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२४ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ७.-उद्देशक ७. ८. [प्र०] सचित्ता भंते ! भोगा, अचित्ता भोगा? [१०] गोयमा! सचित्ता विभोगा, अचित्ता वि भोगा। ९. [प्र०] जीवा गं भंते ! भोगा?-पुच्छा [उ०] गोयमा ! जीवा वि भोगा, अजीवा वि भोगा। १०. [प्र०] जीवाणं भंते ! भोगा, अजीवाणं भोगा ? [उ०] गोयमा ! जीवाणं भोगा, नो अजीवाणं भोगा । ११. [प्र०] कतिविहा णं भंते ! भोगा पनत्ता ? [उ०] गोयमा ! तिविहा भोगा पन्नत्ता, तं जहा-गंधा, रसा, फासा ।
१२. [प्र०] कतिविहा णं भंते ! कामभोगा पण्णत्ता ? [उ०] गोयमा ! पंचविहा कामभोगा पन्नत्ता, तं जहा-सहा, रूवा, गंधा, रसा, फासा ।
१३. [प्र०] जीवा णं भंते ! किं कामी, भोगी? [उ०] गोयमा! जीवा कामी वि, भोगी वि । [प्र०] से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-जीवा कामी वि. भोगी वि ? [उ०] गोयमा ! सोइंदिय-चक्खिदियाई पडुच्च कामी, धाणिदिय-जिभिदिय-फासिंदियाई पडुच्च भोगी, से तेणटेणं गोयमा! जाव भोगी वि।
१४. [प्र०] नेरइया णं भंते ! किं कामी, भोगी ? [उ०] एवं चेव, एवं जाव थणियकुमारा ।
१५. [प्र०] पुढेविकाइयाणं पुच्छा [उ०] गोयमा ! पुढविकाइया नो कामी, भोगी। [प्र०] से केणटेणं जाव भोगी ? [उ०] गोयमा ! फासिदियं पडुच्च, से तेणटेणं जाव भोगी; एवं जाव वणस्सइकाइया; बेइंदिया एवं चेव, नवरं जिभिदियफासिंदियाइं पडुच्च भोगी; तेइंदिया वि एवं चेव, नवरं घाणिदिय-जिभिदिय-फासिंदियाइं पडुच्च भोगी।
१६. [प्र०] चरिंदियाणं पुच्छा [उ०] गोयमा! चरिंदिया कामी वि, भोगी वि । [प्र०] से केणटेणं जाव भोगी वि ? [उ०] गोयमा! चक्खिदियं पडुच्च कामी, घाणिदिय-जिभिदिय-फासिंदियाई पडुच्च भोगी, से तेणटेणं जाव भोगी वि । अवसेसा जहा जीवा, जाव वेमाणिया।
भोगो सचित्त के ८. [प्र०] हे भगवन् ! भोगो सचित्त छे के अचित्त छे ? [प्र०] हे गौतम ! भोगो सचित्त पण छे अने अचित्त पण छे.
अचित्त।. भोगो जीव के ९. [प्र०] हे भगवन् ! भोगो जीवस्वरूप छे के अजीवस्वरूप छे? [उ.] हे गौतम! भोगो जीवस्वरूप पण छे अने अजीवखरूप
अजीव! पण छे. भोगी जीवोनोयो १०. [प्र०] हे भगवन् ! भोगो जीवोने होय के अजीबोने होय ! [उ० ] हे गौतम ! भोगो जीवोने होय छे, पण अजीवोने भोगो
अजीवोने! होता नथी. भोगोना प्रकार. ११. [प्र०] हे भगवन् ! भोगो केटला प्रकारना कह्या छ ? [ उ० ] हे गौतम ! भोगो त्रण प्रकारना कह्या छे; ते आप्रमाणे-गंध,
रस अने स्पर्श. काम भोगना प्रकार. १२. [प्र०] हे भगवन् ! काम-भोग केटला प्रकारे कह्या छे ! [ उ० ] हे गौतम ! काम अने भोग [ बन्ने मळी ] पांच प्रकारना
कह्या छे, ते आ प्रमाणे-शब्द, रूप, रस, गंध अने स्पर्श. जीवो कामी के भोगी? १३. [प्र०] हे भगवन् ! शुं जीवो कामी के भोगी छे ? [उ० ] हे गौतम ! जीवो कामी पण छे, अने भोगी पण छे. [प्र०] हे
भगवन् ! एम शा हेतुथी कहो छो के जीवो कामी पण छे अने भोगी पण छे ! [उ०] हे गौतम! श्रोत्रंद्रिय अने चक्षुने आश्रयी जीवो कामी कहेवाय छे, तेम घ्राणेन्द्रिय, जिहेन्द्रिय अने स्पर्शनेन्द्रियनी अपेक्षाए जीवो भोगी कहेवाय छे; ते हेतुथी हे गौतम ! जीवो यावत्
भोगी पण छे. नारको कामी भने १४. हे भगवन् ! शुं नारको कामी छे के भोगी छे ! [उ.1 पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवू, ए प्रमाणे यावत् स्तनितकुमारोने जाणवू.
'भोगी. पृथिवीकाय. १५. [प्र०] हे भगवन् ! पृथिवीकायिकनो प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! पृथिवीकायिको कामी नथी, पण भोगी छे. [प्र०] हे
भगवन् ! शा हेतुथी एम कहो छो के पृथिवीकायिको भोगी छे ? हे गौतम! स्पर्शनेन्द्रियने आश्रयी; ते हेतुथी तेओ यावत् भोगी छे. ए प्रमाणे बेन्द्रिय ते इन्द्रिय यावत् वनस्पतिकायिको जाणवा, बेइन्द्रिय जीवो पण ए प्रमाणे जाणवा, परन्तु तेओ जिह्वा अने स्पर्शनेन्द्रियनी अपेक्षाए भोगी छे. तेइन्द्रिय
जीवो. जीवो पण ए प्रमाणे जाणवा, पण घाण, जिह्वा अने स्पर्शनेन्द्रियनी अपेक्षाए तेओ भोगी छे. चतुरिन्द्रिय जीवो. १६. [प्र०] चउरिन्द्रिय जीवोनो प्रश्न. [उ.] हे गौतम! चउरिन्द्रिय जीवो कामी पण छे अने भोगी पण छे. [प्र०] हे
भगवन् ! शा हेतुथी यावत् भोगी पण छे ? [उ.] ते चउरिन्द्रिय जीवो चक्षुनी अपेक्षाए कामी; घाण, जिह्वा अने स्पर्शनेन्द्रियनी अपेक्षाए भोगी छे; ते हेतुधी यावत् भोगी समजवा. वाकीना यावत् वैमानिक सुधीना जीवो जेम सामान्य जीवो कह्या तेम जाणवा.
१ पुढवीकाईआ-ख। २ पडुच्चते-ख।
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