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________________ ४२ श्रीरायचन्द्र-ज़िनागमसंग्रहे शतक ८.-उद्देशक १. ३. प्रापओगपरिणया णं भंते ! पोग्गला कइविहा पन्नत्ता? [उ०] गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा-एगिदियपओगपरिणया, बेइंदियपओगपरिणया, जाव पंचिंदियपओगपरिणया। ____४. [प्र०] एगिदियपओगपरिणया णं भंते ! पोग्गला कइविहा पन्नत्ता ? [उ०] गोयमा ! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा-पुढविकाइअएगिदियपओगपरिणया, जाव वणस्सइकाइअएगिदिअपओगपरिणया । ५. [प्र०] पुढविकाइअएगिदिअपओगपरिणया णं भंते! पोग्गला कइविहा पन्नत्ता ? [उ०] गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-सुहुमपुढविक्काइअएगिदिअपओगपरिणया, यादरपुढविकाइअएगिदियपओगपरिणया य । आउकाइअएगिदिअपयोगपरिणया एवं चेव, एवं दुयओ भेदो जाव वणस्सइकाइआ य । ६. [प्र०] बेइंदियपओगपरिणयाणं पुच्छा । [उ०] गोयमा! अणेगविहा पन्नत्ता, एवं तेइंदियपयोगपरिणया, चउरिदियपयोगपरिणया वि। ७. [प्र०] पंचिंदियपयोगपरिणयाणं पुच्छा। [उ०] गोयमा! चउन्विहा पन्नत्ता। तं जहा-रायपंचिंदियपयोगपरिणया, 'तिरिक्खपंचिंदियपयोगपरिणता, एवं मणुस्स०, देवपंचिंदियपरिणया य । ८. प्र० नेरइयपंचिदियपओगपरिणयाणं पुच्छा। उ०] गोयमा! सत्तविहा पन्नत्ता; तं जहा–रयणप्पभापुढविनेरइअपंचिदियपयोगपरिणता वि, जाव अहेसत्तमपुढविनेरइअपयोगपरिणता वि । ९. [प्र०] तिरिक्खजोणियपंचिंदियपयोगपरिणयाणं पुच्छा। [उ०] गोयमा ! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा-जलचरपंचिंदियतिरिक्खजोणियपयोगपरिणया, थलचरपंचिंदिय०, खहचरपंचिंदिय० । प्रयोगपरिणत ३. [प्र०] 1हे भगवन् ! प्रयोगपरिणत पुद्गलो केटला प्रकारना कह्या छे ? [उ०] हे गौतम | पांच प्रकारना कह्या छे; ते आ प्रथम दंडक. प्रमाणे-एकेन्द्रियप्रयोगपरिणत ( एकेन्द्रिय जीवना व्यापार वडे परिणाम पामेला ), बेइन्द्रियप्रयोगपरिणत, यावत् पंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो. एकेन्द्रियप्रयो ४. [प्र०] हे भगवन् ! एकेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो केटला प्रकारना कह्या छे ? [उ.] हे गौतम ! पांच प्रकारना कह्या छे. ते गपरिणत. __आ प्रमाणे-पृथिवीकायिकएकेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो, यावत् वनस्पतिकायिकएकेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो. ५. [प्र०] हे भगवन् ! पृथिवीकायिकएकेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो केटला प्रकारना कह्या छे ! [उ०] हे गौतम ! बे प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-सूक्ष्मपृथिवीकायिकएकेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो, अने बादरपृथिवीकायिकएकेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो. ए प्रमाणे अप्कायिकएकेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो (वे प्रकारे) जाणवा, ए प्रमाणे यावत् वनस्पतिकायिकप्रयोगपरिणत पुद्गलो पण बे प्रकारना जाणवा. बेइन्द्रियप्रयोग- ६. [प्र०] हे भगवन् ! बेइन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो केटला प्रकारना छे ? [उ०] हे गौतम ! ते अनेक प्रकारना कह्या छे. परिणत. ए प्रमाणे तेइन्द्रिय अने चउरिन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो पण जाणवा. पंचेन्द्रियप्र. ७. [प्र०] हे भगवन् ! पंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो केटला प्रकारना कह्या छ ? [उ०] हे गौतम ! ते चार प्रकारना कह्या छे. योगपरिणत. ते आ प्रमाणे-नारकपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत, तिर्यंचपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत, ए प्रमाणे मनुष्यपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत अने देवपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत. नैरयिकप्रयोग- ८. प्र०) हे भगवन् ! नैरयिकपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो केटला प्रकारना कह्या छ ? [उ०] हे गौतम! नैरयिकपंचेन्द्रिय प्रयोगपरिणत पुद्गलो सात प्रकारना कह्या छे; ते आं प्रमाणे-रत्नप्रभापृथिवीनैरयिकपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत, अने यावत् नीचे सप्तम नरकपृथिवीनैरयिकप्रयोगपरिणत पुद्गलो... तिर्यंचपंचेन्द्रिय ९. [प्र०] हे भगवन् ! तिर्यंचयोनिकपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो केटला प्रकारना कह्या छे ? [उ०] हे गौतम! तिर्यंचयोनिकप्रयोगपरिणत. पंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो त्रण प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-जलचरतियंचयोनिकपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत, स्थलचरतियंचयोनिकपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत अने खेचरतियंचयोनिकपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो. परिणत. १ षणस्सइकाइमाण पुच्छा, गोयमा ! अणेगविहा पश्चत्ता क। २तिरिक्ख एवं म-क।।-घरतिरिक्खपचिंदियजोणिय-क। ३. हिवे नव दंडव द्वारा (सू०३-२४) प्रयोगपरिणत पुद्गलोनुं निरूपण करे छे-१ सूक्ष्म एकेन्द्रियथी आरंभी सर्वार्थसिद्धदेवो पर्यन्त जीवोनी विशेषताथी प्रयोगपरिणत पुद्गलनो प्रथम दंडक, २ तेवी रीते सूक्ष्म पृथिवीकायिकथी प्रारंभी सर्वार्थसिद्धदेवो सुधी पर्याप्त अने अपर्याप्तना मेथी बीजो दंडक, ३ औदारिकादि पांच शरीरनी विशेषताथी त्रीजो दंडक, ४ पांच इन्द्रियोनी विशेषताथी चोथो दंडक, ५ औदारिकादि पांच शरीर अने स्पर्शादि पांच इन्द्रियोनी विशेषताथी पांचमो दंडक, ६ वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श अने संस्थाननी विशेषताथी उठो दंडक, औदारिकादिशरीर अने वर्णादिनी विशेषताथी सातमो दंडक, 6 इन्द्रियो भने वर्णादिनी विशेषताथी आठमो दंडक, भने ९ शरीर, इन्द्रिय अने वर्णादिनी विशेषताथी नवमो दंडक. ए प्रमाणे नव दंडक जाणवा-टीकाकार, Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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