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________________ शतक २५.-उद्देशक ४ भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. २२१ सत्य णं जे ते असेलेसीपडिवनगा ते णं सेया । [प्र०] ते णं भंते ! कि देसेया सधेया ? [उ०] गोयमा ! देसेया वि, सोया वि. से तेणट्रेणं जाव-निरेया वि।। ३७. [प्र०] नेरइया णं भंते ! किं देसेया सोया ? [उ०] गायमा! देसेया वि, सोया वि । [प्र०] से केणटेणं जाषसोया वि[उ०] गोयमा ! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-विग्गहगतिसमावनगा य. अविग्गहगतिसमावनगा य । तत्थ गंजे ते विग्गहगतिसमावन्नगा ते णं सोया, तत्थ णं जे ते अविग्गहगतिसमावनगा ते णं देसया, से तेणट्रेणं जाव-'सोया वि'। एवं जाव-वेमाणिया। ३८. [प्र०] परमाणुपोग्गला गं मंते! कि संखेजा असंखेजा अणता? [उ.] गोयमा! नो संखेजा, नो असंखेज्जा, अणंता । एवं जाव-अणंतपएसिया खंधा। ३९. [प्र०] एगपएसोगाढा णं भंते ! पोग्गला किं संखेजा, असंखेज्जा, अणंता ? [उ०] एवं चेव । एवं जाय-असंखेजपएसोगाढा। ४०. [प्र०] एगसमयठितीया णं भंते ! पोग्गला किं संखेजा० ? [उ०] एवं चेव, एवं जाव-असंखेजसमयद्वितीया । . ४१. [प्र०] एगगुणकालगा णं भंते ! पोग्गला किं संखेजा० ? [उ०] एवं चेव, एवं जाव-अणंतगुणकालगा, एवं अवसेसा वि वण्णगंधरसफासा णेयधा जाव-'अणंतगुणलुक्ख'त्ति। - ४२. [प्र०] एएसि णं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं, दुपएसियाण य खंधाणं दवट्ठयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा, यहुया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा ? [उ०] गोयमा! दुपएसिपहिंतो खंधेहिंतो परमाणुपोग्गला दबटुयाए बहुगा । भने शैलेशीने अप्राप्त. तेमा जे* शैलेशीने प्राप्त जीवो छे ते निष्कंप छे अने जे शैलेशीने प्राप्त थयेला नथी ते सकंप छे. [प्र० हे भगवन् ! जेओ शैलेशीने प्राप्त थयेला नथी ते जीवो शुं अंशत: सकंप छे के सर्वाशे सकंप छे ! [उ०] हे गौतम! ते अंशतः सकंप के अने सर्वाशे पण सकंप छे. ते हेतुथी यावत्-ते निष्कंप पण छे. ३७. [प्र०] हे भगवन् ! नैरयिको शुं अंशतः सकंप छे के सर्वाशे सकंप छे ! [उ०] हे गौतम ! तेओ अंशतः सकंप छे अने सर्वाशे पण सकंप छे. [प्र०] शा हेतुथी एम कहो छो के ते यावत्-सर्वाशे पण सकंप छे! [उ०] हे गौतम | नैरयिको बे प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-विग्रहगतिने प्राप्त थयेला अने विग्रह गतिने नहि प्राप्त थयेला. तेमां जे विग्रह गतिने प्राप्त थयेला छे ते सर्वाशे सकंप छे. अने जे विग्रहगतिने प्राप्त थयेला नथी ते अमुक अंशे सकंप छे. ते हेतुथी यावत्-तेओ सर्वाशे पण सकंप छे. ए प्रमाणे यावत्-वैमानिको सुधी जाणवू. ३८. [प्र०] हे भगवन् ! शुं परमाणुपुद्गलो संख्याता छे, असंख्याता छे के अनंत छे! [उ०] हे गौतम ! ते संख्याता नथी, परमाणु. . असंख्याता नथी, पण अनंत छे. ए प्रमाणे यावत्-अनंत प्रदेशवाळा स्कंधो सुधी जाणवू. ३९. [प्र०] हे भगवन् ! आकाशना एक प्रदेशमा रहेला पुद्गलो शुं संख्याता छे, असंख्याता छे के अनंत छे ? [उ०] पूर्वे कह्या एक आकाशप्रदेशर्मा रहेका पुद्गलो. प्रमाणे जाणवु. ए रीते यावत्-असंख्यात प्रदेशमा रहेलां पुद्गलो विषे पण समजवू. ४०. [प्र०] हे भगवन् ! एक समयनी स्थितिवाळां पुद्गलो शुं संख्याता छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवू. ए एकसमयनी स्थितिप्रमाणे यावत्-असंख्याता समयनी स्थितिबाळां पुद्गलो संबंधे पण जाणवू. वाळा पुद्गलो. ४१. [प्र०] हे भगवन् ! एकगुण काळां पुद्गलो शुं संख्याता होय-इत्यादि प्रश्न. [उ०] पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवू. ए प्रमाणे ____एकगुण काळायावत्-अनंतगुण काळा पुद्गलो संबन्धे पण समजवु. एम एज रीते बाकीना वर्ण, गंध, रस अने स्पर्श संबंधे यावत्-अनंत गुण रुक्ष सुधी समजवू. १२. [प्र०] हे भगवन् ! परमाणुपुद्गल अने द्विप्रदेशिक स्कंध, एमां द्रव्यार्थरूपे कोण कोनाथी अल्प, अधिक, तुल्य अने परमाणु अने दिप देशिक स्वन्धन विशेषाधिक छे! [उ०] हे गौतम ! द्विप्रदेशिक स्कंधो करतां परमाणु पुद्गलो द्रव्यार्थरूपे घणां छे. अपबहुत्व. पद्गगे. ३६ * जेओ मोक्षगमनसमय पहेलां शैलेशीने प्राप्त थयेला छे तेओने योगनो रोध सर्वथा होवाथी ते निष्कंप छे. + ईलिका गतिथी उत्पत्तिस्थाने जता जीवो देशतः सकम्प छे, कारण के तैनो पूर्वना शरीरमा रहेलो अंश गतिक्रियारहित होवाथी ते निश्चल छे... ३७ 1 विग्रहगतिने प्राप्त थयेला एटले जेओ मरीने विग्रह गतिवडे उत्पत्ति स्थाने जाय छे तेओ दडानी गतिथी सर्वात्मरूपे उपजे छ, माटे ते सर्वरूपे सकम्प छे. अने जेओ विग्रहगतिने प्राप्त थयेला नथी ते ऋजुगतिवाळा अने अवस्थित ए वे प्रकारना छे. तेमा अहिं मात्र अवस्थित ग्रहण करेला होय तेम संभवे छे. तेओ शरीरमा रहीने मरणसमुद्धात करी ईलिंका गतिवडे उत्पत्ति क्षेत्रनो अंशतः स्पर्श करे छे, माटे ते देशथी सकंप छे. अथवा खक्षेत्रमा रहेला जीवो हस्तपादादि अवयवोने चलाववा द्वारा देशथी सकंप छ,-टीका. For Private & Personal Use Only जीवो हस्तपादादि अवधारहीने मरणसमुद्रात करी इलिका गावाला अने अवस्थित ए वे प्रका www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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