________________
शतक ८.-उद्देशक १: भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
४३ १०. [प्र०] जलयरतिरिक्खजोणियपयोगपरिणयाणं पुच्छा। [उ०] गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-समुच्छिमजलयर०, गम्भवकंतियजलयर०।
११. [प्र०] थलयरतिरिक्ख० पुच्छा। [उ०] गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-चउप्पयथलयर०, परिसप्पथलयर० ।
१२. प्र०] चउप्पयथलयर० पुच्छा। [उ०] गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-समुच्छिमचउप्पयथलयर०, गम्भवकतियचउप्पयथलयर० । एवं एएणं अभिलावेणं परिसप्पा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-उरपरिसप्पा य भुयपरिसप्पा य । उरपरिसप्पा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-संमुच्छिमा य गम्भवकंतिया य। एवं भुयपरिसप्पा वि, एवं खहयरा वि।
१३. [प्र०] मणुस्सपंचिंदियपओग० पुच्छा। [उ०] गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-समुच्छिममणुस्स०, गम्भवक तियमणुस्स०।
१४. [प्र०] देवपंचिंदियपओग० पुच्छा। [उ०] गोयमा ! चउब्विहा पन्नत्ता, तं. जहा-भवणवासिदेवपंचिंदियपओग०, एवं जाव चेमाणिया।
. १५. [प्र०] भवणवासिदेवपंचिंदिय० पुच्छा। [उ०] गोयमा! दसविहा पन्नत्ता, तं जहा-असुरकुमार०, जाव थणियकुमार० । एवं एतेणं अभिलावणं अट्टविहा वाणमंतरा, पिसाया जाव गंधव्वा । जोतिसिया पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा-चंदविमाणजोतिसियां, जाव ताराविमाणजोइसिओ देवा । वेमाणिआ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-कप्पोवगै० कप्पातीतगवेमाणिआ। कप्पोवगा दुवालसविहा पन्नत्ता, तं जहा-सोहम्मकप्पोवग० जाव अच्चुयकप्पोवगवेमाणिआ। कप्पातीतर्गे दुविहा पन्नत्ता, तं जहागेवेजगकप्पातीतग० अणुत्तरोववातीयकप्पातीतग० । गेवेजगकप्पातीतगे. नवविहा पन्नत्ता, तं जहा-हेटिमहेट्ठिमगेवेजगकप्पातीतग०, जाव उवरिमउवरिमगेवेजगकप्पातीतग० ।
१०. प्र०] हे भगवन् ! जलचरतियंचयोनिकपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो केटला प्रकारना कह्या छे ! [उ०हे गौतम ! जलचर- जलचरादिप्रयोग
परिणततिर्यंचयोनिकपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो बे प्रकारना कह्या छे; ते आ प्रमाणे-संमूर्छिमजलचरतियंचपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत अने गर्भजजलचरतियंचपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत.
११. [प्र०] हे भगवन् ! स्थलचरतियंचयोनिकपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो केटला प्रकारना कह्या छे ! [उ०] हे गौतम ! स्थलचरतियंचयोनिकपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो बे प्रकारना कह्या छे; ते आ प्रमाणे-चतुष्पदस्थलचरपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत अने परिसर्पस्थलचरतियंचपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत.
१२. [प्र०] हे भगवन् ! चतुष्पदस्थलचरतियंचयोनिकपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो केटला प्रकारना कह्या छे! (उ०] हे गौतम ! चतुष्पदस्थलचरतियंचपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो बे प्रकारना कह्या छे; ते आ प्रमाणे-संमूर्छिमचतुष्पदस्थलचरतियंचपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत अने गर्भजचतुष्पदस्थलचरतियंचपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत. ए प्रमाणे ए अभिलाप (पाठ) वडे परिसॉं बे प्रकारना कह्या छे-उरपरिसर्प अने भुजपरिसर्प. उरपरिसर्पो वे प्रकारना कह्या छे-संमूर्छिम अने गर्भज. ए प्रमाणे भुजपरिसो अने खेचरो (पक्षीओ ) पण वे प्रकारना कह्या छे.
___ १३. [प्र०] हे भगवन् ! मनुष्यपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो केटला प्रकारना कह्या छ ? [उ०] हे गौतम! मनुष्यपंचेन्द्रियप्रयोग- मनुष्यप्रयोगपरिण परिणत पुद्गलो बे प्रकारना कह्या छे. ते आ प्रमाणे-संमूर्छिममनुष्यप्रयोगपरिणत अने गर्भजमनुष्यपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत.
१४. [प्र०] हे भगवन् ! देवपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो केटला प्रकारना कह्या छे ? [उ०] हे गौतम ! देवपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत देवप्रयोगपुद्गलो चार प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-भवनवासिदेवपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत, अने यावत् वैमानिकदेवपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो.
परिणत१५. [प्र०] हे भगवन् ! भवनवासिदेवपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो केटला प्रकारना कह्या छे! उ०] हे गौतम ! दश प्रकारना भवनवासि, व्यन्त
ज्योतिषिक भने कह्या छे. ते आ प्रमाणे---असुरकुमारप्रयोगपरिणत, यावत् स्तनितकुमारप्रयोगपरिणत. ए प्रमाणे ए अभिलाप वडे आठ प्रकारना वानव्यंतरो, निकायोगपरिणत पिशाचो यावत् गान्धर्वो कहेवा, ज्योतिषिको पांच प्रकारना कह्या छे; ते आ प्रमाणे--चन्द्रविमानज्योतिषिकदेव, यावत् ताराविमानज्योतिषिकदेव. वैमानिक देवो वे प्रकारना कह्या छे; ते आ प्रमाणे-कल्पोपपन्नकवैमानिकदेव अने कल्पातीतवैमानिक देव. कल्पोपपन्नकवैमानिक बार प्रकारना कह्या छे; सौधर्मकल्पोपन्नक, यावत् अच्युतकल्पोपन्नक. कल्पातीतवैमानिको हे गौतम ! बे प्रकारे कह्या छे; ते आ प्रमाणेगैवेयककल्पातीतवैमानिक देव अने अनुत्तरीपपातिककल्पातीत वैमानिक देव. गैवेयककल्पातीत वैमानिक देवो नत्र प्रकारे कह्या छे ते आ प्रमाणे--अधस्तन अधस्तन (नीचेनी त्रिकमां नीचे रहेला ) गैवेयककल्पातीत वैमानिक देवो, यावत् उपर उपर (उपरनी त्रिकमां उपरना) गैवेयक कल्पातीत देवो.
१-सिय-क। २-सिअदेव-घ। ३ कप्पोवनग-घ। ४-तग गो. दुषि-घ। ५-तगा न-क।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org