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जोडा वगेरे त्रण इन्द्रियवाळा जीवोनी, पतंगिया भमरा वींछी वगेरे चार इन्द्रियवाळा जीवोनी, पशुपक्षी वगेरे पांच इन्द्रियवाळा तिर्यच जीयोनी के मनुष्यनी योनिमा आववानी योग्यता धरावे छे. मात्र अग्नि अने वायु, मनुष्यनी योनिमां आववानी योग्यता धरावता नथी. ए बधांने चार प्राण छे एटले के स्पर्शइंद्रिय, शरीरबळ, श्वासोच्छास अने आयुष्य.
जेवी रीते पृथ्वी वगेरेनां चैतन्य वगेरेनो विचार करवामां आव्यो छे तेवी ज रीते बेइन्द्रिय-स्पर्श अने जिह्वावाळा, त्रणइन्द्रिय-स्पर्श, जिला अने प्राणवाळा, चारइंद्रिय-स्पर्श, जिहा, घाण अने चक्षुवाळा अने पांचइन्द्रिय-पर्श, जिह्वा, घ्राण, चक्षु, अने कानवाळा जीवोनो पण विचार करवामां आव्यो छे.
पांच इंद्रियवाळा जीवोना चार विभाग करवामां आव्या छे. पशुपक्षी, मनुष्य, देव अने नारकः देवोना पण मुख्य चार मेद बताबवामां आव्या छे. वैमानिक-विमानमा रहेनारा, भवनपति-भवनमा रहेनारा, वानव्यंतर-पहाड, गुफा अने वनना आंतराओमा रहेनारा भने ज्योतिषी-ज्योतिर्लोकमा रहेनारा सूर्य चंद्र वगेरे. तेमना आहार, रहेणीकरणी, आयुष्य, वैभवविलास, उत्तरोत्तर संतोष, शास्त्राध्ययन, देवपूजन वगेरे पण घणा विस्तारसाथे आ सूत्रमा वर्णवेला छे.
दाखला तरीके पहेला स्वर्गना देवो ओछामा ओछु बेथी नव दिवस पछी आहार करे छे एटले के मनुष्य के पशुपक्षीने रोजनेरोज आहारनी अपेक्षा रहे छे तेम देवोने ए नथी होती. पण कोई देवो बे दिवसे आहार ले छे, कोई देवो त्रण दिवसे, कोई चार दिवसे अने ए रीते कोई नव नव दिवसे आहार ले छे अने वधारेमां वधारे तेओ २००० वर्ष सुधी आहार विना चलावी ले छे. अने छल्ला वर्गना देवो ३३००० वर्ष सुधी आहार विना चलाबी शके छे. आ ज रीते नरकमा रहेला जीवोनी स्थितिने लगतुं वर्णन पण आपवामां आव्युं छे.
आ आखा सूत्रनो मोटो भाग देव अने नरकना वर्णनमा ज रोकाएलो छे.
उपर्युक्त रीत सिवाय बीजी रीते पण जीवजंतुनो विभाग करवामां आव्यो छे, जेमके:-जरायुज, अंडज, पोतज, खेदज, उद्भिज अने उपपादुक. आ विभाग शास्त्रोनी बधी परंपराओमां प्रसिद्ध छे.
बधा जीवो जीवत्वनी दृष्टिए एक सरखा छे. ए हकीकत भगवाने 'एगे आया' ए सूत्रमा समजावेली छे. एमां एमनो हेतु लोकोमा समभावने जगाडवानो छे. अने जीवो एक सरखा छतां तेमनी उपर बतावेली जे जुदीजुदी दशाओ थाय छे ते तेमना शुभ के अशुभ संस्कारने आभारी छे. एटले मनुष्योए संस्कारशुद्धिना प्रयत्न तरफ वळवू जोईए एम भगवाननुं आ उपरथी सूचन छे. जो आपणे ए बर्षा वर्णनो उपरथी मैत्रीवृत्ति केळववा तरफ अने संस्कार शुद्धिना प्रयत्न तरफ न वळीए अने मात्र ए वर्णनो ज बांच्या करीए अने गोख्या करीए तो आपणे भगवान महावीरना संदेशाने समजवा योग्य नथी एम कहे, जोईए.
भगवान महावीरे आ जे बधुं कहेलं छे तेमा तेमनी आध्यात्मिक शुद्धि अने परापूर्वथी चाली आवेली आर्योनी परंपरा ए चे मुख्य कारणो के. एटले आ सत्रमा के बीजा सूत्रमा ज्या ज्या आवां जीवने लगतां वर्णनो आवे छे तेनो खरो साक्षात्कार आपणे करवो होय तो आपणा माटे केवल चर्चा के शास्त्रश्रद्धा बस नथी पण आपणी पोतानी जातनी आत्मशुद्धि अने प्रज्ञाशुद्धिने वधारेमा बधारे केळववी जोईए. प्रज्ञाशुद्धि एटले ज्यां ए वर्णनो आवे छे ते बधां शास्त्रोनो तटस्थ दृष्टिए अभ्यास तथा अत्यारना विज्ञानशास्त्रनो पण ए ज रीते सूक्ष्म अभ्यास. आटलं कर्या पछी पण जो शास्त्रवचन अने तटस्थ अनुभवमा मेद मालुम पडे तो मुंझावापणुं नथी. कारण के शास्त्रे वर्णवेली स्थिति देशकाळनी मर्यादाने ओळंगी शकती नथी एटले देशकाळनो फेर बदलो थतां जे स्थिति २५०० वर्ष पहेलां भगवान महावीरे जेवी बतावी होय तेवी अत्यारे न होय तेमां कशी असंगति नथी. वळी आवी चर्चाओ मात्र मेद वधारवा के शास्त्रार्थना झगडा करवामाटे खपनी नथी. तेनो खप तो आगळ कह्या प्रमाणे मात्र मैत्रीवृत्ति अने संस्कारशुद्धि माटे छे. ___ आथी कोई संप्रदाय बार खर्गो करतां वधारे के ओछा खर्गो कहे अथवा नारकोनी हकीकत विषे एवी भिन्नतावाळी हकीकत कहे तेनाथी कशो क्षोभ पामवानो नथी.
आपणे जाणीए छीए के आ जातना विचारो भगवान महावीरना जमानामां काई नवा न हता, कारण के आ संबंधमां वैदिक परंपरामा, बुद्धना पिटकोमा अने अवेस्ताग्रंथोमां केटलीए हकीकतो आजे उपलब्ध छे. जो के ते हकीकतो आपणे त्यां लखाएली छे तेवी सूक्ष्म नथी पण आत्मवत सर्वभूतेषुना सिद्धांतने समजवा पूरती ए हकीकतो आपणा सिवायनी बीजी बधी परंपराओमा नोंधायेली छे अने तेनो खरो उपयोग पण ते ज छे.
वनस्पतिविद्याविषे चरक अने सुश्रुतमा आपणे त्यां वर्णवेली छे तेटली ज सूक्ष्म पण बीजा प्रकारनी अनेक हकीकतो नोंधायेली छे, जे आजे पण उपलब्ध छे अने व्यवहारमा पण खरी निवडेली छे.
१ जूओ स्थानांगसूत्रना मूळनो प्रारंभ पृ. १० ।
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