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________________ १०८ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक २०.-उद्देशक ५. ९. [प्र०] नवपएसियस्स पुच्छा । [उ०] गोयमा! सिय एगवन्ने, जहा अट्टपएसिए जाव-'सिय चउफासे पन्नत्ते । जइ एगवन्ने एगवन्न-दुवन्न-तिवन्न-चउवन्ना जहेव अट्ठपएसियस्स । जइ पंचवन्ने सिय कालए य नीलए य लोहियए य हालिहए य सुकिल्लए य १, सिय कालए य नीलए य लोहियए य हालिद्दए य सुक्किलगा य २, एवं परिवाडीए एकतीसं भंगा भाणियवा जाव-सिय कालगा य नीलगा य लोहियगा य हालिद्दगा य सुकिलए य। एए एकत्तीसं भंगा। एवं एकग-दुयगतियग-चउक्कग-पंचगसंजोएहिं दो छत्तीसा भंगसया भवंति । गंधा जहा अट्टपएसियस्स । रसा जहा एयस्स चेव वन्ना, फासा जहा चउपएसियस्स। १०. [प्र०] दसपएसिए णं भंते ! खंधे-पुच्छा । [उ०] गोयमा! सिय एगवन्ने जहा नवपएसिए जाव-'सिय चउफासे पन्नत्ते' । जइ एगवन्ने एगवन्न-दुवन्न-तिवन्न-चउवन्ना जहेव नवपएसियस्स । पंचवन्ने वि तहेव, नवरं बत्तीसतिमो भंगो भन्नति । एवमेते एक्कग-दुयग-तियग-चउक्कग-पंचगसंजोएसु दोन्नि सत्ततीसा भंगसया भवंति । गंधा जहा नवपएसियस्स । रसा जहा एयरस चेव वन्ना । फासा जाव-चउप्पएसियस्स । जहा दसपएसिओ एवं संखेजपएसिओ वि, एवं असंखेजपएसिओ वि, सुहुमपरिणओ अणंतपएसिओ वि एवं चेव । ११. [प्र०] बायरपरिणए णं भंते ! अणंतपएसिए खंधे कतिवन्ने ? [उ०] एवं जहा अट्ठारसमसए जाव-'सिय अट्टफासे पन्नत्ते'। वन-गंध-रसा जहा दसपएसियरस । जइ चउफासे सच्चे कक्खड़े सच्चे गरुए सधे सीए सवे निद्धे १, सवे कक्खडे सच्चे गरुए सवे सीए सवे लुक्खे २, सच्चे कक्खडे सव्वे गरुए सच्चे उसिणे सो निद्धे ३, सो कक्खडे सधे गरुए सवे उसिणे सवे लुक्खे ४, सच्चे कक्खडे सच्चे लहुए सवे सीए सवे निद्धे ५, सच्चे कक्खडे सच्चे लहुए सवे सीए सवे लुक्खे ६, सवे कवखडे सच्चे लहुए सव्वे उसिणे सच्चे निद्धे ७, सवे कक्खडे सव्वे लहुए सच्चे उसिणे सधे लुक्खे ८, सवे मउए सवे गरुए सवे सीए सच्चे निद्धे ९, सच्चे मउए सच्चे गरुए सवे सीए सधे लुक्खे १०, सच्चे मउए सच्चे गरुए सचे उसिणे सच्चे मंगो. न्ध नाबणादिन आ. .. .. . . ..... ..... नव प्रदेशिक स्क- ९. [प्र०] हे भगवन् ! नव प्रदेशिक स्कंध केटला वर्णवाळो होय !-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! अष्टप्रदेशिक स्कंधनी पेठे कदाच धना वर्णादिना एक वर्णवाळो यावत्-'कदाच चार स्पर्शवाळो होय छे.' जो ते एक वर्णवाळो इत्यादि होय तो एक, बे, त्रण अने चार वर्णना भांगाओ अष्टप्रदेशिक स्कंधनी पेठे जाणवा. हवे जो ते पांचवर्णवाळो होय तो कदाच एक देश काळो, लीलो, रातो, पीळो भने धोळो होय १, कदाच एक देश काळो, लीलो, रातो, पीळो अने अनेक देशो धोळा होय २, ए प्रमाणे क्रम पूर्वक एकत्रीश भांगाओ कहेवा. यावत्कदाच तेना अनेक देशो काळा, लीला, राता, पीळा अने एक देश धोळो होय ३१. ए प्रमाणे एकत्रीश भांगा जाणवा. एम वर्णने आश्रयी असंयोगी ५, द्विकसंयोगी ४०, त्रिकसंयोगी ८०, चतुःसंयोगी ८० अने पंचसंयोगी ३१-बधा मळीने बसो ने छत्रीश भांगा नव प्रदेशिक स्क- थाय छे. गंधसंबंधे अष्टप्रदेशिकनी जेम कहे. रस संबंधे पोताना वर्णनी जेम जाणवू अने स्पर्श संबंधे चतुष्प्रदेशिक स्कंधनी पेठे कहेवू. [ए प्रमाणे नवप्रदेशिक स्कंधने आश्रयी वर्णना २३६, गंधना ६, रसना २३६ अने स्पर्शना ३६, सर्व मळीने ५१४ भांगाओ थाय छे.] दश प्रदेशिक स्क- १०. [प्र०] हे भगवन् ! दशप्रदेशिक स्कंध संबंधे प्रश्न. [उ०) हे गौतम ! नवप्रदेशिक स्कंधनी पेठे कदाच एक वर्णवाळो न्धना वर्णादिना भंगो. होय, यावत्-कदाच चार स्पर्शवाळो होय. जो ते एक वर्णवाळो इत्यादि होय तो, एक, बे, त्रण अने चार वर्ण संबंधे नवप्रदेशिक स्कंधनी जेम कहे. जो ते पांच वर्णवाळो होय तो पण नवप्रदेशिकनी पेठे ज जाणवू. पण विशेष ए के, अहिं *बत्रीशमो भांगो अधिक कहेवो. ए प्रमाणे असंयोगी ५, द्विकसंयोगी ४०, त्रिकसंयोगी ८०, चतुःसंयोगी ८० अने पंचसंयोगी ३२-बधा मळीने बसोने साडत्रीश भांगा थाय छे. गंध संबंधे नवप्रदेशिक स्कन्धनी पेठे भांगा कहेवा. रसना भांगा पोताना वर्णनी पेठे जाणवा. अने स्पर्श संबंधी भांगा दश प्रदेशिक स्क- चतुष्प्रदेशिकनी पेठे जाणवा. [ए प्रमाणे दशप्रदेशिक स्कंधने आश्रयी वर्णना २३७, गंधना ६, रसना २३७, अने स्पर्शना ३६. बधा न्धना ५१६ भंगो. मळीने ५१६ भांगाओ थाय छे.] जेम दशप्रदेशिक स्कंध कह्यो तेम संख्यातप्रदेशिक, असंख्यातप्रदेशिक अने सूक्ष्मपरिणामवाळो अनंतप्र देशिक स्कंध पण जाणवो. अनंत प्रदेशिक ११. [प्र०] हे भगवन् ! बादरपरिणामवाळो (स्थूल) अनंतप्रदेशिक स्कंध केटला वर्णवाळो होय!-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! 'अढारमा शतकमां कह्या प्रमाणे यावत्-'ते कंदाच आठ स्पर्शवाळो पण कह्यो छे' त्यां सुधी जाणवू. तेना वर्ण, गंध अने रसना भांगाओ स्कन्धना वर्णा दिना दशप्रदेशिक स्कंधनी पेठे जाणवा. हवे जो ते चारस्पर्शवाळो होय तो, कदाच सर्व कर्कश, सर्व गुरु, सर्व शीत अने सर्व स्निग्ध होय १, कदाच सर्व कर्कश, सर्व गुरु, सर्व शीत अने सर्व रुक्ष होय २, कदाच सर्व कर्कश, सर्व गुरु, सर्व उष्ण अने सर्व स्निग्ध होय ३, कदाच सर्व कर्कश, सर्व गुरु, सर्व उष्ण अने सर्व रुक्ष होय ४, कदाच सर्व कर्कश, सर्व लघु, सर्व शीत अने सर्व स्निग्ध होय ५, कदाच सर्व कर्कश, सर्व लघु, सर्व शीत अने सर्व रुक्ष होय ६, कदाच सर्व कर्कश, सर्व लघु, सर्व उष्ण अने सर्व स्निग्ध होय ७, कदाच सर्व कर्कश, सर्व लघु, सर्व उष्ण अने सर्व रुक्ष होय ८, कदाच सर्व मृदु-कोमळ, सर्व गुरु, सर्व शीत अने सर्व स्निग्ध होय ९, कदाच १. * अनेक देशो काळा, लीला, राता, पीळा भने धोळा होय छे ३२. ११ भग० खं०४ श०१८ उ०६पृ. ६४, भंगो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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