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________________ १०२ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक २०.-उद्देशक ५. सिय हालिहए य सुकिल्लए य भंगा ३, एवं सचे ते दस दुयासंजोगा भंगा तीसं भवंति । जइ तिवन्ने सिय कालए य नीलए य लोहियए. य १, सिय कालए य नीलए य हालिइए य २, सिय कालए य नीलए य सुकिल्लए य ३, सिय कालए य लोहियए य हालिद्दए य ४, सिय कालए य लोहियप य सुकिल्लए य ५, सिय कालए य हालिइए य सुक्किलए य ६, सिय नीलए य लोहियए य हालिद्दए य ७, 'सिय नीलए य लोहियए य सुकिल्लए य ८, सिय नीलए य हालिहए य सुकिल्लए य १, सिय लोहियए य हालिद्दए य सुकिल्लए य १०. एवं पए दस तियासंजोगा । जइ एगगंधे सिय सुम्मिगंधे १, सिय दभिगंधे २जह दुगंधे सिय सुब्भिगंधे य दुम्मिगंधे य ३ भंगा । रसा जहा वना । जब दुफासे सिय सीए य निय, एवं जहेष दुपएसियस्स तहेव चत्तारि भंगा ४ । जइ तिफासे सवे सीए देसे निद्धे देसे लुक्खे १, सवे सीप देसे निद्धे देसा लुक्खा २, सवे सीए देसा निद्धा देसे लुक्खे ३, सवे उसिणे देसे निद्धे देसे लुफ्खे ३ एत्य वि मंगा तिन्नि, सच्चे निद्ध देसे सीए देसे उसिणे भंगा तिन्नि ९, सवे लुक्खे देसे सीए देसे उसिणे भंगा तिन्नि एवं १२ । जब चउफासे देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे १, देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसा लुक्खा २, देसे सीए देसे उसिणे देसा निशा देसे लक्खे ३. देसे सीए देसा उसिणा देसे निद्ध देसे लुफ्खे ४, देसे सीए देसा उसिणा देसे निद्ध देसा लुक्खा ५, देसे सीए देसा उसिणा देसा निद्धा देसे लुक्खे ६, देसा सीया देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुफ्खे ७, देसा सीया देते उसिणे देसे निद्ध देसा लुक्खा ८, देसा सीया देसे उसिणे देसा निद्धा देसे लुक्खे ९. एवं एए तिपएसिए फासेसु पणवीसं भंगा। . ____४. [प्र०] चउप्पएसिए णं भंते ! बंधे कतिवन्ने ? [उ०] जहा अट्ठारसमसए जाव-सिय चउफासे पन्नते' । जह एगवन्ने सिय कालए य जाव-सुकिल्लए ५ । जइ दुवन्ने सिय कालए य नीलए य १, सिय कालप य नीलगा य २, सिय कालगा य नीलए य ३, सिय कालगा य नीलगा य ४ । सिय कालए य लोहियए य । पत्थ वि चत्तारि भंगा ४ । सिय शीत अने तेनो एक देश स्निग्ध अने एक देश रूक्ष होय १. अथवा सर्व शीत, एक देश स्निग्ध अने अनेक देशो रुक्ष होय २. अथवा सर्व शीत, अनेक देशो स्निग्ध अने एक देश रुक्ष होय ३. कदाच सर्व उष्ण, एक देश स्निग्ध अने एक देश रुक्ष होय. अहिं पण पूर्व प्रमाणे त्रण भांगा जाणवा ३. अथवा कदाच सर्व स्निग्ध, एक देश शीत अने एक देश उष्ण होय. अहिं पण पूर्वनी पेठेत्रण भांगा जाणवा ३. अथवा कदाच सर्व रुक्ष, एक देश शीत अने एक देश उष्ण होय. अहिं पण पूर्व प्रमाणे त्रण भांगा जाणवा ३. [बधा मळीने त्रिकसंयोगी बार भांगा जाणवा.] जो ते "चार स्पर्शवाळो होय तो तेनो एक देश शीत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध अने एक. देश रुक्ष होय १. अथवा एक देश शीत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध अने अनेक देशो रुक्ष होय २.. अथवा एक देश शीत, एक देश उष्ण, अनेक देशो स्निग्ध अने एक देश रुक्ष होय ३. अथवा एक देश शीत, अनेक देशो उष्ण, एक देश स्निग्ध अने एक देश रुक्ष ४. अथवा एक देश शीत, अनेक देशो उष्ण, एक देश स्निग्ध अने अनेक देशो रुक्ष होय ५. अथवा एक देश शीत, अनेक देशो उष्ण, अनेक देशो स्निग्ध अने एक देश रुक्ष ६. अथवा अनेक देशो शीत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध अने एक देश रुक्ष ७. अथवा अनेक देशो शीत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध अने अनेक देशो रुक्ष ८. अथवा अनेक देशो शीत, एक देश उष्ण, अनेक देशो स्निग्ध अने एक देश रुक्ष पण होय ९. ए प्रमाणे आ त्रिप्रदेशिक स्कंधने विषे स्पर्शोना बधा मळीने पचीश भांगा थाय छे. [ एम त्रिप्रदेशिक स्कंधने विषे वर्णना ४५, गंधना ५, रसना ४५, अने स्पर्शना २५ सर्व मळीने १२० भांगाओ थाय छे.] १. [प्र०] हे भगवन् । चतुष्प्रदेशिक स्कंध केटला वर्णवाळो होय-इत्यादि प्रश्न. [उ.] जेम अढारमा शतकमां कयुं छे, ते प्रमाणे अहिं यावत्-'ते कदाच चार स्पर्शवाळो होय त्यां सुधी कहे. जो ते एक वर्णवाळो होय तो ते कदाच काळो होय अने यावत्-धोळो होय ५. जो ते बे वर्णवाळो होय तो (१) कदाच तेनो एक अंश काळो अने एक अंश लीलो होय, कदाच तेनो एक देश काळो अने अनेक देशो लीला होय २. कदाच अनेक देशो काळा अने एक देश लीलो होय ३. अथवा अनेक देशो काळा अने चम्पदेसिक स्वन्धना भांगायो ३* त्रिप्रदेशिक स्कन्धना चार स्पर्शना बधा अंश एकवचनमा होय त्यारे प्रथम भंग थाय. जेम, १ एकदेश शीत, २ एक देश उष्ण, ३ एक देश स्निग्ध अने ४ एक देश रूक्ष. तेमा छल्ला रूक्ष पदने अनेकवचनमा मूकीए त्यारे बीजो भंग थाय. एटले परमाणुरूप एक देश शीत अने परमाणु रूप एक देश उष्ण. पुनः बेशीत परमाणुमा एक परमाणु खिग्ध अने बीजो शीत परमाणुमानो एक परमाणु तथा उष्ण परमाणुरूप एक देश एबे अंश रूक्ष, त्रीजा पदने अनेक वचनर्मा S H RISHAIमान एक एक, मागापदन मन मूकता त्रीजो भांगो थाय. ते आ प्रमाणे-एक परमाणुरूप देश शीत, बे परमाणुरूप देश उष्ण, जे शीत छे ते अने जे बे उष्ण परमाणुमानो एक छे ते बसे स्निग्ध अने जे एक उष्ण छे ते रूक्ष छे. बीजा पदने अनेक वचना मूकर्ता चोथो भागो थाय. स्निग्ध बे परमाणुरूप एक देश शीत अने एक परमाणुरूप बीजो अंश रूक्ष, निग्ध वे परमाणुमानो बाकीनो अंश तथा रूक्ष अंश बने उष्ण. पांचमो भंग-एक अंश शीत अने स्निग्ध तथा श्रीजा बे अंश उष्ण अने रूक्ष. छट्ठो भंग-- एक अंश शीत अने रूक्ष तथा बीजा बे अंशो उष्ण अने स्निग्ध, सातमा भंगमां निग्नरूप बे परमाणुमानो एक अने बीजो एक एम वे अंश शीत जाणवा, बाकीना एक एक अंश उष्ण, निग्ध अने रूक्ष जाणवा. आठमा भंगा बे अंशो शीत अने रूक्ष तथा एक अंश उष्ण अने निग्ध जाणवो. नवा भंगा भिन्न देश वर्ती बे परमाणुओ शीत अने स्निग्ध होय अने एक अंश उष्ण अने रूक्ष होय. ए प्रमाणे त्रिप्रदेशिक स्कन्धना स्पर्शने आश्रयी पचीश भांगा थाय छ,-टीका. ४ भग.सं. ४ श०१८ उ०६ सू०६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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