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गर्भ.
१. स्यात् द्वार.
२. लेइयाद्वार.
२. वृष्टिद्वार.
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श्रीरायचन्द्र - जिनागमसंग्रहे
बीओ उद्देसो.
१. [प्र०] कति णं मंते 1 लेस्साओ पन्नताओ ? [30] एवं जदा पनवणार गम्भुद्देसो सो वेव निरवसेसो माणियां 'सेयं मंते । सेयं मंते' । ति ।
शतक १९. - उद्देशक ३
एगुणवीसहमे सए बीओ उदेसो समतो
द्वितीय उद्देश.
१. [प्र० ] हे भगवन् ! लेश्याओ केटली कही छे ! [उ०] ए प्रमाणे प्रज्ञापना सूत्रना सत्तरमा पदनो छडो * गर्भोदेशक सम्पूर्ण कहेबो. 'हे भगवन्! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे'.
ओगणीशमा शतकमां द्वितीय उद्देशक समाप्त..
ईओ उस ।
१. [प्र० ] रायगिहे जाव एवं वयासी - सिय भंते ! जाव- चत्तारि पंच पुढविकाइया एगयओ साधारणसरीरं बंधंति, ०२ धित्ता तो पच्छा आहारैति वा परिणार्मेति वा सरीरं या बंधंति ? [उ०] नो इणट्ठे समट्ठे पुढविकाराणं पतेयाद्वारा पत्तेयपरिणामा पत्तेयं सरीरं बंधंति, प० २ धिता ततो पच्छा माहारेति वा परिणार्मेति वा सरीरं वा ति १ ।
२. [ प्र० ] तेसि णं भंते! जीवाणं कति लेस्साओ पन्नताओ ? [ड०] गोषमा ! चचारि लेस्साओ पद्मत्ताओ, तंजकण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा तेउलेस्सा 1
३. [प्र०] ते णं भंते! जीवा किं सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी १ [उ०] गोयमा ! नो सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, जो सम्मामिच्छदिडी ३ ।
तृतीय उद्देशक.
१. [प्र० ] राजगृह नगरमां यावत्-भगवान् गौतम आ प्रमाणे बोल्या के, हे भगवन् ! किदाच बे यावत्-चार पांच पृथिवीकायिको एकठा पईने एक साधारण शरीर बांधे, बांच्या पही आहार करे पछी से आहारने परिणामाने, अने स्यार बाद वशरीरनो बंध करे ! [४०] ए अर्थ समर्थ यथार्थ नथी. कारण के पृथिवीकायिको प्रत्येक जूदो जूदो आहार करवावाला अने ते आहारनो जूदो हो परि णाम करवावाळा होय छे, तेथी तेओ भिन्न भिन्न शरीर बांधे छे. अने त्यार पछी तेओ आहार करे छे, तेने शरीर बांधे छे.
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परिणमावे के अने पोतानुं
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२. [१०] हे भगवन्! ते पृथिवीकायिक जीवोने केटली लेयाओ कही छे [30] हे गौतम! लेओने चार लेश्याओ कही छे, ते आ प्रमाणे - १ कृष्णलेश्या, २ नीललेश्या, ३ कापोतलेश्या, ४ तेजोलेश्या.
३. [प्र० ] हे भगवन् ! ते जीवो सम्यग्दृष्टि छे, मिथ्यादृष्टि छे के सम्यग्मिथ्यादृष्टि - मिश्र दृष्टि छे ! [उ०] हे गौतम ! तेओ सम्यदृष्टि नची, मिखदृष्टि नधी, पण तेओ मिध्यादृष्टि छे.
*
१ 'कृष्णलेश्यावाळो मनुष्य कृष्णलेश्यावाळा गर्भने उत्पन्न करे ? हा, उत्पन्न करे. एवी रीते कृष्णलेश्यावाळो मनुष्य नीललेश्यावाळा, यावत् शुरूलेश्यावाळा गर्भने पण उत्पन्न करे. एम नीललेश्यावाळो मनुष्य कृष्णादिलेश्यावाळा गर्भने उत्पन्न करे. ए प्रमाणे कापोत, तेजो, पद्म अने शुक्रलेश्या श्रीकृष्णसेवा गर्म उत्पन्न करे. एम कधी कर्मभूमि तया
पण ते मनुष्य मनुष्य संबन्धे जाणवुं. मात्र एटलो विशेष के अकर्मभूमिना मनुष्यने प्रथमनी चार लेश्याओ होवाथी तेने आश्रयी जाणवुं जुओ प्रज्ञा० पद १७ उ० ५ पृ० ३७३.
+ आ उद्देशकमा १ स्थात्, २ लेश्या, ३ दृष्टि, ४ ज्ञान, ५ योग ६ उपयोग, ७ किमाहार- केवा प्रकारनो आहार, ८ प्राणातिपात, ९ उत्पाद, १० स्थिति, ११ समुद्धात अने १२ उद्वर्तना- ए बार द्वारो पृथिवीकायिकथी आरंभी वनस्पतिकायिक जीव पर्यन्त कहेवाना छे. तेमां प्रथम स्यात् द्वारने आश्रयी प्रश्न कर्यो छे.
91 कदाच अनेक पृथिवीकायिको मळी साधारण शरीर बांधे, त्यार पछी विशेष आहार तथा तेनो परिणाम करे माने पछी शरीरनो विशेष बन्ध करे ? ए प्रश्न छे. अहिं सामान्य रीते सर्व संसारी जीवोने प्रति समय निरंतर आहार ग्रहण - पुद्गलग्रहण होय छे. तेथी प्रथम सामान्य शरीरबन्धसमये पण आहार तो चालुज होय छे छतां प्रथम शरीर बांधे पछी आहार करे एम प्रश्न कर्यो ते विशेषाहारनी अपेक्षाए जाणवो. एटले जीव उत्पत्तिसमये प्रथम ओजाहार करे, अने त्यार पछी शरीरस्पर्शद्वारा लोमाहार करे अने तेने परिणमावे. अने त्यार बाद विशेष विशेष शरीर बन्ध करे आ प्रश्न छे. तेना उत्तरमां जणाव्युं के पृथिवीकायिको प्रत्येक भिन्न भिन्न आहार करे छे अने तेनो परिणाम पण भिन्न भिन्न करे छे, माटे तेओ प्रत्येक भिन्न भिन्न शरीर बांधे छे, साधारण शरीर बांधता नथी. त्यार पछी तेओ विशेषाहार, विशेष परिणाम अने विशेष शरीरबन्ध करे छे.
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