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शतक २५
देशक २.
भगवत्सुधर्मस्वामित्रणीत भगवतीसूत्र.
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१९. [२०] से मंते ! संढाणे कतिपदेखिए कतिपदेसोगाडे पद्मते ? [४०] गोयमा ! तंसे णं संठाने दुविद्दे पत्रते । तंजा - घणसे व पचरतंसे व तत्थ णं जे से पपरतंसे से दुबिछे पनते, तंजदा-भोपपयसिप प तुम्मपपसिए व तत्थ जे से ओयपएसिए से जहन्नेणं तिपएसिए तिपरसोगाढे पन्नत्ते, उक्कोसेणं अणतपपलिए असंखेजपपसोगाढे पत्ते । तत्थ जे से जुम्मपरसिए से जहनेणं छप्परसिए छप्परसोगादे पनते, उकोसेणं अणतपरसिए असंसेजपरसोगाढ़े पनसे । तत्थ णं जे से घणतंसे से दुविहे पन्नत्ते, तंजा - ओयपपलिए य जुम्मपरसिप य । तत्थ णं जे से ओयपरसिए से जहनेणं पणतीसपपसिए पणतीसपएलोगाढे, उक्कोसेणं अनंतपए लिए-तं चेव । तत्थ णं जे से जुम्मपपसिए से जहस्रेणं चउप्पपलिए चउप्पएसोगाढे पन्नत्ते, उक्कोसेणं अणतपपसिए - तं चैव ।
२०. [प्र०] चउरंसे णं भंते! संठाणे कतिपदेसिए - पुच्छा । [उ०] गोयमा ! चउरंसे संठाणे दुविहे पन्नत्ते, भेदो जहेव वट्टस्स, जाव-तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहनेणं नवपपलिए नवपपसोगाढे पन्नत्ते, उक्कोसेणं अणतपपसिए असंखेजपरसोगाढे पन्नत्ते । तत्थ णं जे से जुम्मपदेसिए से जहनेणं चउपपसिए चउपपसोगाढे पन्नत्ते, उक्कोसेणं अणतपपसिए-तं चैव । तत्थ णं जे से घणचउरसे से दुबिहे पनचे, तंजा-त्रयपयसिए व जुम्मपरसिए व तत्व में जे से ओयपरसिए से जहन्त्रेणं सत्तावीसह परसिप सत्तावीसतिपरसोगाडे, उकोसेणं अनंतपपसिए तहेब तत्थ णं जे से जुम्मपरसिप से जणं अट्ठपपसिए अट्ठपरसोगाढे पन्नत्ते, उक्कोसेणं अनंतपपसिए तहेव ।
२१. [प्र०] आयए णं भंते! संठाणे कतिपदेसिए कतिपएसोगाढे पन्नत्ते ? [30] गोयमा ! आयए णं संठाणे तिविदे पनते । तंजहा - सेढिआयते, पयरायते, घणायते । तत्थ णं जे से सेढिआयते से दुविहे पन्नत्ते, तंजहा - ओयपपसिए य जुम्म
१९. [प्र० ] हे भगवन् ! यस संस्थान केटला प्रदेशवाळु अने केटला आकाश प्रदेशमां अवगाढ छे ? [उ०] हे गौतम! त्र्यस्त्र संस्थान व्यस्तसंस्थान केटला बे प्रकारनुं क ुं छे. ते आ प्रमाणे- धन त्रयत्र अने प्रतरत्र्यत्र. तेमां जे प्रतर त्र्यत्र छे ते बे प्रकारनुं कह्युं छे ते आ प्रमाणे- ओजशिक अने युग्मप्रदेशिक, तेमां जे ओजप्रदेशिक प्रतर त्र्यन छे ते जघन्य त्रण प्रदेशवालुं अने त्रण आकाश प्रदेशमां अवगाढ छे, तथा उत्कृष्टथी अनंतप्रदेशबाळु अने असंख्य आकाशप्रदेशमां अवगाढ छे. तेमां जे युग्म प्रदेशिक प्रतर पन छे ते जघन्य छ प्रदेशयातुं अनेछ आकाश प्रदेशमा अवगाढ छे, बने उत्कृष्टधी अनंत प्रदेश अने असंख्य आकाश प्रदेशमा अवगाढ छे. तेमां जे धन त्रयस्त्र छेते वे प्रकार कहुं छे, ते आ प्रमाणे ओजप्रदेशिक अने युग्मप्रदेशिक, तेमां जे ओजप्रदेशिक "धन पक्ष के ते जघन्य पात्रीश प्रदेशवाळु अने पत्रिीश आकाश प्रदेशमां अवगाढ छे. उत्कृष्ट अनंत प्रदेशवाळं अने असंख्य प्रदेशमां अवगाढ छे. तेमां ज़े युग्मप्रदेशिक धन प्रपत्र के ते जघन्य चार प्रदेशवालुं अने चार आकाश प्रदेशमा अवगाढ छे, तथा उत्कृष्टषी अनंत प्रदेशवा अने असंख्य
प्रदेशमा अवगाढ छे.
प्रदेशवाकुं अने फेटला प्रदेशमां अवगाढ होय ?
२०. [प्र०] हे भगवन् ! चतुरस्र संस्थान केटला प्रदेशवाळु छे अने केटला आकाश प्रदेशमां अवगाढ होय छे ? [उ०] हे गौतम! चतुरस्र सं० केटा चतुरस्र - चतुष्कोण संस्थान बे प्रकारनुं छे, तेना वृत्त संस्थाननी पेठे घन चतुरस्र भने प्रतर चतुरस्र भेद कहेवा. यावत्-तेमा जे ओज प्रदेशिक प्रतर चतुरस्र के ते जघन्य नव प्रदेशमा अने नव आकाश प्रदेशमां अयगाढ के अने उत्कृष्ट अनंत प्रदेशवालुं अने असक्षम आकाशप्रदेशमा अवगाढ छे. अने जे गुम्म प्रदेशिक प्रतर चतुरस छे ते जघन्य चार प्रदेशवा अने चार आकाश प्रदेशमां अपगाढ छे, अने उत्कृष्ट अनंत प्रदेशवालुं अने असंख्य आकाशप्रदेशमां अवगाढ छे. तेमां जे घन चतुरस्र छे ते बे प्रकारनं कधुं छे, ते आ प्रमाणे- ओमप्रदेशिक अने युग्मप्रदेशिक, तेमां जे ओजप्रदेशिक धन चतुरख छे ते जघन्य सत्तापीश प्रदेशवा अने सत्तावीश आकाश प्रदेशमां अवगाढ छे, तथा उत्कृष्ट अनंत प्रदेशवालुं अने असंख्य आकाश प्रदेशमां अवगाढ छे. अने जे युग्म प्रदेशिक धन चतुरख ते जघन्य आठ प्रदेशमा अने आठ आकाश प्रदेशमां अवगाढ डे, अने उत्कृष्ट अनंत प्रदेशवा अने असंख्य आकाश प्रदेशमा अवगाढ छे.
२१. [प्र० ] हे भगवन् ! आयत संस्थान केटला प्रदेशवाळु छे अने केटला आकाशप्रदेशमां अवगाढ छे [उ०] हे गौतम ! भायत सं० केटला आयत संस्थान त्रण प्रकारनुं छे, ते आ प्रमाणे- १ श्रेणिआयत, प्रतरायत अने घनायत. तेमां जे श्रेणि आयत छे ते बे प्रकारनुं छे, ते आ
!
प्रदेशवाकुं अने
१९ * ओजप्रदेशिक घन त्र्यत्र जघन्य पांत्रीश प्रदेशोनुं थाय छे. तेमां प्रथम शोना प्रतर उपर बीजो दश प्रदेशोनो प्रतर, तेना उपर त्रीजो छ प्रवेशोनो प्रतर,
शोनो प्रतर अने तेना उपर एक परमाणु मूकवो. ए प्रमाणे पांत्रीश प्रदेशो थाय छे.
२०मा नवप्रदेशिक प्रहरी उपर तेवा मौजा के भार का एटले सत्तानी प्रदेश
आ प्रमाणे प्रथम पंदर प्रदेतेना उपर चोथो त्रण प्रदे
॥ चतुःप्रदेशिक प्रतरनी उपर बीजुं चतुष्प्रदेशिक प्रतर मुकवाथी आठ प्रदेशनुं युग्मप्रदेशिक घन चतुरस्र थाय छे.
२१ $ प्रदेशनी श्रेणिरूप श्रेण्यायत कहेवाय छे. तेमां जघन्य ओजप्रदेशिक श्रेण्यायत त्रणप्रदेशात्मक होय छे. ००० युग्मप्रदेशिक श्रेण्यायत वे प्रदेशनुं होय छे:
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प्रदेशिक पन र भाग .
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वे -- इत्यादि विष्कम्भ श्रेणिरूप प्रतरायत कद्देवाय छे. जाडाइ भने विष्कम्भ सहित अनेक श्रेणिओने घनायत कछे छे. ओजप्रदेशिक श्रेण्यायत जघन्य त्रिप्रदेशिक होय छेः- ००० अने युग्म प्रदेशिक श्रेण्यायत द्विप्रदेशिक छे:
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केटला आकाश प्रदेशमा अवगाढ होय ?
केटला आकाश प्रदेशमा अवगाढ होय १
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