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________________ २१४ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक २५.-उद्देशक ३. ५८. [प्र०] परमाणुपोग्गलाणं भंते ! किं अणुसेढी गती पवत्तति, विसेढिं गती पवत्तति ? [उ०] गोयमा ! अणुसेढी गति पवत्तति, नो विसेढी गती पवत्तति । ५९. [प्र०] दुपएसियाणं मंते ! खंधाणं अणुसेढी गती पवत्तति, विसेढी गती पवत्तति ? [उ०] एवं चेव, एवं जावअणंतपएसियाणं खंधाणं। ६०.०नेरइयाणं भंते ! किं अणुसेढी गती पवत्तति, विसेढी गती पवत्तति ? [उ०] एवं चैव, एवं जाव-वेमाणियाणं । ६१. [प्र०] इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए केवतिया निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता ? [उ०] गोयमा ! तीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता, एवं जहा पढमसते पंचमुद्देसगे जाव-'अणुत्तरविमाण' ति। ६२. [प्र०] कइविहे णं भंते ! गणिपिडए पन्नत्ते ? [उ०] गोयमा! दुवालसंगे गणिपिडए पन्नत्ते; तंजहा-आयारो, जाव-दिठिवाओ। ६३. [प्र०] से किं तं आया? [उ०] आयारे णं समणाणं निग्गंथाणं आयार-गोयर०-एवं अंगपरूवणा भाणियवा जहा नंदीए, जाव-"सुत्तत्थो खलु पढमो वीओ निज़त्तिमीसओ भणिओ। तइओय निरवसेसो एस विही होइ अणुओगे"। ६४. [प्र०] एएसि णं भंते ! नेरतियाणं, जाव-देवाणं, सिद्धाण य पंचगतिसमासेणं कयरे कयरे०-पुच्छा । गोयमा । अप्पाबहुयं जहा बहुवत्तवयाए, अट्ठगइसमासअप्पाबहुगं च । ६५. [प्र०] एएसि णं भंते ! सइंदियाणं, एगिदियाणं, जाव-अणिदियाण य कयरे कयरे० १ [उ०] एयं पि जहा बहुवत्तचयाए तहेव ओहियं पयं भाणियचं, सकाइयअप्पाबहुगं तहेव ओहियं भाणियवं । परमाणुनी गति. ५८. [प्र०] हे भगवन् । परमाणुपुद्गलनी गति *अनुश्रेणि-आकाशप्रदेशनी श्रेणिने अनुसारे-थाय छे के विश्रेणि-श्रेणि विना गति थाय छे ! [उ०] हे गौतम ! परमाणु पुद्गलनी गति अनुश्रेणि-श्रेणिने अनुसारे थाय छे, पण विश्रेणि-श्रेणि सिवाय थती नथीं. विप्रदेशिक स्कन्ध. ५९. [प्र०] हे भगवन् ! द्विप्रदेशिक स्कन्धनी गति श्रेणिने अनुसारे थाय छे के श्रेणि विना थाय छे ! [उ.] पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणq. एम यावत्-अनंत प्रदेशिक स्कंध संबंधे पण समजq. नैरयिकोनी गति. ६०. [प्र०] हे भगवन् ! नैरयिकोनी गति श्रेणिने अनुसारे थाय छे के श्रेणि सिवाय थाय छे ? [उ०] पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवू. ___एम यावत्-वैमानिको सुधी समजवु. नरकावास. .६१. [प्र०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पृथिवीमा केटला लाख नरकावासो कह्या छे ? [उ०] हे गौतम ! तेमा त्रीश लाख नरका. वासो कह्या छे-इत्यादि प्रिथम शतकना पांचमां उद्देशका कह्या प्रमाणे यावत्-अनुत्तर विमान सुघी कहे. ६२. [प्र०] हे भगवन् ! गणिपिटक-आगम केटला प्रकराचें कह्यु छे? [उ०] हे गौतम ! बार अंगवालु गणिपिटक कयुं छे. ते आ रीते-१ आचारांग यावत्-१२ दृष्टिवाद. आचारांगादि. ६३. [प्र०] हे भगवन् ! आचारांग ए शुं छे? [उ०] हे गौतम ! आचारांगमां श्रमण निग्रंथोनो आचार, गोचर-भिक्षाविधि इत्यादि चारित्र धर्मनी प्ररूपणा कराय छे. ए प्रमाणे नंदीसूत्रमा कह्या प्रमाणे बधा अंगोनी प्ररूपणा करवी. यावत्-"प्रथम सूत्रार्थ मात्र कहेवो, बीजो नियुक्तिमिश्र अर्थ कहेवो, अने त्रीजु सर्व अर्थर्नु कथन क. आ अनुयोग संबंधे विधि छे. पांच गतिनु अप- ६४. [प्र०] हे भगवन् ! ए नैरयिको, यावत्-देवोः अने सिद्धो-ए पांच गतिना समुदायमा कया जीवो कोनाथी यावत्-विशेषाधिक बहुत्व. आठ गतिन अप- होय छे ? [उ०] हे गौतम ! "प्रज्ञापना सूत्रना बहुवक्तव्यता पदा कह्या प्रमाणे अल्पबहुत्व जाणवू. तथा आठ गतिना समुदायतुं पण बहुत्व. अल्पबहुत्व जाणवू. सेन्द्रियादि जीवोनुं ६५. [प्र०] हे भगवन् ! सेन्द्रिय, एकेन्द्रिय यावत्-अनिन्द्रिय-इन्द्रियना उपयोग रहित जीवोमां कया जीवो कोनाथी यावत्अश्पबडुत्व. विशेषाधिक छे ! [उ०] ए संबन्धे पण प्रज्ञापनाना बहुवक्तव्यता पदमा कहेल सामान्य पद कहे. सकायिकोर्नु पण तेज प्रमाणे सामान्य अल्पबहुत्व कहे. ५८ * पूर्वादि दिशाना अभिमुख आकाशप्रदेशनी श्रेणि ते अनुश्रेणि, अने विदिशाने आश्रित जे श्रेणि ते विश्रेणि. ६१ भग• खं० १श. १ उ०५पृ० १४१. ६३ १ जुओ नंदीसूत्र प. २१२. ६४ जुओ-प्रज्ञा० पद.३१० ११९. ६५ सर्वथी थोडा पंचेन्द्रिय जीवो छे, तेथी चउरिन्द्रिय विशेषाधिक छे. तेथी तेइन्द्रिय विशेषाधिक छे, तेथी बेइन्द्रिय विशेषाधिक छे, तेथी अनिन्द्रिय अनन्तगुण छे, तेथी एकेन्द्रिय अनन्तगुण छे, अने तेथी सेन्द्रिय विशेषाधिक छे. जुओ प्रज्ञा० पद ३५० १२०. अहिं सकायिक, पृथिवीकायिकादि अने अकायिकर्नु अल्पबहुत्व कहेवार्नु छे. सर्व करता थोडा त्रसकायिको छे, तेथी सकायिक जीवो असंख्यात गुण छे, तेथी पृथिवीकायिक, अफायिक, अने वायुकायिक उत्तरोत्तर विशेषाधिक छे. तेथी अकायिक अनन्तगुण छे. तेथी वनस्पतिकायिक अनन्तगुण छे भने तेथी सकायिक विशेषाधिक छे. जुओ प्रज्ञा० पद ३५० १२२. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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