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________________ शतक १८.-उद्देशक ७. भगवत्सुधर्मखामिप्रणीत भगवतीसूत्र. २५. [प्र०] देवे णं भंते ! महहिए जाव-महेसक्खे पभू लवणसमुदं अणुपरियट्टित्ता णं हवमागच्छित्तए ? [10] हंता पभू। २६. [प्र०] देवे पं भंते ! महडिए एवं धायइसंडं दीवं जाव-हंता पभू, एवं जाव-रुयगवरं दीर्घ जाव-हता पमू, तेणं परं वीतीवएजा, नो चेव णं अणुपरियडेजा। २७. [H०] अस्थि णं भंते ! देवा जे अणंते कम्मसे जहन्नेणं एक्केण वा छोहिं वा तीहिं वा, उकोसेणं पंचहिं पासस पहि खवयंति ? [उ०] हंता अस्थि । २८. [सं०] अत्थि णं भंते ! देवा जे अणंते कम्मसे जहनेणं एकेण वा दोहि या तीहिं वा, उक्कोसेणं पंचहि वासस. हस्सहिं खवयंति ? [उ०] हंता अत्थि। २९. [प्र०] अत्यि गं भंते ! ते देवा जे अणते कम्मसे जहन्नेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा, उक्कोसेणं पंचहिं पास. सयसहस्सेहिं खवयंति ? [उ०] हंता अस्थि । ३०. [प्र०] कयरे णं भंते ! ते देवा जे अणंते कम्मसे जहन्नेणं एकेण वा जाव-पंचहिं वाससएहिं खवयंति ? कयरे गं भंते! ते देवा जाव-पंचहि वाससहस्सहिं खवयंति ? कयरे णं भंते! ते देवा जाव-पंचहि वाससयसहस्सेहि खवयंति ? [उ०] गोयमा! वाणमंतरा देवा अणंते कम्मसे एगेणं वाससएणं खवयंति, असुरिंदवज्जिया भवणवासी देवा अणते कम्मसे दोहि वाससरहिं खवयंति, असुरकुमारा णं देवा अणंते कम्मंसे तीहिं वाससरहिं खवयंति, गह-नक्षत्त-तारारूवा जोइसिया देवा अणंते कम्मंसे चाहिं वास० जाव-खवयंति, चंदिम-सूरिया जोइसिंदा जोतिसरायाणो अणते कम्मसे पंचहि वाससरहिं खवयंति, सोहम्मी-साणगा देवा अणंते कम्मंसे एगेणं वाससहस्सेणं जाव-खवयंति, सणंकुमार-माहिंदगा देवा अणते कम्मंसे दोहिं वाससहस्सेहिं खवयंति, एवं एएणं अभिलावेणं बंभलोग-लंतगा देवा अणंते कम्मंसे तीहिं वाससहस्सेहि खयवंति, महासुक्क-सहस्सारगा देवा अणंते चर्हि वाससहस्सेहि, आणय-पाणय-आरण-अञ्चयगा देवा अणंते पंचहि वाससहस्सेहिं खवयंति, हिडिमगेविजगा देवा अणंते कम्मंसे एगेणं वाससयसहस्सेणं खवयंति, मज्झिमगेवेजगा देवा अणंते दोहि वाससयसहस्सेहिं जाव-खवयंति, उवरिमगेवेजगा देवा अणंते कम्मंसे तिहिं वास जाव-खवयंति, विजय-वेजयंत-जयंत २५. [प्र०] हे भगवन् ! मोटी ऋद्धिवाळो यावत्-मोटा सुखवाळो देव, लवणसमुद्रनी चोतरफ फरी शीघ्र आववा समर्थ छे ! देवोर्नु गमनसामर्थ्य. [उ०] हा, समर्थ छे. २६. [प्र०] हे भगवन् ! मोटी ऋद्धिवाळो यावत्-देव धातकिखंड द्वीपनी चारे तरफ फरी शीघ्र आववा समर्थ छे? उ०] हा, समर्थ छे. [प्र०] ए प्रमाणे यावत्-रुचकवर द्वीप सुधी चोतरफ आंटो मारी शीघ्र आववा समर्थ छे ? [उ०] हा, समर्थ छे. स्यार पछी आगळना द्वीप-समुद्र सुधी जाय, पण तेनी *चारे बाजु फरे नहि. २७. [प्र०] हे भगवन् ! शुं एवा देवो छे के, जेओ अनंत (शुभप्रकृतिरूप) काशोने जघन्यथी एकसो, बसो के त्रणसो वर्षे अने देवोना पुण्यकर्मना क्षयर्नु तारतम्य. उत्कृष्टथी पांचसो वर्षे खपावे ? [उ०] हा, एवा देवो छे, २८. [प्र०] हे भगवन् ! एवा देवो छे के, जेओ अनंत काशोने जघन्यथी एक हजार, बे हजार के त्रण हजार वर्षे अने उत्कृष्टथी पांच हजार वर्षे खपावे ? [उ०] हा, छे. २०. [प्र०] हे भगवन् ! एवा देवो छे, के जेओ अनंत काशोने जघन्यथी एक लाख, बे लाख के त्रण लाख वरसे अने उत्कृष्टथी पांच लाख वरसे खपावे ! [उ०] हा, छे. ३०. [प्र०] हे भगवन् । एवा कया देवो छे के जेओ अनंत काशोने जघन्यथी एक सो वर्षे यावत्-पांचसो वरसे खपावे ! हे भगवन् ! एवा कया देवो छे के यावत्-पांच हजार वर्षे खपावे ? हे भगवन् ! एवा कया देवो छे के यावत्-पांच लाख वरसे खपावे! [उ०] हे गौतम ! वानव्यंतर देवो एकसो वर्षे अनंत काशोने खपावे, असुरेन्द्र सिवायना भवनवासी देवो अनंत काशोने बसो वरसे खपावे, असुरकुमार देवो अनंत काशोने त्रणसो वर्षे खपावे, ग्रह-नक्षत्र अने तारारूप ज्योतिषिक देवो अनंत काशोने चारसो वरसे खपावे, तथा ज्योतिषिकना राजा अने ज्योतिषिकना इन्द्र, चन्द्र अने सूर्य अनंत काशोने पांचसो वरसे खपावे. सौधर्म अने ईशान कल्पना देवो अनंत काशोने एक हजार वर्षे खपावे, सनत्कुमार अने माहेन्द्रना देवो अनंत काशोने बे हजार वर्षे खपावे, एम ए सूचना पाठ वडे ब्रह्मलोक अने लांतकना देवोत्रण हजार वर्षे, महाशुक्र अने सहस्रारना देवो चार हजार वर्षे, आनत-प्राणत अने आरण-अच्युतना देवो २६* देवो प्रयोजनना अभावथी चोतरफ फरे नहि एम संभवे छे-टीका. Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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