________________
शतक ७.-उद्देशक ३.
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. १४. [प्र.] नेरइयाणं भंते ! जे वेदणासमए से निजरासमए, जे निजरासमए से वेदणासमए ? [30] गोयमा ! णो तिणटे समटे । [प्र०] से केणटेणं एवं बुच्चइ–नेरइयाणं जे वेदणासमए न से निजरासमए, जे निजरासमए न से घेयणासमए ? [उ०] गोयमा ! नेरइया णं जं समयं वेदेति णो तं समयं निजरेंति, जं समयं निजरेंति नो तं समयं वेदेति, अन्नम्मि समए वेदेति, अन्नम्मि समए निजरेंति, अन्ने से वेदणासमए, अन्ने से निजरासमए, से तेणटेणं जावन से वेवणासमए, एवं जाव वेमाणियाणं।
१५. [प्र०] नेरइया णं भंते! किं सासया, असासया ? [उ.] गोयमा! सिय सासया, सिय असासया । [प्र.] से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-नेरइया सिय सासया, सिय असासया ? [उ.] गोयमा ! अधोच्छित्तिनयट्टयाए सासया, वोच्छित्तिनयट्टयाए असासया, से तेणटेणं जाव सिय सासया, सिय असासया; एवं जाव वेमाणिया, जाव सिय असासया । सेवं भंते !, सेवं भंते ! ति ।
सत्तमसए ततिओ उद्देसो समत्तो।
१४. प्रि०] हे भगवन् ! शुं नारकोने जे वेदनानो समय छे, ते निर्जरानो समय छे, अने निर्जरानो समय छे ते वेदनानो समय छे? नारकोने वेदना अने
निर्जरानो समय [उ०] हे गौतम ! ए अर्थ योग्य नथी. [प्र०] हे भगवन् ! एम शा कारणथी कहो छो के नारकोने जे वेदनानो समय छे ते निर्जरानो समय भिम के. नथी, अने जे निर्जरानो समय छे ते वेदनानो समय नथी ? [उ०] हे गौतम ! नारको जे समये वेदे छे ते समये निर्जरा करता नथी, अने जे समये निर्जरा करे छे ते समये वेदता नथी, अन्य समये वेदे छे अने अन्य समये निर्जरा करे छे, तेओनो वेदनानो समय जूदो छे, अने निर्जरानो समय जूदो छे; ते हेतुथी यावत् निर्जरानो समय ते वेदनानो समय नथी. ए प्रमाणे यावत् वैमानिकोने जाणवू.
१५. [प्र०) हे भगवन् ! शुं नारको शाश्वत छे के अशाश्वत छे! [उ०] हे गौतम! कथंचित् शाश्वत छे, अने कथंचित अशा- नारको शाश्वत बने श्वत पण छे [प्र०] हे भगवन् ! शा कारणथी एम कहो छो के नारको कथंचित् शाश्वत छे अने कथंचित् अशाश्वत छे ! [उ०] हे गौतम ! अव्युच्छित्तिनय-(द्रव्यार्थिकनय--)नी अपेक्षाए शाश्वत छे, अने व्युच्छित्तिनयनी (पर्यायनयनी) अपेक्षाए अशाश्वत छे; ते हेतुधी यावत् कथंचित् शाश्वत छे अने कथंचित् अशाश्वत छे. ए प्रमाणे यावत् वैमानिको यावत् कथंचित् अशाश्वत छे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे [एम कही गौतम यावत् विचरे छे.]
सप्तमशतके तृतीय उद्देशक समाप्त
Jain Education international
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org