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शतक २५.-उद्देशक ३. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. .
२११ ३९. [प्र०] सेढीओ णं भंते ! दधट्टयाए कि संखेजाओ, असंखेजाओ, अणंताओ? [उ०] गोयमा ! नो संखेजाओ, नो मसंखेज्जाओ, अणंताओ। ___४०. [प्र०] पाईणपडीणायताओ णं भंते ! सेढीओ दधट्टयाए कि संखेजाओ० ? [उ०] एवं चेव । एवं दाहिणुत्तरायताओ वि; एवं उदुमहायताओ वि ।
४१. [प्र०] लोगागाससेढीओ णं भंते ! दवट्टयाए कि संखेजाओ, असंखेजाओ, अणंताओ १ [उ०] गोयमा! नो संखेजाओ, असंखेजाओ, नो अणंताओ।
४२. [प्र०] पाईणपडीणायताओ गं भंते ! लोगागाससेढीओ दधट्टयाए कि संखेजाओ० १ [उ.] एवं चेव, एवं दाहिणुत्तराययाओ वि; एवं उढमहायताओ वि। ___४३. [प्र०] अलोयागाससेढीओ णं भंते ! दधट्टयाए कि संखेजाओ, असंखेजाओ, अणंताओ ? [उ०] गोयमा ! नो संखेजाओ, नो असंखेजाओ, अणंताओ। एवं पाईणपडीणाययाओ वि, एवं दाहिणुत्तराययाओ वि, एवं उड्डमहायताओ वि।
४४. [प्र०] सेढीओ णं भंते ! पएसट्ठयाए कि संखेजाओ० १ [उ०] जहा दधट्ठयाए तहा परसट्ठयाए वि, जाव-उड्डमहाययाओ वि, सधाओ अणंताओ।
४५. [प्र०] लोयागाससेढीओ भंते ! पएसट्टयाए कि संखेजाओ-पुच्छा । [उ०] गोयमा! सिय संखेजाओ, सिय असंखेजाओ, नो अणंताओ । एवं पाईणपडीणायताओ वि, दाहिणुत्तरायताओ वि एवं चेव, उड्डमहायताओ विनो संखेजाओ, असंखेजाओ, नो अणंताओ।
३९. [प्र०] हे भगवन् । (आकाशप्रदेशनी) श्रेणिओ द्रव्यरूपे शुं संख्याती छे, असंख्याती छे, के अनंत छे ! [उ० हे गौतम। द्रव्यरूपे आकाश ते संख्याती नथी, असंख्याती नथी, पण अनंत छे.
प्रदेशनी श्रेणिोनी
४०. [प्र०] हे भगवन् ! पूर्व अने पश्चिम लांबी श्रेणिओ द्रव्यरूपे शुं संख्याती छे, असंख्याती छे के अनंत छे ? [उ०] पूर्व प्रमाणे (अनंत ) जाणवी. एज प्रमाणे दक्षिण अने उत्तर लांबी तथा ऊर्ध्व अने अधो लांबी श्रेणिओ संबंधे पण जाणवू. ४१. [प्र०] हे भगवन् ! लोकाकाशनी श्रेणिओ द्रव्यरूपे शु संख्याती छे, असंख्याती के अनंत छे? उ०] हे गौतम | ते लोकाकाशनी
मेणिओ. संख्याती नथी, तेम अनंत नथी, पण असंख्याती छे.
४२. [प्र०] हे भगवन् ! पूर्व अने पश्चिम लांबी लोकाकाशनी श्रेणिओ द्रव्यरूपे शुं संख्याती छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम! पूर्व प्रमाणे (असंख्याती) जाणवी. दक्षिण अने उत्तर लांबी तथा ऊर्ध्व अने अधो लांबी लोकाकाशनी श्रेणिओ संबंधे पण ए प्रमाणे जाणवू. ४३. [प्र०] हे भगवन् ! अलोकाकाशनी श्रेणिओ द्रव्यरूपे शुं संख्याती छे, असंख्याती छे के अनंत छे ! [उ.] हे गौतम | अलोकाकाशनी
मणिमो. ते संख्याती नथी, असंख्याती नथी, पण अनंत छ. ए प्रमाणे पूर्व अने पश्चिम लांबी, दक्षिण अने उत्तरमा लांबी तथा उंचे अने नीचे लांबी अलोकाकाशनी श्रेणिओ संबन्धे पण जाणवू.
१४. [प्र०] हे भगवन् ! आकाशनी श्रेणिओ प्रदेशरूपे शुं संख्याती छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! जेम द्रव्यरूपे कयुं छे तेम प्रदेशरूपे पण कहेवू. ए प्रमाणे यावत्-ऊर्ध्व अने अधो लांबी बधी श्रेणिओ अनंत जाणवी.
४५. [प्र०] हे भगवन् ! लोकाकाशनी श्रेणिओ प्रदेशरूपे शुं संख्याती छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम | कोई *संख्यात प्रदेशरूप छे, कोई असंख्यात प्रदेशरूप छे, पण अनंतप्रदेश रूप नथी. ए प्रमाणे पूर्व अने पश्चिम, दक्षिण अने उत्तर लांबी श्रेणिओ प्रदेशरूपे संख्या. जाणवी. तथा ऊर्ध्व अने अधो लांबी लोकाकाशनी श्रेणिओ संख्यात प्रदेशरूप नथी, पण असंख्यात प्रदेशात्मक छे.
[3] सनातन
का
तमात आकाशमणिनी
४५ * लोकाकाशनी पूर्व-पश्चिम अने उत्तर-दक्षिण श्रेणिओ संख्याता प्रदेशरूपे शी रीते होय? आ संवन्धे टीकामां नीचे प्रमाणे चूर्णिकार अने प्राचीन टीकाकारना उल्लेखो टांकी समाधान करे छे-अहिं चूर्णिकार जणावे छे के वृत्ताकार लोकना दन्तक जे अलोकमा गयेला छे तेनी श्रेणिओ संख्यातप्रदेशात्मक भने बाकीनी श्रेणिओ असंख्यात प्रदेशात्मक होय छे. प्राचीन टीकाकार कहेछे के लोकाकाश वृत्ताकार होवाथी पर्यन्तवर्ती श्रेणिओ संख्यात प्रदेशनी होय छे.
लोकाकाशनी ऊर्ध्व लोकथी आरंभी अधोलोक पर्यन्त ऊर्ध्व-अधो लांबी श्रेणि असंख्यात प्रदेशनी छे, पण संख्यात के अनन्त प्रदेशनी नथी, अधोलोकना खुणाथी के ब्रह्मदेव लोकना तीरछा प्रान्त भागथी जे श्रेणिओ नीकळे छे ते पण आ सूत्रना कथनथी संख्यात प्रदेशनी नथी होती, पण असंख्यात प्रदेशनीज होय छे.
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