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________________ जेने आपणे एकेन्द्रिय कहीए छीए ए जंतुओनी स्थिति विषे अत्यारना विज्ञाने घणी उंडी शोध करेली छे. ते ज प्रमाणे बाकीना अने 'स्थूल जीवजंतुओनी स्थितिविषे पण अत्यारे घणी नवी शोधो थयेली छे. सूक्ष्म भमरीने आपणे असंज्ञी कहीए छीए ते भमरीनी कुशलता मिथेना प्रवक्ष प्रयोगो आपणे जोई शकीए छीए जेने आपने बे, त्रण, अने चार इन्द्रियोवाळा कहीए छीए ते बधांने कोई अपेक्षाए पांच इन्द्रियो छे ए आपणे सूक्ष्मदर्शक यंत्रद्वारा जोई शकीए छीए. तदुपरांत बध प्राणीओनां स्वभाव, प्रवृत्ति, हाजतो वगेरे अनेक जातनी हकीकतोविषे आजे घणुं नवुं ज्ञान आपणने मळी शके छे. ते बधा तरफ आपणे उपेक्षा राखीए अने मात्र शास्त्रवाक्य ज गोख्या करीए तो आपणी प्रज्ञाशुद्धि थई शकवानी नथी. कदाच कोईने एम छागे के विज्ञानना अभ्यासभी शाखश्रद्धा मंद पतां नास्तिकतानो प्रचार पशे. पण ए कल्पना के भय वराबर नयी. विज्ञानयी तो शास्त्रश्रद्धा बचारे दृढ धवानो अनुभव छे अने एम कहेवानुं आपणने अभिमान रहे छे के प्राचीन छोकोए पण पोताना जमानामा केटला बधा वैज्ञानिक विचारो करेला हता. कदाच शास्त्रवचनो साथै विज्ञाननो मेद मालम पडे तो तेना समन्वयनी चावी आपणी पासे छे. ते एक तो देशकाळ अने बीजी कहेवानी शैली, देशकाळ एटले के भगवान महावीरना जमानानी के पूर्वपरंपराधी जे हकीकतो चाली आवती इती ते अत्रे नोंचेडी के एटले ए जमाना अने आ जमाना वच्चेना घणा लांबा गाळामां विश्वनुं एटले के मानवस्वभावनुं, मानवी रहेणीकरणीनुं अने मानवनी आसपासनी परिस्थितिओनुं तथा वनस्पति अने जंतु जगतनुं जे परिवर्तन आजसुधी थतुं आव्युं छे ते परिवर्तन ज भेदना समाधान माटे बस छे. कवानी शैलीनो दाखलो आ प्रमाणे घटावी शकायः आपणे त्यां आ वात प्रसिद्ध छे के ईयळमांची भमरी थाय छे. जैनपरिभाषा प्रमाणे ईयळ करतां भगरी वधारे इंदिया प्राणी के एटले के चार इन्द्रियातुं छे. तो एक ज जन्ममां वे जन्म वाय शी रीते पण जे लोको एम कह्युं छे के ईयळमांची भमरी थाय छे, ते लोकोए एम जोयेल्लुं छे के भमरी ईयळने लावीने पोताना दरमां राखे छे अने तेमांथी काळांतरे भमरी नीकळे छे. मात्र आटलं ज जोनारो ईयमांची भमरी निकछे छे एम जरूर कहे पण ईपळमांथी भ्रमरी क्यांची आवी तेनो खुलासो नथी करी शकतो एटले तेनुं ते कथन स्थूलदृष्टिए छे एम समजीने खरा तरीके समजी शकाय खरं. पण ज्यारे जंतुशास्त्री मददधी आ विषे विचार करीए तो तद्दन जुदुं ज मालम पडे छे. ते शास्त्र कहे छे के ईयळमांथी भमरी थती नथी पण भमरी जे ईयळने दरमां लावे छे ते ईयळमां डंख मारीने इंडां मूके छे. अने ते इंडां काळांतरे ईयळद्वारा पोषाईने ईयळमांथी बहार आवे छे. ईयळ तो मात्र ते इंडानुं पोषण ज छे. आ रीते बारीकाईथी जोतां भमरीना इंडामांथी ज भमरी थाय छे पण ईयळमांथी भमरी नथी थती, छतां ईयळमांथी भमरी थवानी हकीकत खोटी छे एम स्थूल दृष्टिए न कही शकाय. जैन परिभाषामां कहीए तो ईयळमांथी भमरी थवानी हकीकत उपचार प्रधान व्यवहारनयथी ठीक कही शकाय जंतुशास्त्रथी सिद्ध चमेली हकीकत निश्चयनयथी ठीक कही शकाप. आ प्रमाणे शास्त्रोमां जे जे हकीकतो लखायेली मळे छे तेनो निवेडो नयवादनी दृष्टिथी जरूर लावी शकाय अने तेथी विज्ञान अने शास्त्रीय विचारणाम अपडामण वयानो संभव नही रहे. देव अने नरकनी हयाती विषे तो बधी प्राचीन परंपराओ एकसरखो ज मत धरावे छे. पण ते विषे ज्यांसुधी वनस्पतिविद्यानी पेठे उंडी शोध थई निर्णय न थाय त्यांसुधी आपणे ए विषेनी कोईपण जूनी परंपराने खोटी कहेवा हिम्मत न करी शकीए. दरेक परंपराना मूळ पुरुषे ए लिये विचारो दर्शाया छे. ते विचारो विषे ते ते पंरपराना अनुयायी ओर कशी नवी शोधखोळ करी नमी पण शाझे भागे तेना ते विचारोनुं पिष्टपेषण कर्या कयुं छे. पण हवे ए विषे शोध करवानो युग आवी गयो छे. जो के यास्क जेवा महर्षि एटले देव, इंद्र, सुर, असुर वगेरे विषे कांईक नवो प्रकाश पाडचा प्रयत्न कर्यो छे खरो पण आ लोकप्रवाद सामे ए ठीकठीक पहोंची शक्यो नथी अने मात्र पौराणिक परंपरामां वर्णवायेलां रूपको ज बधी परंपरावाळाओए स्वीकार्यां छे एम ए यास्कनी दृष्टिए कही शकाय . ए वैदिक आर्योंनी देव वगेरे विषे झुं मान्यता हती से सिषे वास्कले यांचयायी थोडीचणी माहिती आजे पण आपणने मळी शके छे. आ सूत्रमा अने वीजां सूत्रोमां भगवान महावीरे विश्वविज्ञानने उगती जे जे माहिती आपी छे तेनो उद्देश विश्ववैचित्र्य जाणवा उपरांत ते द्वारा विश्व साचे समभाग सानो छे. छतां केटलीक एवी बावतो पण तेमां बताववामां आवी छे जेनां मात्र ज्ञेयनी दृष्टि मुख्य छे. तेमनो जीवनशुद्धिमां सीधो उपयोग होय एवं जणांतुं नथी. जेमके लोकनी स्थितिने समजावतां भगवान महावीरे गौतमने जंणावेलुं छे के, आकाश उपर वायु रहेलो छे. वायुनी उपर उदधि छे. उदधि उपर आ पृथ्वी रहेली छे अने ए पृथ्वी उपर आ आलुं विश्व रहेलुं छे. आ हकीकत समजावया भगवान एक सरस दाखटो १ श्रीयास्कना उल्लेख माटे जूओ प्रस्तुत ग्रंथ भा० २०४२ ४८-४९, १२२, १३० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org/
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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