SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२० श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक १३-उद्देशक ४. [उ०] एक्को। [प्र०] केवतिया जीवत्थिकायपदेसा? [उ०] अणंता। [प्र०] केवतिया पोग्गलत्थिकायपदेसा० १ [उ०] अणंता । [प्र०] केवतिया अद्धासमया? [उ०] सिय ओगाढा सिय नो ओगाढा, जइ ओगाढा अणंता। ३३. [प्र०] जत्थ णं भंते! एगे अहम्मत्थिकायपएसे ओगाढे तत्थ केवंतिया धम्मत्थिंकायपदेसा ओगाढा? उ.] एक्को। [प्र०] केवतिया अहम्मत्थि ? [उ०] नत्थि एक्को वि । सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स । २४.प्रा जत्थ णं भंते ! एगे आगासस्थिकायपएसे ओगादे तत्थ केवतिया धम्मत्थिकायपदेसा ओगादान सिय ओगाढा सिय नो ओगाढा, जइ ओगाढा पक्को, एवं अहम्मत्थिकायपएसा वि। [प्र०] केवइया आगासत्थिकाय ? [उ.] नत्थि एक्को वि। [प्र०] केवतिया जीवत्थि० ? [उ०] सिय ओगाढा सिय नो ओगाढा, जइ ओगाढा अणंता, एवं जाव-अद्धासमया। ३५. [३०] जत्थ णं भंते! एगे जीवत्थिकायपएसे ओगाढे तत्थ केवतिया धम्मत्थि.? [उ०] पक्को, एवं अहम्मत्थिकायपदेसा वि । एवं आगासत्थिकायपरसा वि।[प्र०] केवतिया जीवस्थि० ? [उ०] अणंता, सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स । ३६. [प्र०] जत्थ णं भंते ! एगे पोग्गलत्थिकायपएसे ओगाढे तत्थ केवतिया धम्मत्थिकाय ? [उ०] एवं जहा जीवत्थिकायपएसे तहेव निरवसेसं ।। ३७. [प्र०] जत्थ णं भंते ! दो पोग्गलत्थिकायपदेसा ओगाढा तत्थ केवतिया धम्मत्थिकाय ? [उ०] सिय एक्को सिय दोन्नि, एवं अहम्मत्थिकायस्स वि, पवं आगासत्थिकायस्स वि, सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स। ३८. [प्र०] जत्थ णं भंते ! तिन्नि पोग्गलत्थिकायपदेसा तत्थ केवइया धम्मत्थिकाय ? [उ०] सिय एको, सिय ज्या धर्मास्तिकायनो छ ? [उ०] एक पण प्रदेश अवगाढ नथी. (प्र०] केटला अधर्मास्तिकायना प्रदेशो अवगाढ-रहेला होय? [उ०] एक अधर्मास्तिकायनो प्रदेश रहेलो एक प्रदेश अवगाढ होय त्या माजा होय. [प्र०] केटला आकाशास्तिकायना प्रदेश अवगाढ होय ? [उ०] एक प्रदेश अवगाढ होय. [प्र०] केटला जीवास्तिकायना प्रदेशो अवगाढ धर्मास्तिकायादिना होय ? उ०] अनन्त प्रदेशो अवगाढ होय. [प्र०] केटला पुद्गलास्तिकायना प्रदेशो अवगाढ होय ! [उ०] अनन्ता प्रदेशो अवगाढ होय. केटला प्रदेश भवन गाढ होया प्र०] केटला अद्धासमयो अवगाढ होय ! [उ०] अद्धासमयो कदाच अवगाढ होय अने कदाच अवगाढ न होय; जो अवगाढ होय तो अनन्त अद्धासमयो अवगाढ होय. अधर्मास्तिकायनो ३३. प्र०] हे भगवन् ! ज्यां अधर्मास्तिकायनो एक प्रदेश अवगाढ-रहेलो होय त्यां केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशो अवगाढ होय ! पक प्रदेश [उ०] त्यां धर्मास्तिकायनो एक प्रदेश अवगाढ होय. [प्र०] केटला अधर्मास्तिकायना प्रदेशो अवगाढ होय ! [उ०] एक पण नथी. बाकी बधुं धर्मास्तिकायनी पेठे जाणवू. भाकाशास्तिका- ३४. [प्र०] हे भगवन् ! ज्या आकाशास्तिकायनो एक प्रदेश अवगाढ होय त्यां केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशो अवगाढ होय ? यनो एक प्रदेश. [उ०] त्या धर्मास्तिकायना प्रदेशो कदाच अवगाढ-रहेला होय, अने कदाच न अवगाढ होय. जो अवगाढ होय तो एक प्रदेश अवगाढ होय. ए प्रमाणे अधर्मास्तिकायना प्रदेशो पण जाणवा. [प्र०] केटला आकाशास्तिकायना प्रदेशो अवगाढ होय ! [उ०] एक पण न होय. [प्र०] केटला जीवास्तिकायना प्रदेशो अवगाढ होय ! [उ०] कदाच अवगाढ होय अने कदाच न अवगाढ होय. जो अवगाढ होय तो अनन्त प्रदेशो अवगाढ होय. ए प्रमाणे यावत्-अद्धासमय सुधी जाणवू. बीवास्तिकायनो एक ३५. [प्र०] हे भगवन् ! ज्या जीवास्तिकायनो एक प्रदेश अवगाढ होय त्यां केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशो अवगाढ होय ! [उ.] प्रदेश. त्यां एक प्रदेश अवगाढ होय. ए प्रमाणे अधर्मास्तिकायना प्रदेशो पण जाणवा. आकाशास्तिकायना प्रदेशो पण ए रीते जाणवा. [प्र०] जीवास्तिकायना केटला प्रदेशो अवगाढ होय ? [उ०अनन्ता प्रदेशो अवगाढ होय. बाकी बधु धर्मास्तिकायनी पेठे जाणवू. पुद्गलास्तिकायनो ३६. [प्र०] हे भगवन् ! ज्यां पुद्गलास्तिकायनो एक प्रदेश अवगाढ होय त्यां धर्मास्तिकायना केटला प्रदेशो अवगाढ होय ? [उ०] एक प्रदेश. - ए प्रमाणे जेम जीवास्तिकायना प्रदेश संबन्धे कयुं तेम बधुं कहेवू. पुद्राग्निापना ३७. [प्र०] हे भगवन् ! ज्यां पुद्गलास्तिकायना बे प्रदेशो अवगाढ होय त्यां धर्मास्तिकायना केटला प्रदेशो अवगाढ-रहेला होय ! वे प्रोमो. [उ०] कदाच एक प्रदेश अवगाढ होय, अने कदाच वे प्रदेशो अवगाढ होय. ए प्रमाणे अधर्मास्तिकाय संबन्धे पण जाणवू. ए प्रमाणे आकाशास्तिकाय संबंधे पण जाणवू. बाकी बधुं [जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय अने अद्धासमय संबन्धे] जेम धर्मास्तिकायना प्रदेशनी वक्तव्यतामा कछु छे तेम पुद्गलास्तिकायना बे प्रदेशनी वक्तव्यताने विषे पण कहे. [अर्थात् तेओना अनन्त प्रदेशो अवगाढ होय छे.] पुद्गास्तिकायना ३८. [प्र०] हे भगवन् ! ज्यां पुद्गलास्तिकायना त्रण प्रदेशो अवगाढ-रहेला छे त्यां केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशो अवगाढ होय ? त्रण प्रदेशो. [उ.] कदाच एक, कदाच बे अने कदाच त्रण प्रदेशो अवगाढ होय. [कारणके ज्यारे पुद्गलास्तिकायना त्रण प्रदेशो एक आकाशास्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy