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________________ शतक १४. - उद्देशक ८. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. ३६१ १९. [प्र०] अत्थि णं भंते ! जंभया देवा २१ [अ०] हंता अस्थि । [प्र०] से केणट्टेणं भंते ! एवं बुध- 'जंभया देवा' २१ [०] गोयमा ! जंभगा णं देवा निचं पमुइय-पक्कीलिया कंदप्परतिमोद्दणसीला, जेणं ते देवे कुद्धे पासेज्जा, से णं पुरिसे महंत अयसं पाउणिज्जा, जे णं ते देवे तुट्ठे पासेज्जा, से णं महंतं जसं पाउणेज्जा, से तेणट्टेणं गोयमा ! 'अंभगा देवा' २ | २०. [प्र० ] कतिविहाणं भंते ! जंभगा देवा पण्णत्ता ? [अ०] गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता, तंजहा- १ अन्नजंभगा, २ पाणजंभगा, ३ वत्थजंभंगा, ४ लेणजंभगा, ५ सयणजंभगा, ६ पुप्फजंभगा, ७ फलजंभगा, ८ पुप्फ-फलजंभगा, ९ विजागंभगा, १० अवियत्तजंभगा । २१. [प्र० ] भगाणं भंते ! देवा कहिं वसहि उवेंति ? [अ०] गोयमा ! सधेसु चेव दीवेयसु, चित्त-विचित्तजमगपचपसु, कंचणपचपसु य, पत्थ णं जंभगा देवा वसहि उवेंति । २२. [प्र० ] भगाणं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? [उ०] गोयमा ! एगं पलिओवमं ठिती पण्णत्ता । 'सेकं भंते । सेवं भंते' ! त्ति जाव- विहरति । चोदसमसए अट्टमो उद्देसो समत्तो । १९. [प्र० ] हे भगवन् ! शुं एम छे के जृंभक देवो ते जृंभक ( स्वच्छन्दचारी) देवो छे ? [उ०] हा, गौतम ! एम छे. [प्र०] हे भगवन् ! कया हेतुथी जृंभकदेवो ए 'जृंभकदेवो' (स्वच्छन्दचारी देवो) कहेवाय ? [ उ० ] हे गौतम! जृंभकदेवो हंमेशा प्रमोदवाळा, अत्यन्त क्रीडाशील, कंदर्पने विषे रतिबाळा अने मैथुन सेववाना स्वभाववाळा होय छे, जे ते देवोने गुस्से थयेला जुए छे, ते पुरुषो घणो अपयश पामे छे, तथा जेओ ते देवोने तुष्ट थयेला जुए छे तेओ घणो यश पामे छे, माटे हे गौतम! ते हेतुथी जृंभकदेवो ए 'जंभकदेवो' एम कहेवाय छे. २०. [प्र०] हे भगवन् ! जृंभक देवो केटला प्रकारना कह्या छे ? [उ०] हे गौतम! दश प्रकारना कह्या छे - १* अन्नजृंभक, २ पा- जनक देवोना प्रकार नजृंभक, ३ वस्त्रजृंभक, ४ गृहजृंभक, ५ शयनजृंभक, ६ पुष्पजृंभक, ७ फलजृंभक, ८ पुष्प - फलजुंभक, ९ विद्याजृंभक अने १० अल्पक्तभक. २१. [प्र०] हे भगवन् ! जृंभक देवो क्यां वसे छे ? [उ०] हे गौतम! तेओ ( जृंभकदेवो ) बधा दीर्घ वैताढ्योमां, चित्र, विचित्र, यमक अने समक पर्वतोमां तथा कांचनपर्वतोमां वसे छे. २० * भोजनविषे तेनो अभाव करवो के सदभाव करवो, तेने अरूप कर के घणुं करवुं, सरस करवुं के नीरस करवुं- इत्यादि चेष्टा करे ते अनजृंभक देवो कहेवाय छे. ए प्रमाणे पानादिजृंभक देवो पण जाणवा. अन्नादिना विभाग शिवाय सामान्यरूपे जे चेष्टा करे ते अव्यक्तजृंभक कहवाय छे. टीका. ४६ भ० सू० Jain Education International देवो. म देवो शाथी कवाय २२. [प्र०] हे भगवन् ! जृंभक देवोनी स्थिति केटला काळनी कही छे ? [उ०] हे गौतम ! तेनी एक पल्योपमनी स्थिति कही भक देवोनी स्थिति. छे. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे' - एम कही भगवान् गौतम यावद् विहरे छे. चतुर्दश शतके अष्टम उद्देशक समाप्त. For Private & Personal Use Only जंभक देवो क्या रहे www.jainelibrary.org
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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