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________________ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक ८.-उद्देशक २० ११६.०पएसिणं भंते! मइअन्नाणपजवाणं, सुयअन्नाणपजवाणं विभंगनाणपजवाण य कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहियावा? [उ०] गोयमा! सवत्थोवा विभंगनाणपजवा, सुयअन्नाणपजवा अणंतगुणा, मइअनाणपज्जवी अणंतगुणा। ११७. [प्र०] एएसि णं भंते ! आभिणिबोहियणाणपजवाणं, जाव केवलनाणपजवाणं, मइअन्नाणपजवाणं, सुयअभाणपजवाणं, विभंगनाणपजवाणं कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा? [उ०] गोयमा! सवत्थोवा मणपजवनाणपजवा, विमंगनाणपजवा अणंतगुणा, ओहिणाणपजवा अणंतगुणा, सुयअन्नाणपज्जवा अणंतगुणा, सुयनाणपजवा विसेसाहिया, महअन्नाणपज्जवा अणंतगुणा, आभिणिबोहियनाणपजवा विसेसाहिया, केवलनाणपजवा अणंतगुणा । सेवं भंते ! सेवं भंते । ति। अट्ठमसए वीओ उद्देसो समत्तो। मत्यादि त्रण अशा नोना पर्यायोनुं ११६. [4] है भगवन् ! ए मंतिअज्ञान श्रुतअज्ञान अने विभंगज्ञानना पर्यायोमा कोना पर्यायो कोना पर्यायोथी यावद् विशेषाधिक छे? [उ.] हे गौतम ! सर्वथी थोडा विभंगज्ञानना पर्यायो छे, तेथी अनंतगुण श्रुतअज्ञानना पर्यायो छे, अने तेथी अनंतगुण मतिअज्ञानना पर्यायो छे. पांच शान भने त्रण ११७. [प्र०] हे भगवन् ! ए आमिनिबोधिकज्ञानना यावत् केवलज्ञानना तथा मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान, अने विभंगज्ञानना पर्यायोमा चानना पर्यायोगें अल्पबहुत्व. कोना पर्यायो कोना पर्यायोथी यावद् विशेषाधिक छे? [ उ०] हे गौतम ! *सौथी थोडा मनःपर्यायज्ञानना पर्यायो छे, तेथी अनंतगुण विभंगज्ञानना पर्यायो छे, तेथी अनंतगुण अवधिज्ञानना पर्यायो छे, तेथी अनंतगुण श्रुतअज्ञानना पर्यायो छे, तेना करतां श्रुतज्ञानना पर्यायो विशेषाधिक छे, तेथी मतिअज्ञानना पर्यायो अनंतगुण छे, तेथी मतिज्ञानना पर्यायो विशेषाधिक छे अने तेना करता केवलज्ञानना पर्यायो अनन्तगुण छे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे. [एम कही भगवान् गौतम याबद विहरे छे.] अष्टमशते द्वितीय उद्देशक समाप्त. ११७. * ज्ञान अने अज्ञानना मिश्रसूत्रने विषे सौथी थोडा मनःपर्यवज्ञानना पर्यायो छे, तेथी विभंगज्ञानना पर्यायो अनन्तगुण छे, केमके उपरना प्रेवेयकथी मारंभी सातमी नरक पृथिवीमां अने तिर्यक् असंख्यात द्वीप समुद्रमा रहेला केटलाक रूपी द्रव्यो भने तेना केटलाएक पर्यायो विभंगज्ञाननो विषय छ, भने ते मनःपर्यवज्ञानना विषयनी अपेक्षाए अनन्तगुण छे. विभंगज्ञानथी अवधिज्ञानना पर्यायो अनन्तगुण छे, केमके अवधिज्ञाननो विषय सकल रुपिद्रव्यो अने प्रत्येक द्रव्यना असंख्यात पर्यायो छे, अने ते विभंगज्ञाननी अपेक्षाए अनन्तगुण छे. तेथी श्रुताज्ञानना पर्यायो अनन्त गुण छे, केमके श्रुताज्ञाननो विषय श्रुतज्ञाननी पेठे सामान्यादेशे करीने सर्व मूर्तामूर्त द्रव्यो अने सर्व पर्यायो होवाथी अवधिज्ञाननी अपेक्षाए अनन्त गुण छे. तेथी श्रुतज्ञानना पर्यायो विशेषाधिक छे, केमफे श्रुतअज्ञानने अगोचर केटलाक पर्यायने श्रुतज्ञान जाणे छे. तेथी मत्यज्ञानना पर्यायो अनन्तगुण छ, केमके श्रुतज्ञान अभिलाप्यवस्तुविषयक होय से, भने मस्यज्ञान तेनाथी अनन्तगुण अनमिलाप्यवस्तुविषयक पण होय छे, तेथी मविज्ञानना पर्यायो विशेषाधिक छे. तेथी केवलज्ञामना पर्यायो अनन्तगुण , केमके ते सर्व कालमा रहेला सर्व द्रव्यो अने सर्व पर्यायोने जाणे छ.--टीका. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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