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शतक १३.-उद्देशक ४. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
३१९ २९. [प्र०] एगे भंते! अद्धासमए केवतिपहिं धम्मत्थिकायपएसेहिं पुढे? [उ०] सत्तहिं । प्र०] केवतिपहिं अहम्मथि[उ.] पवं चेव, एवं आगासस्थिकाएहि वि । [प्र०] केवतिपहिं जीवस्थिकाय? [उ०] अणंतेहिं, एवं जाव'अद्धासमपहि।
३०. [प्र०] धम्मत्थिकाए णं भंते ! केवतिपहिं धम्मत्थिकायप्पएसेहिं पुढे ? [उ०] नत्थि पक्केण वि । [प्र०] केवतिपहिं अधम्मत्थिकायप्पएसेहिं ? [उ०] असंखेजेहिं । प्र०] केवतिपहिं आगासस्थिकायपदेसेहिं० [उ०] असंखेजेहिं । प्र० केवतिएहिं जीवत्थिकायपएसेहिं ? [उ.] अणंतेहिं । [प्र०] केवतिएहिं पोग्गलत्थिकायपरसेहि.? [उ०] अणंतेहिं प्र०] केवतिएहिं अद्धासमएहिं ? [उ०] सिय पुढे, सिय नो पुढे, जइ पुढे नियमा अणंतेहिं ।
३१. [प्र०] अहम्मत्थिकाए णं भंते ! केवइएणं धम्मत्थिकाय? [उ०] असंखेजोहिं । [प्र०] केवतिपहिं अहम्मत्थि०१ उ०] णत्थि एक्केण वि, सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स । एवं एएणं गमएणं सधे वि सट्टाणए नत्थि एक्केण वि पुट्टा । परदाणए आदिल्लएहिं तिहिं असंखेजेहिं भाणियचं, पच्छिल्लएसु 'अणंता' भाणियचा, जाव-अद्धासमयो त्ति, जाव-[प्र०] केवतिपहिं श्रद्धासमएहिं पुढे ? [उ०] नत्थि एक्केण वि।
३२. [प्र. जत्थ गं भंते! एगे धम्मत्थिकायपएसे ओगाढे, तत्थ केवतिया धम्मत्थिकायप्पपसा ओगाढा? [उ.] नस्थि एको वि । [प्र०] केवतिया अहम्मत्थिकायप्पएसा ओगाढा ? [उ०] एको । [प्र०] केवतिया आगासत्थिकायपदेसा० ?
२९. प्र० हे भगवन् ! अद्धा-कालनो एक समय केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय ! (उ०] *अद्धासमय कालनो एक समय. सात प्रदेशोवडे स्पर्श करायेलो होय. [प्र०] केटला अधर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय ! [उ०] उपर प्रमाणे जाणवू. ए प्रमाणे आकाशास्तिकायना प्रदेशोवडे पण स्पर्शना जाणवी. [अ०] केटला जीवास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय ! [उ०] अनन्त प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय. ए प्रमाणे यावत्-[अनन्त] अद्धासमयोवडे स्पर्शना जाणवी.
३०. [प्र०] हे भगवन् ! धर्मास्तिकायद्रव्य केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय ! [उ०] एक पण प्रदेशवडे स्पर्श धर्मास्तिकायदम्य. करायेल न होय. [प्र०] केटला अधर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय ? [उ०] असंख्याता प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय. [प्र.] केटला आकाशास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय ! [उ०] असंख्यात प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय. [प्र०] केटला जीवास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय ! [उ०] अनन्ता प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय. [प्र०] केटला पुद्गलास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय ! [उ०] अनन्त प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय. [प्र०] केटला अद्धासमयोवडे स्पर्श करायेल होय ! [उ०] कदाच स्पर्श करायेल होय अने कदाच स्पर्श करायेल न होय. जो स्पर्श करायेल होय तो अवश्य अनन्त समयोवडे स्पर्श करायेल होय.
३१. [प्र०] हे भगवन् ! अधर्मास्तिकाय केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशोवड़े स्पर्श करायेल होय ! [उ०] असंख्याता प्रदेशोवडे स्पर्श धर्मास्तिकाय. करायेल होय. प्र०] केटला अधर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय ? [उ०] एक पण प्रदेशवडे स्पर्श करायेल न होय. बाकी बधुं धर्मास्तिकायनी पेठे जाणवू. ए प्रमाणे ए पाठ वडे सर्वे पण स्वस्थानके एक पण प्रदेशवडे स्पर्श करायेल नथी, परस्थानके-आदिनां त्रण स्थानके-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय अने आकाशास्तिकाय ए त्रण स्थळे असंख्याता प्रदेशो वडे स्पर्श करायेल होय एम कहे. अने पछीना त्रण स्थळे 'अनन्त प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय'-एम यावत्-अद्धा समय सुधी कहे. यावत्-प्र०] केटला अद्धा समयोबडे स्पर्श करायेल होय ! [उ०] एक पण समयवडे स्पर्श करायेल न होय.
३२. [प्र०] हे भगवन् ! ज्यां धर्मास्तिकायनो एक प्रदेश अवगाढ-रहेलो होय त्यां बीजा केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशो अवगाढ होय ९अवगाद्वार
२९ महिं वर्तमानसमयविशिष्ट समयक्षेत्रमा रहेलो परमाणु अद्धासमय तरीके जाणवो, अन्यथा अद्धासमयने धर्मास्तिकायना सात प्रदेश साथे स्पर्शना न होय. अहिं जघन्यपद नथी, केमके अद्धासमय मनुष्यक्षेत्रना मध्यवती छे. जघन्यपदनो तो लोकान्तने विषे संभव छ, भने लोकान्तने विषे काल नथी. श्रद्धासमयविशिष्ट परमाणुद्रव्य एक धर्मास्तिकायना प्रदेशने विषे अवगाढ छ, भने वीजा तेनी छ दिशाए धर्मास्तिकायना छ प्रदेशो रहेला छ-ए प्रमाणे तेने सात प्रदेशोनी स्पर्शना होय छे.
महिं यावत्शब्दथी एक अद्धासमय अनन्त पुद्गलास्तिकायप्रदेशोवडे अने अनन्त श्रद्धासमयोवडे स्पर्श करायेल होय, ते या प्रमाणे-भद्धासमयविशिष्ट अणुद्रव्य अद्धासमय कहेवाय छे, ते एक अद्धासमय पुद्गलास्तिकायना अनन्त प्रदेशोवडे भने अनन्त अद्धासमय-अद्धासमयविशिष्ट अनन्त परमाणुओवडे स्पर्श कराय छे.
३१ ज्या केवल धर्मास्तिकायादि द्रव्यनो तेना प्रदेशोनी साथे स्पर्शनानो विचार थाय ते खस्थानक कहेवाय, भीजा द्रव्यना प्रदेशोनी साथे स्पर्शनानो विचार थाय ते परस्थानक कहेवाय. तेमा खस्थानके एक पण प्रदेशवडे स्पृष्ट नथी, अने परस्थानके धर्मास्तिकायादि त्रण सूत्रने विषे असंख्य प्रदेशोवडे स्पृष्ट होय छे, केमके धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय अने तत्संबद्ध आकाशना असंख्य प्रदेशो छे. जीवादि प्रण सूत्रने विषे अनन्त प्रदेशो बढे स्पृष्ट होय छे. केमके तेओना अनन्त प्रदेशो छे. यावत् एक अद्धासमय क्रेटला अद्धासमयो वडे स्पर्श करायेल होय! एक पण अद्धासमय बढे स्पर्श करायेल नथी, कारण के निरुपचरित अदासमय एक ज होवाथी तेनी समयान्तरनी साथे स्पर्शना नथी.
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