SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८० श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक १२.-उद्देशक ६. च्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउष्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदलेस्सं आवरेमाणे २ चिट्ठति तदा णं मणुस्सलोए मणुस्सा वदंति'एवं खलु राहू चंदं गेहति, एवं०१ २ । जदा णं राहू आगच्छमाणे ४ चंदस्स लेस्सं आवरेत्ता णं पासेणं बीहषयह तदा मणस्सलोए मणुस्सा वदंति-'एवं खलु चंदेणं राहुस्स कुच्छी भिन्ना, एवं० २ । जदा गं राहू आगच्छमाणे वा चंदस्स लेस्सं आवरेत्ता णं पच्चोसक्कइ तदा णं मणुस्सलोए मणुस्सा वदंति-'एवं खलु राहुणा चंदे वंते, एवं०१२। जदाणं राहू आगच्छमाणे वा ४ जाव-परियारेमाणे वा चंदलेस्सं अहे सपक्खि सपडिदिसिं आवरेत्ता णं चिट्ठति तदा णं मणुस्सलोए मणुस्सा वदंति-'एवं खलु राहुणा चंदे घत्थे एवं० २। २.प्र०] कतिविहे णं भंते! राहू पन्नत्ते ? [उ०] गोयमा! दुविहे राहू पन्नत्ते, तंजहा-धुवराहू य पचराहू य । तत्थ गंजे से धुवराहू से णं बहुलपक्खस्स पाडिवए पन्नरसतिभागेणं पन्नरसतिभागं चंदस्स लेस्सं आवरेमाणे २ चिट्ठति, तंजहापढमाए पढम भाग, बितियाए बितियं भागं, जाव-पन्नरसेसु पन्नरसमं भागं, चरिमसमये चंदे .रत्ते भवति, अवसेसे समये चंदे रत्ते य विरत्ते यं भवति; तमेव सुक्कपक्खस्स उवदंसेमाणे २ चिट्ठति, पढमाए पढमं मागं, जाव-पन्नरसेसु पन्नरसमं भार्ग, चरिमसमये चंदे विरत्ते भवइ, अवसेसे समये चंदे रत्ते य विरत्ते य भवइ । तत्थ णं जे से पचराहू से जहन्नेणं छह मासाणं उक्कोसेणं बायालीसाए मासाणं चंदुस्स, अडयालीसाए संवच्छराणं सूरस्स। ३. [प्र०] से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-'चंदे ससी' २ ? [उ०] गोयमा ! चंदस्स णं जोइसिंदस्स जोइसरनो मियंके विमाणे कंता देवा. कंताओ देवीओ, कंताई आसण-सयण-खंभ-भंडमत्तोवगरणाई, अप्पणा वि य णं चंदे जोइसिंदे जोहसराया सोमे कंते सुभए पियदसणे सुरूवे, से तेणटेणं जाव-ससी। ४. [प्र०] से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ-'सूरे आइच्चे, सूरे० २१ २ ? [उ०] गोयमा! सूरादिया णं समया इ वा आवलिया इ वा जाव-उस्सप्पिणी इ वा अवसप्पिणी इ वा, से तेणटेणं जाव-आइच्चे । देखाडे छे, अने दक्षिण-पूर्वमा (अग्निकोणमा) राहु पोताने देखाडे छे. वळी ज्यारे आवतो के जतो, विकुर्वणा करतो के कामक्रीडा करतो राहु चंद्रनी ज्योत्स्नानुं आवरण करतो २ स्थिति करे, त्यारे मनुष्यलोकमां मनुष्यो कहे छे के, 'ए प्रमाणे खरेखर राहु चंद्रने प्रसे छे.' ए प्रमाणे ज्यारे राहु आवतो के जतो, विकुर्वणा करतो के कामक्रीडा करतो चंद्रना प्रकाशने आवरीने पासे थइने जाय त्यारे मनुष्यलोकमा मनुष्यो कहे छे के-'ए प्रमाणे खरेखर चंद्रे राहुनी कुक्षि भेदी' २, अर्थात् राहुनी कुक्षिमा प्रवेश कर्यो. ए प्रमाणे आवतो के जतो, विकुर्वणा करतो के कामक्रीडा करतो राहु ज्यारे चंद्रनी लेश्याने ढांकीने पाछो वळे त्यारे मनुष्य लोकमां मनुष्यो कहे छे के, 'ए प्रमाणे खरेखर राहुए चंद्रने वम्यो'. वळी ए प्रमाणे ज्यारे राहु आवतो के यावत्-कामक्रीडा करतो चंद्रना प्रकाशने नीचेथी, चारे दिशाथी अने चारे विदिशाथी आवरीने-ढांकीने रहे त्यारे मनुष्यलोकमां मनुष्यो कहे छे के-'ए प्रमाणे खरेखर राहुए चंद्रने प्रस्यो.' राहुना प्रकार. २. प्रि०] हे भगवन् ! राहु केटला प्रकारना कह्या छे ? [उ०] हे गौतम! राहु बे प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-ध्रुवराहु (नित्यराहु ) अने पर्वराहु. तेमां जे ध्रुवराहु छे ते कृष्णपक्षना पडवाथी मांडीने [प्रतिदिवस] पोताना पन्नरमा भागवडे चन्द्रलेश्या-चंद्रबिम्बसंबन्धी पन्नरमा भागने ढांकतो २ रहे छे, ते आ प्रमाणे-एकमने दिवसे प्रथम भागने ढांके छे, बीजना दिवसे बीजा भागने ढांके छे, ए प्रमाणे यावद्-अमावास्याने दिवसे चंदना पंदरमा भागने ढांके छ; अने कृष्णपक्षने छेल्ले समये चंद्र रक्त-सर्वथा आच्छादित थाय छे अने बाकीना समये चंद्र रक्त-अंशथी आच्छादित अने विरक्त-अंशथी अनाच्छादित होय छे. शुक्लपक्षना प्रतिपदथी आरंभी (प्रतिदिवस ) तेज चंद्रनी लेझ्याना पंदरमा भागने देखाडतो २ रहे छे. ते आ प्रमाणे-पडवाने विषे पहेला भागने देखाडे छे, यावत् पूर्णिमाने विषे पंदरमाभागने देखाडे छे. शुक्लपक्षना छेवटना समये चन्द्र विरक्त-राहुथी सर्वथा मुक्त होय छे, अने बाकीना समये चन्द्र रक्त-आच्छादित अने विरक्त-अनाच्छादित होय छे. तेमां जे पर्वराहु छे ते ओछामा ओछां छ मासे (चंद्रने के सूर्यने) ढांके छे. अने वधारेमा वधारे बेताळीशयने क्यारे दकि? मासे चंद्रने अने वधारमा वधारे अडताळीश वरसे सूर्यने ढांके छे. चन्द्रने ३. [प्र०] हे भगवन् ! शा हेतुथी चन्द्रने 'ससी' सश्री-ए प्रमाणे कहेवाय छे ? [उ०] हे गौतम ! ज्योतिष्कना इंद्र अने ज्योतिष्कना ससी (सश्री)शोभा- राजा चंद्रना मृगांक (मृगना चिह्नवाळा ) विमानमा मनोहर देवो, मनोहर देवीओ, मनोहर आसन, शयन, स्तंभ तथा सुंदर पात्र वगेरे युक्त कहेवाय छे ? उपकरणो छे, तथा ज्योतिष्कनो राजा अने ज्योतिषिक इंद्र चंद्र पोते पण सौम्य, कांत, सुभग, प्रियदर्शन अने सुरूप छे, ते माटे चंद्र ससी-सश्री-शोभासहित कहेवाय छे. शा हेतुथी सूर्यने आ ४. [प्र०] हे भगवन् ! शा हेतुथी सूर्यने आदित्य (आदिमां थयेलो) एम कहेवाय छे ? [उ०] हे गौतम ! समयो, आवलिकाओ, दित्य कहेवाय छे? यावत्-उत्सर्पिणीओ अने अवसर्पिणीओना आदिभूत-कारण-सूर्य छे, माटे आदित्य-आदिमां धनार कहेवाय छे. [अर्थात् अहोरात्रादिक कालना समय-आवलिका-अने मुहर्तादि भेदो सूर्यनी अपेक्षाए. थाय छे, माटे सूर्यने अहोरात्रादि कालनो आदिभूत होवाथी आदित्य कहेवाय छे. ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy