________________
१५२ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक २४.-उद्देशक १. भवग्गणाई, उक्कोसेणं पंच भवगहणाई । कालादेसेणं जहन्नेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं दोहि पुष्चकोडीहिं अमहियाई, उकोसेणं छावढेि सागरोवमाइं तिहिं पुत्वकोडीहिं अमहियाई, एवतियं कालं सेवेजा, जाव-करेजा ।
८७. [प्र० जइ मणस्सेहिंतो उववजंति किं सन्निमणुस्सहिंतो उववजंति, असन्निमणुस्सहिंतो उववजति ? [उन गोयमा ! सन्निमणुस्सेहिंतो उववजंति, णो असन्नीमणुस्सेहिंतो उववजंति।
८८. [प्र०] जइ सन्निमणुस्सेहिंतो उववजन्ति किं संखेजवासाउयसन्निमणुस्सेहितो उववजंति, असंखेज० जावउववजंति ? [उ०] गोयमा! संखेजवासाउयसन्निमणुस्सेहितो उववजंति, णो असंखेजवासाउय० जाव-उववजन्ति ।
८९. [प्र०] जइ संखेजवासाउय० जाव-उववजन्ति किं पजत्तसंखेजवासाउय०, अपजत्तसंखेजवासाउय० १ [३०] गोयमा! पजत्तसंखेजवासाउय०, नो अपजत्तसंखेजवासाउय० जाव-उववजंति ।
९०. [प्र०] पजत्तसंखेजवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए नेरइएसु उववजित्तए से णं भंते ! कति पुढवीसु उववजेज्जा ? [उ०] गोयमा ! सत्तसु पुढवीसु उववजेजा, तं जहा-रयणप्पभाए, जाव-अहेसत्तमाए।
९१. [प्र०] पजत्तसंखेजवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववजित्तए से णं भंते ! केवतिकालटिइएसु उववजेजा ? [उ०] गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेणं सागरोवमद्वितीएसु उववजेजा।
९२. [प्र०] ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववजंति ? [उ०] गोयमा ! जहन्नेणं एक्को या दो वा तिन्नि था, उकोसेणं संखेजा उववजंति । संघयणा छ, सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलपुहुत्तं, उक्कोसेणं पंचधणुसयाई । एवं सेसं जहा सन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं जाव-भवादेसो'त्ति । नवरं चत्तारि णाणा तिन्नि अन्नाणा भयणाए । छ समुग्धाया केवलि
तथा काळनी अपेक्षाए जघन्यथी बे पूर्वकोटी अधिक तेत्रीश सागरोपम अने उत्कृष्ट त्रण पूर्वकोटी अधिक छासठ सागरोपम-एटलो काळ
यावत्-गमनागमन करे (९). संघी मनुष्योनो.
८७. [प्र०] जो ते (नारक ) मनुष्योथी आवी उत्पन्न थाय तो शं संज्ञी मनुष्योथी आवी उत्पन्न थाय के असंज्ञी मनुष्योथी नरकमा उपपात. आवी उत्पन्न थाय ! [उ०] हे गौतम ! ते संज्ञी मनुष्योथी आवी उत्पन्न थाय, पण असंज्ञी मनुष्योथी आवी उत्पन्न न थाय. संख्यात संशी म- ८८. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते संज्ञी मनुष्योथी आवी उत्पन्न थाय तो शुं संख्याता वर्षना आयुषवाळा संज्ञी मनुष्योथी आवी नुष्योनी नारकपणे
उत्पन्न थाय के असंख्याता वर्षना आयुषवाळा संज्ञी मनुष्योथी आवी उत्पन्न थाय ! [उ०] हे गौतम ! ते संख्याता वर्षना आयुषवाळा उत्पत्ति..
संज्ञी मनुष्योथी आवी उत्पन्न थाय, पण असंख्याता वर्षना आयुषवाळा संज्ञी मनुष्योथी आवी उत्पन्न न थाय. पर्याप्ता मनुष्योनी ८९. [प्र०] जो ते संख्याता वर्षना आयुषवाळा संज्ञी मनुष्योथी आवी उत्पन्न थाय तो शुं पर्याप्त संख्याता वर्षना आयुषवाळा नारकपणे उत्पत्ति.
संज्ञी मनुष्योथी आवी उत्पन्न थाय के अपर्याप्ता संख्याता वर्षना आयुषवाळा संज्ञी मनुष्योथी आवी उत्पन्न थाय! [उ०] हे गौतम! ते पर्याप्ता संख्याता वर्षना आयुषवाळा संज्ञी मनुष्योथी आवी उत्पन्न थाय, पण अपर्याप्ता संख्याता वर्षना आयुषवाळा संज्ञी मनुष्योथी
आवी उत्पन्न न थाय. उपपात.
९०. [प्र०] हे भगवन् ! संख्याता वर्षना आयुषवाळो पर्याप्त संज्ञी मनुष्य जे नैरयिकोमा उत्पन्न थवाने योग्य छे, ते हे भगवन् ! केटली नरकपृथिवीओमा उत्पन्न थाय ! [उ०] हे गौतम ! ते साते नरक पृथिवीओमां उत्पन्न थाय. ते आ प्रमाणे-१ रत्नप्रभा, यावत्-७
अधःसप्तम नरकपृथिवीमां. १संख्याता मनु
९१. [३०] हे भगवन् ! संख्याता वर्षना आयुषवाळो पर्याप्त संज्ञी मनुष्य, जे रत्नप्रभाना नैरयिकोमा उत्पन्न थवाने योग्य छे, ते प्यनो रत्नभानारक' हे भगवन् ! केटला काळनी स्थितिवाळा नैरयिकोमा उत्पन्न थाय ! [उ०] हे गौतम! ते जघन्यथी दस हजार वर्षना आयुषवाळा अने पणे उपपात.
"" उत्कृष्टथी एक सागरोपमना आयुषवाळा नैरयिकोमा उत्पन्न थाय. परिमाण.
९२. [प्र०] हे भगवन् ! तेओ (संख्यात वर्षना आयुषवाळा मनुष्यो) एक समये केटला उत्पन्न थाय ! [उ.] हे गौतम ! जघन्यथी एक बे के त्रण अने उत्कृष्टथी संख्याता उत्पन्न थाय छे. तेओने छए संघयण होय छे. शरीरनी उंचाई जघन्य बेथी नव आंगळ प्रमाण अने उत्कृष्ट पांचसो धनुष प्रमाण होय छे. बाकी बधु संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिकोनी पेठे यावत्-भवादेश सुधी कहे. पण विशेष एके मनुष्योने चार ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. केवलिसमुद्घात सिवाय छ समुद्घात होय छे. स्थिति अने
९२* अहिं चूर्णिकार कहे छे के, जे मनुष्य अवधि, मनःपर्यव अने आहारक शरीर प्राप्त करी त्यांथी परी नरकमा उपजे छे' ते मनुष्यने चार ज्ञान भने त्रण अज्ञान विकल्पे होय छे.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org