाए-सवत्थोवा एगगुणकक्खडा पोग्गला दवट्ठपएसट्टयाए, संखेजगुणकक्खडा पोग्गला दचट्ठयाए संखेजगुणा; ते चेव पएसट्टयाए संखेजगुणा, असंखेजगुणकक्खडा दट्टयाए असंखेजगुणा, ते चेव पएसट्टयाए असंखेजगुणा; अणंतगुणकक्खडा दवट्ठयाए अणंतगुणा, ते चेव पएसट्टयाए अणंतगुणा । एवं मउय-गरुयलहुयाण वि अप्पाबहुयं । सीय-उसिण-निद्ध-लुक्खाणं जहा वन्नाणं तहेव ।
५९. [३०] परमाणुपोग्गले णं भंते ! दवट्ठयाए कि कडजुम्मे, तेयोए, दावरजुम्मे, कलियोगे? [उ०] गोयमा! नो कडजुम्मे, नो तेयोए, नो दावरजुम्मे, कलियोगे । एवं जाव-अणंतपएसिए खंधे।
१०.०ी परमाणपोग्गला णं भंते ! दखट्याए कि कडजम्मा-पच्छा। [उ.1 गोयमा! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा, जाव-सिय कलियोगा; विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावरजुम्मा, कलियोगा। एवं जाव-अणंतपएसिया खंधा।
६१. [प्र०] परमाणुपोग्गले णं भंते ! पएसट्ठयाए कि कडजुम्मे० पुच्छा। [उ०] गोयमा ! नो कडजुम्मे, नो तेयोगे, नो दावरजुम्मे, कलियोगे।
५७. [प्र०] हे भगवन् ! एकगुण काळा, संख्यातगुण काळा, असंख्यातगुण काळा अने अनंतगुण काळा ए पुद्गलोमा द्रव्या- वर्णविविशिष्ट पुदर्थरूपे, प्रदेशार्थरूपे अने द्रव्यार्थप्रदेशार्थरूपे कया पुद्गलो कोनाथी यावद्-विशेषाधिक छे? [उ०] जेम परमाणुपुद्गलोर्नु अल्प- "
गलोनें अपबहुवः बहुत्व का छे (सू० ५३) तेम एओर्नु पण अल्पबहुत्व कहे. एम काळा सिवायना बाकीना वर्ण, गंध अने रस संबंधे पण जाणवू.
५८. [प्र०] हे भगवन् ! एकगुण कर्कश, संख्यातगुण कर्कश, असंख्यातगुण कर्कश अने अनंतगुण कर्कश ए पुद्गलोमां द्रव्यार्थरूपे, प्रदेशार्थरूपे तथा द्रव्यार्थप्रदेशार्थरूपे कया पुद्गलो कोनाथी यावत्-विशेषाधिक छे! [उ०] हे गौतम ! एकगुण कर्कश पुद्गलो द्रव्यार्थरूपे सौथी थोडां छे, तेथी संख्यातगुण कर्कश पुद्गलो द्रव्यार्थरूपे संख्यातगुणा छे, तेथी असंख्यातगुण कर्कश पुद्गलो द्रव्यार्थरूपे असंख्यातगुण छे, तेथी अनंतगुण कर्कश पुद्गलो द्रव्यार्थरूपे अनंतगुण छे. प्रदेशार्थरूपे पण ए ज रीते जाणवू. परन्तु विशेष ए के, संख्यातगुण कर्कश पुद्गलो प्रदेशार्थरूपे असंख्यातगुणा छे. बाकी बर्षा पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवु. द्रव्यार्थप्रदेशार्थरूपे-एकगुण कर्कश पुद्गलो द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थपणे सौथी थोडा छे; तेथी संख्यातगुण कर्कश पुद्गलो द्रव्यार्थरूपे संख्यातगुणां छे, अने तेज पुद्गलो प्रदेशार्थरूपे तेथी संख्यातगुणां छे, तेथी असंख्यातगुण कर्कश पुद्गलो द्रव्यार्थरूपे असंख्यातगुण छे, अने तेथी तेज पुद्गलो प्रदेशार्थरूपे असंख्यातगुण छे, अनंतगुण कर्कश पुद्गलो द्रव्यार्थरूपे तेथी अनंतगुण छे, अने तेज पुद्गलो प्रदेशार्थरूपे तेथी अनंतगुण छे. एज रीते मृदु, गुरु अने लघु स्पर्शोनुं पण अल्पबहुत्व कहे. शीत, उष्ण, स्निग्ध अने रुक्ष स्पर्शोनुं अल्पबहुत्व वर्णोनी पेठे जाणवू.
५९. [प्र०] हे भगवन् ! शुं परमाणुपुद्गल द्रव्यार्थरूपे कृतयुग्म छे, त्र्योज छे, द्वापरयुग्म छे के कल्योज छे! [उ०] हे गौतम ! कृतयुग्म नथी, त्र्योज नथी, द्वापरयुग्म नथी, पण *कल्योजरूप छे. ए प्रमाणे यावत्-अनंतप्रदेशिक स्कंध सुधी जाणवू.
परमाणुमां कृतयुग्मादि राशिनो समवतार. परमाणुओ.
६०. [प्र०] हे भगवन् ! शुं परमाणुपुद्गलो द्रव्यार्थपणे कृतयुग्म छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम! कदाच सामान्यादेशथी कृतयुग्म होय, यावत्-कदाच कल्योज रूप होय. अने विशेषादेशथी कृतयुग्म, त्र्योज के द्वापरयुग्म नधी, पण कल्योजरूप होय छे. ए प्रमाणे यावत्-अनंत प्रदेशिक स्कंधो सुधी जाणवू.
६१. [प्र०] हे भगवन् । शुं परमाणुपुद्गल प्रदेशार्थरूपे कृतयुग्म छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! ते कृतयुग्म नथी, त्र्योज परमाणु प्रदेशरूपे. नथी, तेम द्वापरयुग्म नथी, पण कल्योजरूप छे.
५९ * विधानादेशथी एक परमाणुपुदलने चार संख्याधी अपहार करता एक बाकी रहे माटे ते हमेशा कल्पोजरूप होय छे. २९ भ. सू.
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