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________________ १३ शतक ७.-उद्देशक ३. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. ५. [प्र०] अह भंते ! आलुए, मूलए, सिंगबेरे, हिरिली, सिरिलि, सिस्सिरिलि, किंट्ठिया, छिरिया, छीरविरालिया, कण्हकंदे, वजकंदे, सूरणकंदे, खेलूडे, अद्दभद्दमुत्था, पिंडहलिहा, लोहिणी, थीहू, थिरुगा, मुग्गपन्नी, अस्सकनी, सीहफनी, सीइंढी, मुसुंढी, जेयावन्ने तहप्पगारा सवे ते अणंतजीवा षिविहसत्ता? [उ.] हंता, गोयमा! आलुए, मूलए जाव अणंतजीवा विविहसत्ता। ६.०] सिय भंते ! कण्हलेसे नेरपए अप्पकम्मतराए, नीललेसे नेरपए महाकम्मतराएं? [उ०] इंता, सिया। प्रि० से केणटेणं भंते! एवं वुश्चइ-कण्हलेसे नेरइए अप्पकम्मतराए, नीललेसे नेरइए महाकम्मतराए ? [उ०] गोयमा! ठिति पडुच, से तेणटेणं गोयमा! जाव महाकम्मतराए । ७. [H०] सिय भंते ! नीललेसे नेरइए अप्पकम्मतराए, काउलेसे नेरहए महाकम्मतराए ? [उ०] हंता, सिया। प्रि० से केणटेणं भंते! एवं वुश्चर-नीललेसे अप्पकम्मतराए, काउलेसे नेरइए महाकम्मतराए ? [उ०] गोयमा! ठिति पडथ, से तेणट्रेणं गोयमा ! जाव महाकम्मतराए । एवं असुरकुमारे वि: नवरं तेउलेसा अम्भहिया, एवं जाव वेमाणिया, जस्स जइ लेस्साओ तस्स तत्तिया भाणियधाओ, 'जोइसियस्स न भण्णइ । जाव सिय भंते ! पम्हलेस्से वेमाणिए अप्पकम्मतराए, सुक्कलेस्से वेमाणिए महाकम्मतराए ? हंता, सिया । से केणटेणं ? सेसं जहा नेरइयस्स, जाव महाकम्मतराए । ८.प्र.] से नूणं भंते ! जा वेदणा सा निजरा, जा निजरा सा वेदणा? [उ०] गोयमा! णो तिणटे समढ़े। [प्र०] से केणटेणं भंते! एवं वुश्चइ-जा वेयणा न सा णिजरा, जा निजरा न सा वेयणा [उ०] गोयमा! कम्म वेदणा, णोकम्म निजरा, से तेणटेणं गोयमा! जाव न सा वेदणा। ५. [प्र०] हे भगवन् ! आलु (बटाटा ) मूला, आदु, हिरिली, सिरिलि, सिस्सिरिलि, किटिका, छिरिया, छीरविदारिका, वज्र- अनन्तजीव वनस्पति. कंद, सूरणकंद, खेलुडा, आर्द्रभद्रमोथ, पिंडहरिद्रा, रोहिणी, हुथीहू, थिरुगा, मुद्गपर्णी, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, सीहंढी, मुसुंढी अने तेवा प्रकारनी बीजी वनस्पतिओ शुं अनन्त जीववाळी अने भिन्न भिन्न जीववाळी छे ! [उ०] हे गौतम ! आलु (बटाटा) मूळा यावत् अनन्त जीववाळी अने भिन्न भिन्न जीववाळी छे. ६. [प्र०] हे भगवन् ! कदाच कृष्णलेश्यावाळो नारक अल्पकर्मवाळो अने नीललेश्यावाळो महाकर्मवाळो होय ! [उ०] हा, कृष्णलेल्यावालो ना रक अल्पकमैवालो गौतम! कदाच होय. [प्र०] हे भगवन् ! एम शा हेतुथी कहो छो के-कृष्णलेश्यावाळो नारक अल्पकर्मवाळो अने नीललेश्यावाळो । बाळा अने नीललेझ्यावाळो मारक महाकर्मवाळो होय ! (उ०] हे गौतम! "स्थितिनी अपेक्षाए, ते हेतुथी हे गौतम ! एम कहेवाय छे के ते यावत् महाकर्मवाळो होय. महाकर्मवानो होय. ७. [प्र०] हे भगवन् ! कदाच नीललेश्यावाळो नारक अल्पकर्मवाळो अने कापोतलेश्यावाळो नारक महाकर्मवाळो होय ! [उ.] नीललेश्यावाळो महा कर्मवाळो, अने कापणेहा, गौतम ! कदाच होय. [प्र०] हे भगवन् ! शा हेतुथी ए प्रमाणे कहो छो के-नीललेश्यावाळो नारक अल्पकर्मवाळो अने कापोतलेश्या- तले तलेश्यावाळो अपक वाळो नारक महाकर्मवाळो होय ! [उ०] हे गौतम ! स्थितिनी अपेक्षाए, ते हेतुथी हे गौतम ! ते यावत् महाकर्मवाळो होय. ए प्रमाणे मैवाको. असुरकुमारोने विषे पण जाणवं, परन्तु तेओने एक तेजोलेश्या अधिक होय छे. ए प्रमाणे वैमानिक देवो पर्यन्त जाणवू. जेने जेटली लेश्याओ होय तेने तेटली कहेवी, पण ज्योतिष्क देवोने न कहेवं, यावत्-प्र०] हे भगवन् ! कदाच पद्मलेश्यावाळो वैमानिक अल्पकर्मवाळो अने शुक्ललेश्यावाळो वैमानिक महाकर्मवाळो होय ! [उ०] हे गौतम! हा, कदाच होय. [प्र०] ते शा हेतुथी ! [उ०] बाकी- जेम नारकने कह्यं तेम जाणवू, यावत् महाकर्मवाळो होय. ८. [प्र०] हे भगवन् ! खरेखर जे वेदना ते निर्जरा, अने जे निर्जरा ते वेदना कहेवाय ! [उ०] हे गौतम! ए अर्थ योग्य नथी. वेदना ते निरा नथी. [प्र०] हे भगवन् , एम शा हेतुथी कहो छो के-जे वेदना ते निर्जरा अने जे. निर्जरा ते वेदना न कहेवाय ? [उ०हे गौतम! वेदना कर्म छे, अने निर्जरा नोकर्म छे, ते हेतुथी यावत् ते वेदना न कहेवाय. . मूलुए ख । २ किहिया घ। ३ खेछडे क । ४ अहए भइ-घ । ५ सिय ख। -सियस्स गंन ख। ७ सिय ख। ६. *कृष्णलेश्या अत्यन्त अशुभ परिणामरूप होवाथी अने तेनी अपेक्षाए नीललेश्या कईक शुभ परिणामरूप होवाथी सामान्यतः कृष्णलेश्यावाळो बहुकम्मी अने नीललेश्यावाळो अल्पकर्मवाळो होय, परन्तु कदाच आयुषनी स्थितिनी अपेक्षाथी कृष्णलेश्याघाळो अल्पकर्मवाळो भने नीललेश्यावाळो महाकर्मवाळो होय. जेम के कृष्णलेश्यावाळो नारक जेणे पोताना आयुष्नी घणी स्थिति क्षय करेली छे तेने घणा कर्मनो क्षय थयो होय, तेनी अपेक्षाए कोद पांचमी नरकपृथ्वीमा सत्तरसागरोपमना आयुष्यवाळो नीललेश्यावाळो जीव जे हवणांज उत्पन्न थयो होय तेने पोताना भायुषनी स्थितिनो बधारे क्षय नहि कर्यो होवाथी घणा कर्म बाकी होय, तेथी ते महाकर्मवाळो होय. जुओ-भ. टी. प. ३०१-१.- . ७. ज्यिोतिष्कने तेजो लेश्या शिवाय यीजी अन्य लेश्या नहि .होवाथी अन्यलेश्यासापेक्ष ते अल्पकर्मवाळो के महाकर्मवाळो न कहेव.य. जुओस. टी. प. ३०१-1 ८. उदयप्राप्त कर्मनुं वेदवू-अनुभव करवो ते वेदना, अने वेदित फर्मनो क्षय थवो ते निर्जरा, एटले वेदना फर्मनी थती होवाथी तेने कर्म कब, कर्म वेदित थयु एटले तेने कर्म न कही शकाय, तेथी नोकर्मनी निर्जरा थाय छे, माटे निर्जराने नोकर्म का छे. ज़ओ-(भ. टी. ५.३.१-१.) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org.
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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