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________________ शतक २०.-उद्देशक ५. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. १०७ य हालिहए य सुकिल्लए य १५, सिय कालगा य नीलगा य लोहियए य हालिद्दए य सुकिल्लए य १६ । एए सोलस भंगा, एवं समेते एकग-दुयग-तियग-चउक्कग-पंचगसंजोगेणं दो सोला भंगसया भवंति । गंधा जहा चउप्पएसियस्स । रसा जहा एयस्स चेव वन्ना । फासा जहा चउप्पएसियस्स । ८. [प्र०] अट्टपएसियस्स भंते ! खंधे०-पुच्छा। [उ०] गोयमा ! सिय एगवन्ने जहा सत्तपपसियस्स जाव-सिय चउफासे पन्नत्ते जइ एगवन्ने एवं एगवन्नदुवन्नतिवन्ना जहेव सत्तपएसिए । जइ चउवन्ने सिय कालए य नीलए य लोहियए य हालिद्दए य १, सिय कालए य नीलए य लोहियए य हालिहगा य, एवं जहेव सत्तपएसिए जाव-सिय कालगा य नीलगा य लोहियगा य हालिहगे य १५, सिय कालगा य नीलगा य लोहियगा य हालिद्दगा य १६' । एर, सोलस भंगा, एवमेते पंच चउक्कसंजोगा, एवमेते असीति भंगा ८० । जइ पंचवन्ने सिय कालए य नीलए य लोहियए य हालिहए य सुकिल्लए य १, सिय कालए य नीलए य लोहियगे य हालिद्दगे य सुकिल्लगा य २, एवं एएणं कमेणं भंगा चारेयवा जाव-सिय कालए य नीलगा य लोहियगा य हालिद्दगा य सुकिल्लगे य १५, एसो पन्नरसमो भंगो, सिय कालगा य नीलगे य लोहियगे य हालिद्दर य सुकिल्लए य १६, सिय कालगा य नीलगे य लोहियगे य हालिहगे य सुकिल्लगा य १७, सिय कालगा य नीलगे य लोहियगे य हालिद्दगा य सुकिल्लए य १८, सिय कालगा य नीलगे य लोहियगे य हालिइगा य सुकिल्लगा य १९, सिय कालगा य नीलगे य लोहियगा य हालिद्दए य सुकिल्लए य २०, सिय कालगा य नीलगे य लोहियगा य हालिद्दए य सुकिल्लगा य २१, सिय कालगा य नीलए य लोहियगा य हालिद्दगा य सुकिल्लए य २२, सिय कालगा य नीलगा य लोहियगे य हालिद्दए य सुकिल्लए य २३, सिय कालगा य नीलगा य लोहियगे य हालिइए य सुकिल्लगा य २४, सिय कालगा य नीलगा य लोहियगे य हालिद्दगा य सुकिल्लए य २५, सिय कालगा य नीलगा य लोहियगा य हालिद्दए य सुकिल्लए य २६, एए पंचसंजोएणं छवीसं भंगा भवंति, एवमेव सपुवावरेणं एक्कग-दुयग-तियग-चउक्कग-पंचगसंजोएहिं दो एकतीसं भंगसया भवंति । गंधा जहा सत्तपएसियस्स, रसा जहा एयस्स चेव वन्ना, फासा जहा चउप्पएसियस्स। पेठे जाणवू. अहिं जेम वर्णना कह्या तेम रसना भांगा जाणवा अने स्पर्शना भांगा चतुष्प्रदेशिक स्कंधनी पेठे जाणवा. [ए प्रमाणे सप्त- सात प्रदेशिक स्क प्रदेशिक स्कंधने आश्रयी वर्णना २१६, गंधना ६, रसना २१६ अने स्पर्शना ३६. मळीने कुल ४७४ भागाओ थाय छे. न्धना वादिने आ श्रयी ४७४ भांगा. ८.प्रि०] हे भगवन् ! आठ प्रदेशवाळो स्कंध केटला वर्णवाळो होय?-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम! ते कदाच एक वर्णवाळो होय- आठ प्रदेशिक स्क ___धना वर्णादिना इत्यादि सप्तप्रदेशिक स्कंधनी पेठे यावत्-कदाच 'चार स्पर्शवाळो होय वगेरे कहेवू.' हवे जो ते एक वर्णवाळो-इत्यादि होय तो तेना एक भगो. वर्ण, बे वर्ण अने त्रण वर्णना भांगाओ सप्तप्रदेशिक स्कंधनी पेठे समजवा. जो ते चारवर्णवाळो होय तो, कदाच तेनो एक देश काळो, लीलो, रातो अने पीळो होय १. कदाच तेनो एक देश काळो, लीलो, रातो अने अनेक देशो पीळा होय २. ए प्रमाणे सप्तप्रदेशिक स्कंधनी पेठे पंदर भांगा जाणवा, यावत्--'अनेक देशो काळा, लीला, राता अने एक देश पीळो होय' १५. सोळमो भंग-कदाच अनेक देशो काळा, लीला, राता अने पीळा होय. १६. एक चतुष्कसंयोगमा सोळ भांगाओ थाय छे. बधा मळीने पांच चतुष्कसंयोगन सोळ सोळ भांगा करतां एंशी भांगा थाय छे. हवे जो ते पांच वर्णवाळो होय तो कदाच एक देश काळो, लीलो, रातो, पीलो अने धोठो होय १, कदाच एक देश काळो, लीलो, रातो, पीळो अने अनेक देशो धोळा होय. ए प्रमाणे अनुक्रमे भांगाओ कहेवा, यावत् एक देश काळो, अनेक देशो लीला, राता, पीळा अने एक देश धोळो होय १५. ए पंदरमो भांगो जाणवो. कदाच अनेक देशो काळा, एक देश लीलो, रातो, पीळो अने धोळो होय १६, कदाच अनेक देशो काळा, एक देश लीलो, रातो, पीळो अने अनेक देशो धोळा होय १७, कदाच अनेक देशो काळा, एक देश लीलो, रातो, अनेक देशो पीळा अने एक देश धोळो होय १८, कदाच अनेक देशो काळा, एक देश लीलो, रातो अने अनेक देशो पीळा अने धोळा होय १९, कदाच अनेक देशो काळा, एक देश लीलो, अनेक देशो राता, एक देश पीलो अने धोळो होय २०, कदाच अनेक देशो काळा, एक देश लीलो, अनेक देशो राता, एक देश पीळो, अने अनेक देशो धोळा होय २१, कदाच अनेक देशो काळा, एक देश लीलो, अनेक देशो राता, पीळा अने एक देश धोळो होय २२, कदाच अनेक देशो काळा, लीला, एक देश रातो, पीळो अने धोळो होय २३, कदाच अनेक देशो काळा, लीला, एक देश रातो, पीळो अने अनेक देशो धोळा होय २४, कदाच अनेक देशो काळा, लीला, एक देश रातो, अनेक देशो पीळा अने एक देश धोळो होय २५, कदाच अनेक देशो काळा, लीला, राता, एक देश पीळो अने धोळो होय २६. ए प्रमाणे ए पंच संयोगना पूर्वोक्त छन्वीश भांगाओ थाय छे. अने पूर्वापर बधा मळीने असंयोगी ५, द्विकसंयोगी ४०, त्रिकसंयोगी १८०, चतुःसंयोगी ८० अने पंचसंयोगी २६-एम वर्णना बसो ने एकत्री नागाओ थाय छे. गंध संबंधे सप्तप्रदेशिकनी पेठे भांगाओ समजवा. वर्णोनी पेठे रसो कहेवा, अने स्पर्शना भांगा चतुष्प्रदेशिकनी पेठे कहेवा. [ए प्रमाणे अष्टप्रदेशिक स्कंधने आश्रयी वर्णना २३१, गंधना बट प्रदशिक स्क बना वादिने आ६, रसना २३१, अने स्पर्शना ३६ सर्व मळीने ५०४ भांगाओ थाय छे. 1 अयी ५०४ भांगा Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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