________________
प्रकार.
द्रव्यपरमाणुना
प्रकार.
११९ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक २०.-उदेशक ६. १२. [प्र०] कइविहे भंते ! परमाणू पन्नत्ते ? [उ०] गोयमा! चउधिहे परमाणू पन्नत्ते तंजहा-१ वचपरमाण, ९ खेतपरमाणू, ३ कालपरमाणु, ४ भावपरमाणू ।
१३. [प्र०] दधपरमाणू णं भंते ! कइविहे पन्नत्ते ? [उ०] गोयमा ! चउधिहे पन्नत्ते तंजहा-१ अच्छेजे, २ अमेजे, ३ अडझे, ४ अगेझे।
१४. [५०] खेत्तपरमाणू णं भंते ! काविहे पन्नत्ते ? [३०] गोयमा ! चउधिहे पनवे तंजहा-१ अणचे, २ अमज्झे, ३ अपदेसे, ४ अविभाइमे।
१५. [प्र०] कालपरमाण-पुच्छा। [उ०] गोयमा ! चउधिहे पन्नत्ते, तंजहा-१ अवन्ने, २ अगंधे, ३ अरसे, ४ अफासे।
१६. [प्र०] भावपरमाणू णं भंते ! कइविहे पन्नत्ते ? [उ०] गोयमा ! चउधिहे पन्नत्ते तंजहा-१ वनमंते, २ गंधमंते, ३ रसमंते, ४ फासमंते । 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव-विहरति ।
वीसइमे सए पंचमो उद्देसो समत्तो। परमाणुना चार १२. [प्र०] हे भगवन् ! परमाणु केटला प्रकारनो कह्यो छे ! [उ०] हे गौतम ! परमाणु चार प्रकारनो कह्यो छे, ते आ
प्रमाणे-१ *द्रव्यपरमाणु, २ क्षेत्रपरमाणु, ३ कालपरमाणु अने ४ भावपरमाणु.
१३. [प्र०] हे भगवन् ! द्रव्यपरमाणु केटला प्रकारनो कह्यो छे ! [उ०] हे गौतम ! द्रव्यपरमाणु चार प्रकारनो कह्यो छे, ते आ
प्रमाणे-१ अछेद्य, २ अभेद्य, ३ अदाह्य अने ४ अग्राह्य. क्षेत्रपरमाणुना १४. [प्र०] हे भगवन् ! क्षेत्रपरमाणु केटला प्रकारनो कह्यो छे ? [उ०] हे गौतम ! क्षेत्रपरमाणु चार प्रकारनो कह्यो छे; ते आ
प्रमाणे-१ अनर्ध, २ अमध्य, ३ अप्रदेश अने ४ अविभाग,
१५. [प्र०] हे भगवन् ! कालपरमाणु केटला प्रकारनो कह्यो छे ! [उ०] हे गौतम ! चार प्रकारनो कह्यो छे, ते आ प्रमाणे१ अवर्ण, २ अगंध, ३ अरस अने ४ अस्पर्श.
१६. [प्र०] हे भगवन् ! भावपरमाणु केटला प्रकारनो कह्यो छे ? [उ०] हे गौतम ! चार प्रकारनो कह्यो छे, ते आ प्रमाणे१ वर्णवाळो, २ गंधवाळो, ३ रसवाळो अने ४ स्पर्शवाळो. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे.' एम कही [ भगवान् गौतम ] यावत्-विहरे छे.
वीशमा शतकमां पंचम उद्देशक समाप्त.
छट्टओ उद्देसो। १. [प्र०] पुढविकाइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए य सकरप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे मविए सोहम्मे कप्पे पुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! किं पुर्वि उववजित्ता पच्छा आहारेजा पुषि आहारिता
षष्ठ उद्देशक. पृथिवीकायिकर्नु
१. [प्र०] हे भगवन्! जे पृथिवीकायिक जीव, आ रत्नप्रभा पृथिवी अने शर्कराप्रभा पृथिवीनी वच्चे मरणसमुद्घात करीने सौधर्मकआहार अने उत्प- रूपमां पृथिवीकायिकपणे उत्पन्न थवाने योग्य छे, ते शुं पहेलां उत्पन्न थईने पछी आहार करे के पहेला आहार करीने पछी उत्पन्न थाय ! तिनुं पौर्वापर्व
[उ०] हे गौतम ! ते पहेलां उत्पन्न थईने पछी आहार करे, अथवा पहेलां आहार करीने पछी उत्पन्न थाय-इत्यादि हकीकत सत्तरमा
प्रकार.
काळपरमाणुना
प्रकार.
भावपरमाणुना प्रकार.
१२ * वर्णादि धर्मनी विवक्षा सिवायनो एक परमाणु द्रव्य परमाणु कहेवाय छे; कारण के अहिं केवल द्रव्यनी ज विवक्षा छ, एक आकाश प्रदेश क्षेत्र परमाणु, समय काळ परमाणु अने वर्णादि धर्मना प्राधान्यनी विवक्षा थी भाव परमाणु कहेवाय छे. - १४१ परमाणुना समसंख्यावाळा अवयव नथी माटे ते अनर्ध, विषम संख्यावाळा अवयवो नथी माटे अमध्य, अवयवो नथी माटे अप्रदेश अने तेनो विभाग थई शकतो नथी माटे अविभाग कहेवाय छे.
११ अन्तर्मुहूर्तनुं आयुष बाकी होय त्यारे मरणान्त दुःखथी पीडित थयेल जीव पोताना आत्मप्रदेशो वडे मुखादि छिद्रोने पूरीने तथा शरीर प्रमाण पहोळाइ अने जाडाइ राखी तथा लंबाइमा उत्पत्ति स्थानपर्यंत. क्षेत्र व्यापीने अन्तर्मुहूर्तमा मरण पामे अने आयुष कर्मना घणा पुद्गलोनो क्षय करे ते मरणसमु
धात कहेवाय छे. कोइ एक जीव समुद्घात करीने भवान्तरमा उत्पन्न थाय छे अने त्यां आहार करे छे अने शरीर बांधे छ, कोइ जीव समुद्घातथी निवृत्त थई पोताना शरीरमा आवीने फरी समुद्घात करी भवान्तरमा उत्पन्न थाय छे. जुओ भग• खं० २ श० ६ उ०६ पृ. ३१६.
जीवो देशथी अने सर्वथी एम बे प्रकारे मरणसमुद्घात करे छे, ज्यारे देशथी मरणसमुद्घात करे छे त्यारे ते मरणसमुद्घातथी निवृत्त यई पूर्वना शरीरने सर्वथा छोडी दडानी गतिथी जाय छे अने ते प्रथम उत्पन्न थाय छे भने पछी आहार करे छे. पण जे सर्व समुद्घात करे छे ते ईलिका गतिथी त्यां जई पछी शरीरनो त्याग करे छे ते थी प्रथम आहार करे छे अने पछी उत्पन्न थाय छे-जुओ भग० ख०० १७ उ०६ पृ. ४०.
Jain Education international
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org