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जे बंध जीवना प्रयत्नथी थाय छे तेना मुख्य त्रण प्रकार काळनी अपेक्षाए बतावेला छे; अनादिअनंत, सादिअनंत अने सादिसांत. आमांनो छेल्लो सादिसांतवाळो प्रकार व्यवहारमा खूब प्रचलित छे. तेना पण मुख्य चार प्रकार बताववामां आव्या छे. आलावणबंध, अल्लिआवणबंध, शरीरबंध अने शरीरप्रयोगबंध. (भा० ३ पा० १०१)
__आ विषे वीगतवार उदाहरण साथेनी हकीकत उपर्युक्तपाने बंधना प्रकरणमां कहेवामां आवी छे जे वांचनारने अत्यंत रसदायक नीवडे तेवी छे.
- वळी, बीजे स्थळे परमाणुर्नु कंपन, परमाणुनां परिणाम, परमाणुनी अच्छेद्यता, परमाणुने मध्य होय छे के नहि ! परमाणुनो परस्पर स्पर्श, परमाणुनी परमाणुदशानी स्थिति, परमाणुना कंपननोसमय, शब्दपरमाणुनी शब्द तरीकेनी स्थितिनो समय वगेरे अनेक सूक्ष्म-सूक्ष्मतम विचारो बताव्या छे (भा०२ पा० २१६)
आना जेवी बीजी पण अनेक चर्चाओ जेने आपणे वैज्ञानिक कही शकीए तेवी आ सूत्रमा अने बीजा सूत्रोमां अनेक स्थळे आवेली छे पण विज्ञानशास्त्रनी मदद सिवाय ए चर्चाओ वधारे समजमां आवी शके तेवू नथी तेथी जिनप्रवचनने वधारे समजवामाटे विज्ञाननो अभ्यास अधिक उपयोगी अने आवकारदायक छ ते शक विनानी वात छे.
भगवाने जे आ बधी चर्चा करी छे ते बधी तेमनी आत्मशोधमांधी जन्मी छे एम कहेवू जराय खोटुं नथी. जीव अने तेना भेदो अने तेनी अनेक प्रकारनी स्थितिनी चर्चा, जीवमात्रनी समानता अने भिन्नभिन्न संस्कारोथी थयेली तेनी विचित्रता बतावा करेली छे. एकंदरे जोतां ए चर्चा सर्व कोईने मैत्रीभाव अने समभाव तरफ प्रेरे एवी छे अने जडद्रव्यना परिणामो अने स्थिति वगेरेनी चर्चा आपणने विश्वनुं वैविध्य बतावी निर्वेद तरफ लई जवामा साधनरूप बने तेवी छे.
आत्मशोधक माणस, एक ज पुद्गलना, संयोगवश भिन्नभिन्न परिणामो जाणी कंया परिणाममा ए राग करे अने कयामां ए घृणा करे ! आ बधु जोतां भगवानना प्रवचनमा जे जे चर्चाओ करवामां आवी छे ते बधी आत्मशोधनमाथी जन्मी छे अने आत्मशोधने पोषनारी छे ए हकीकत वारंवार कहेवी पडे एवी नथी. अने उपर कह्या प्रमाणे केटलीक चर्चाओ मात्र ज्ञाननी दृष्टिए पण करवामां आवी छे ए पण खरी वात छे.
रूढिच्छेद
व्याख्याप्रज्ञप्तिमा आवेली जीवनशुद्धि अने विश्वविज्ञाननी माहिती उपर प्रमाणे आप्या पछी श्रमण भगवान महावीरे पोताना वखतनी रूढिओने तोडवा जे प्रवचनधारा बहेवरावी छे ते विषे आपणे हवे अहीं कहेवार्नु छे. ए प्रवचनधारा आ सूत्रमा तेम बीजा सूत्रमा पण ठीकठीक प्रमाणमा उपलब्ध छे. श्रीउत्तराध्ययनसूत्रमा जातिवादथी थती सामाजिक विषमताने तोडवा भगवाने स्पष्ट शब्दोमा कयुं छे के जातिविशेषथी कोई पूजापात्र थई शकतो नथी पण गुणविशेषथी ज थई शके छे. ब्राह्मणकुलमा जन्मेलो के मात्र मुखथी ॐ ॐ नो जाप करनार ब्राह्मण नथी पण ब्रह्मचर्यथी ब्राह्मण बने छे. एवी रीते श्रमणकुलमा रहेनारो के कोई मात्र माथु मुंडावनारो श्रमण थई शकतो नथी पण जेनामा समता होय ते ज श्रमण कहेवाय छे. जंगलमा रहेवा मात्रथी कोई मुनि कहेवातो नथी पण मनन-आत्मचिंतन
चंडाळना कुलमा पेदा थएलो अने उत्तम गुणने धारण करनारो एवो हरिकेश नामे जितेन्द्रिय भिक्षु हतो. (१) जेओना चित्तमा क्रोध छे, अहंकार छे, हिंसा छे, असत्य छ, चौर्य छ,
अने मूर्छा छ तेवा जाति अने विद्याविहीन ब्राह्मणो पापक्षेत्र छे. (१४)
१ "सोवागकुलसंभूओ गुणुत्तरधरो मुणी । हरिएसबलो नाम आसि भिक्खू जिइंदिओ ॥१
कोहो य माणो य वहो य जेसिं मोसं अदत्तं च परिग्गहं च । . ते माहणा जाइविज्जाविहीणा
ताई तु खित्ताई सपावयाई ॥१४ सक्खं खु दीसइ तवोविसेसो
न दीसइ जाइविसेस कोइ। सोवागपुत्तं हरिएससाहुं जस्सेरिसा इट्टी महाणुभावा" ॥ ३७
-उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-१२
तपनी विशेषता साक्षात देखाय छे पण जातिनी विशेषता कशी देखाती
नथी. कारण के हरिकेश साधु, चंडाळनो पुत्र होवा छतां तप अने संयमना कारणथी महाप्रभावयुक्त शक्तिशाली थई शक्यो छे. (३५)
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