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________________ एक स्थळे भगवाने जीवनशुद्धिने लक्षमा राखीने मननी स्थितिओ वर्णवी छे. ते स्थितिना तेमणे छ नाम आपेलां छे. जे जैन संप्रदायमा लेश्याने नामे प्रसिद्ध छे. मनुष्यनी अत्यंत क्रूरमां क्रूर वृत्तिने कृष्णलेश्या कहेवामां आवी छे. जेम जेम ए करता ओछी यती जाय अने तेमां सात्त्विक वृत्तिनो भाव मेळातो जाय तेम तेम मानवजीवननो विकास वधतो जाय छे. ते विकासप्रमाणे ते चित्तवृत्तिमोनां नाम पण जुदा जुदा बतावेलां छे. कृष्णलेश्या करता जेमां थोडो वधारे विकास छे ते वृत्तिने नीललेश्या कहेवामां आवे छे. ते पछी जेम जेम वधारे विकास थतो जाय छे तेम तेम अनुक्रमे ते ते चित्तवृत्तिओने कापोत, तेज, पम अने शुमलेश्याना नामयी ओळखवामां आवे छे. आ नीचेना उदाहरणथी आ वृत्तिओनो मर्म सहजमां समजी शकाशे. जेम कोई एक व्यक्ति पोतानी ज सुखसगवड माटे हजारो प्राणीओने लाचारीमा राखे एटले के जे प्राणीओद्वारा पोतानी अंगत सखसगवड मेळवे छे ते प्राणीओना मुखनी तेने जरा पण दरकार नथी, ते प्राणीओ जीवे के मरे पण पेला सुखभोगीनी सगवडो तो सचवावी ज जोईए. आवा मनुष्यनी वृत्तिने कृष्णलेश्यानुं नाम आपी शकाय. जे मनुष्य पोतानी सुखसगवडमां जरा पण ऊणप आववा देतो नथी पण ते सगवड जे प्राणीओद्वारा मळे छे तेमनी पण अजपोषणन्याये जरातरा संभाळ ले छे. आ जातनी वृत्तिने नीललेश्या कहे छे. मुखसगवड आपनार प्राणीओनी पण जे पूर्वोक्त न्याये थोडी वधारे संभाळ ले ते सुखभोगीनी वृत्तिने कापोतलेश्या कही शकाय. आ त्रण लेश्याओमा वर्तनार माणसने पोते शुं छे तेनुं जरा पण भान होतुं नथी अने तेथी ज तेनामा बीजा प्रत्ये अकारण मैत्रीवृत्ति राखवानो विचार पण आवतो नथी. जे माणस पोतानी अंगत सुखसगवडने ओछी करे अने सुखसगवड आपनारा सहायकोनी ठीक ठीक संभाळ ले तेने तेजोलेश्यावाळो कही शकाय. जे माणस पोतानी सुखसगवड जरा वधारे ओछी करी, पोताना आश्रितोनी तेमज संबंधमां आवता दरेक प्राणीओनी, खेद मोए अने भय सिवाय सारी रीते संभाळ ले तेनी वृत्तिने पालेश्या कही शंकाय. . जे सुखसगवडने तदन ओछी करी नाखे अने पोतानी शरीरनिर्वाह पूरती हाजतोने माटे पण कोई प्राणीओने लेश पण त्रास न आपे, तेमज कोई पदार्थ उपर लोलुपता न राखे, सतत समभाव जळवाय एवो व्यवहार राखे अने मात्र आत्मभानथी ज तुष्ट रहे तेनी वृत्तिने शुक्ललेश्या कही शकाय. जीवनशुद्धिनी हिमायत करनारा माटे आमांनी पहेली त्रण वृत्ति त्याज्य छे अने पाछली त्रण वृत्ति ग्राह्य छे, तेमां पण छेक छेली वृत्ति केळव्या सिवाय पूर्ण विकास सर्वथा असंभव छे एम भगवान महावीरे पोतानी वाणीमा ठेकठेकाणे कां छे. भगवाने कयुं छे के उत्थान छे, कर्म छे, बळ छे, वीर्य छे, पराक्रम छे, आ शरीर जीवने लईने हाले चाले छे, शरीरनी शक्ति शरीरनी पुष्टिने लीधे छे, पुष्ट शरीर अनेक प्रकारनी प्रवृत्तिओ करे छे अने एमांथी प्रमाद जन्मे छे, ए प्रमादने लीधे जीव अनेक प्रकारनी मोहजाळमा फसाय छे अने अज्ञान अंधकारमा सबड्या ज करे छे, माटे प्रमादना मूळ कारण शरीरने जो संयममा राखवामा आवे तो आ मोहजाळमाथी जीव सहेजे छूटी शके. (भा० १ पा० १२०) एक स्थळे भगवान कहे छे के मात्र संयम, मात्र संवर, मात्र ब्रह्मचर्य अने मात्र प्रवचनमाताना पालनथी कोई प्राणीनो निस्तार यतो नथी. ज्यारे प्राणी रागद्वेष उपर पूर्ण जय मेळवे छे त्यारे ज ते सिद्ध, बुद्ध अने मुक्त थाय छे अने निर्वाणपदने मेळवे छे. (भा० १ पा० १३७ ) आमां भगवाने जे कयुं छे के केवळ संयम, केवळ संवर अने केवळ ब्रह्मचर्यथी जीवनो निस्तार नथी. एनो मर्म ए छे के जे संयम, संवर अने ब्रह्मचर्य नाममात्र होय-खरेखरां न होय एटले के संयम, संवर अने ब्रह्मचर्य मात्र डोळ होय पण वासनानो जय, इन्द्रियोनो निरोध, विषयवृत्तिनो त्याग अने मानसिक, वाचिक अने शारीरिक प्रवृत्तिनी एकवाक्यता ए बधुं न होय एवां केवळ संयम, संवर अने ब्रह्मचर्य प्राणीना जीवननो विकास करी शकवाने समर्थ नथी. भगवान मनुष्यना त्रण विभाग करे छे. केटलाकने एकांत बाळनी कोटिमा मूके छे, केटलाकने एकांत पंडितनी कोटिमा मूके छे अने केटलाकने बाळपंडितनी कोटिनां जणावे छे. आत्मभान विनाना एकांत बाळको छे, आत्मभानवाळा एकांत पंडित छे अने मध्यम वृत्तिना बाळपंडितकोटिना छे. (भा० १ पा० १८९) १ कृष्ण भने नीललेश्या एटले तामसी वृत्ति, कापोत अने तेजोलेश्या एटले राजसी वृत्ति अने पद्म भने शुक्ललेश्या एटले सात्त्विकवृत्ति एम सांख्यपरिभाषा प्रमाणे कही शकाय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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