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एज प्रकरणमा आगळ चालतां वनस्पतिर्नु मूळ, वनस्पतिनो कंद, वनस्पतिनी शाखाओ, वनस्पतिनां बी, वनस्पतिनां फळो, वनस्पतिना पांदडां वगेरेने आहार पहोंचवानी पद्धति पण बतावेली छे. (भा० ३ पा० १२) आ हकीकत विषे शास्त्रोक्त वनस्पतिविद्याने जाणनार कोई पंडित जो वनस्पतिविद्याविशारद जगदीशचंद्र वसु साथे वातचीत करशे तो घणो विशेष प्रकाश पाडी शकशे अने भगवान महावीरे जणावेली हकीकतनी पण कसोटी थशे.
आठमा शतकना बीजा उद्देशकमां आशीविषनी माहिती आपेली छे. आशी एटले दाढ. जेनी दाढमां विष छे तेने आशीविष कहेवामां आवे छे. तेना बे प्रकार छे. जन्मथी आशीविष अने कर्मथी आशीविष. जन्मथी आशीविष चार प्रकारना छे. वींछीनी जातिना, देडकानी जातिना, मनुष्यनी जातिना अने सर्पनी जातिना आशीविष. ए चारे प्रकारना झेरी प्राणीओनां झेरनुं सामर्थ्य बतावतां भगवान कहे छे के वींछीनी जातिनां झेरी जंतुओ अर्ध भारत जेवडा शरीरने, देडकानी जातिना झेरी जंतुओ भरतक्षेत्र जेवडा शरीरने, सर्पनी जातिनां झेरी जंतुओ जंबुद्वीप जेवडा मोटा शरीरने अने मनुष्यनी जातिनां झेरी प्राणीओ मनुष्यलोक जेटला विशाळ शरीरने झेरथी व्याप्त करवा समर्थ छे. आटलं कह्या पछी भगवान कहे छे के ए चारे प्रकारना सोना झेरनुं सामर्थ्य जे उपर जणावेलुं छे ते, ते शेरी प्राणीओए कदी बताव्युं नथी, बतावतां नथी अने बताववानां पण नथी. (भा०३ पा० ५६) भगवाने तो मात्र ते ते प्राणीओना विषनी शक्तिनो ख्याल आपवा पूरती ते ते हकीकतो जणावेली छे. आ विषे सर्पशास्त्रना अभ्यासी पासे जिनप्रवचननो भक्त प्रकाश नखावशे तो जरूर भगवानना प्रवचननो महिमा वधशे तेमां शक नथी.
स्वार्थी मनुष्य प्राणी केवो झेरी छे, तेना झेरनुं सामर्थ्य केवं प्रबळ छे अने केटलू बधु संहारक छे' ए बधी हकीकत आध्यात्मिक दृष्टिथी तो समजाय तेबी छे. विषकन्या अने जीवती डाकणोनी वातो मनुष्यना सर्पपेठेना झेरीपणानी साबीती माटे कही शकाय एवी छे तो पण अहीं मनुष्यने जे रीते झेरी तरीके वर्णव्यो छे ए वस्तु तो अवश्य शोधने पात्र छे.
छठा शतकना सातमा उद्देशकमा भगवानने गौतम पूछे छे के हे भगवान! कोठामां अने डालामां भरेला अने उपरथी छाणथी लीपेलां, माटी वगेरेथी चांदेलां एवा शाल, चोखा, घउं तथा जवनी ऊगवानी शक्ति क्यांसुधी टकी रहे ! उत्तर आपतां भगवान कहे छे के हे गौतम ! ओछामा ओछु अंतर्मुहूर्त अने वधारेमां वधारे त्रण वर्ष सुधी ए बधां अनाजनी ऊगवानी शक्ति कायम रही शके छे.
आ ज प्रमाणे कलाय ( वटाणा) मसूर, तल, मग, अडद, वाल, कळथी, एक जातना चोखा, तूवेर अने चणा ए विषे पूर्वोक्त प्रश्नना जवाबमां भगवान कहे छे के कलाय वगेरेनी ऊगवानी शक्ति वधारमा वधारे पांच वर्ष सुधी-रहे छे अने ओछामा ओछी अंतर्मुहुर्त रहे छे. वळी अळसी, कुसुंभ, कोद्रवा, कांग, बंटी, बीजी जातनी कांग, बीजी जातना कोद्रवा, शण, सरसव, मूळानां बी (मलकवीजानि) ए बधांनी ऊगवानी शक्ति वधारेमां वधारे सात वर्ष सुधी कायम रहे छे अने ओछामा ओछी अंतर्मुहूर्त.
आ चर्चा पण आपणने अतिरस आपे एवी छे. पण आ विषे कोई वनस्पतिशास्त्रना अभ्यासी द्वारा ऊहापोहपूर्वक प्रकाश नखावी शकाय तो ज ते वधारे रसिक थाय तेवु छे. ___आ ग्रंथमा जेम आत्माने लगती बधी बाजुओनो विचार करवामां आव्यो छे तेम पुद्गल-जड द्रव्य विषे पण तेवो स्फुट विचार अनेक जग्याए बताववामां आव्यो छे.
भगवान महावीर मूर्तिमंत जडद्रव्यना-प्रयोगथी परिणाम पामेलां, प्रयोग अने अप्रयोग बन्नेथी परिणाम पामेला अने अप्रयोगथी परिणाम पामेला एवा-त्रण विभाग बतावे छे अने कहे छे के अप्रयोगथी परिणाम पामेला मूर्तिमंत जडद्रव्यो विश्वमां वधारमा वधारे छे. एथी ओछां, प्रयोग अने अप्रयोगथी परिणाम पामेलां अने सौथी ओछां, प्रयोगथी परिणाम पामेला छे. तेमनी आ गणना आखा विश्वने लक्षीने छे. अहिं प्रयोगनो अर्थ जीवनो व्यापार अने अप्रयोगनो अर्थ स्वभाव समजवानो छे.
एक स्थळे पदार्थोना परस्परना बंध विषे कहेतां भगवान महावीरे गौतमने का छे के बंध बे प्रकारना छे. जे बंध जीवना प्रयत्नथी थतो देखाय छे ते प्रयोगबंध कहेवाय छे. जे बंध जीवना प्रयत्न वगर एमने एम थतो देखाय ते वीससाबंध कहेवाय छे.
पाछलो वीससाबंध अनादि पण होय छे. आकाशद्रव्यना प्रदेशोनो जे परस्पर संबंध ते अनादि वीससाबंध छे. परमाणुपरमाणुओनो, द्रव्यद्रव्यनो अने वादळां वगेरेनो जे परस्पर संबंध छे ते सादि वीससाबंध कहेवाय छे. आ बंध त्रण प्रकारनो कहेवामा आव्यो छे. परमाणुपरमाणुना एटले रूक्ष अने स्निग्ध परमाणुना बंधने बंधननिमित्तक कहेवामां आवे छे, ते ओछामा ओछो एक समय सुधी अने वधारेमा वधारे असंख्य काल सुधी टके छे. द्रव्यद्रव्यना एटले गोळ, चोखा, दारु वगेरे ए बधां जे भाजनमा भरवामां आवे
तेनी साथे बहु समय जतां चोंटी जाय छे ते तेमना परस्परना संबंधने भाजननिमित्तकबंध कहवामां आवे छे, ते ओछामा ओछो अंतमुहूर्त अने वधारेमां वधारे संख्येय काल सुधी रहे छे अने वादळां वगेरेना परस्परना बंधने परिणामनिमित्तकबंध कहेलो छे अने ते ओछामा ओछो एक समय अने वधारमा वधारे छ महिना सुधी टके छे..
भ.सू.2
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