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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ७.-उद्देशक. १. १५. [प्र०] नेरइयाणं पुच्छा । [उ०] गोयमा ! नेरइया नो सधमूलगुणपश्चक्खाणी, नो देसमूलगुणपञ्चक्खाणी, अप थक्खाणी । एवं जाव चउरिदिया ।
६.प्र. पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। [उ०] गोयमा! पंचिदियतिरिक्खजोणिया नो सधमलगणपञ्चस्खाणी. देसमूलगुणपञ्चक्खाणी वि, अपचक्खाणी वि । मणुस्सा जहा जीवा, वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया जहा नेरइया ।
१७. प्रि०ा एएसि णं भंते ! जीवाणं सधमूलगुणपश्चक्खाणीणं, देसमूलगुणपश्चपखाणीणं, अपचपखाणीण य कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा! [उ०] गोयमा! सवत्थोवा जीवा सपमूलगुणपश्चपखाणी, देसमूलगुणपश्चपखाणी असंखेजगणा अपञ्चक्खाणी अणंतगुणा । एवं अप्पाबहुगाणि तिन्नि वि जहा पढमिल्लए दंडए; नवरं सवत्थोवा पंचिंदियतिरिक्खजोणिया देसमूलगुणपश्चक्खाणी, अपशक्खाणी असंखेजगुणा ।
१८. प्र०ा जीवा णं भंते! कि सवउत्तरगुणपञ्चक्खाणी, देसुत्तरगुणपञ्चक्खाणी, अपञ्चक्खाणी? [उ०] गोयमा ! जीवा सवुत्तरगुणपञ्चक्खाणी वि तिन्नि वि । पंचिदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य एवं चेव, सेसा अपञ्चक्खाणी, जाव वेमाणिया ।
१९. [प्र०] एएसि णं भंते ! जीवाणं सधउत्तरगुणपञ्चक्खाणीणं० ? [3०] अप्पाबहुगाणि 'तिन्नि घि जहा पढमे दंडप, जाव मणुस्साणं।
२०. [प्र०] जीवा णं भंते! किं संजया, असंजया, संजयासंजया? [उ०] गोयमा! जीवा संजया वि, असंजया वि संजयासंजया वि तिन्नि वि, एवं जहेव पनवणाए तहेव भाणियचं जाव वेमाणिया, अप्पाबहुगं तहेव तिण्ह वि भाणियश्वं ।
२१. [प्र०] जीवाणं भंते ! किं पञ्चक्खाणी, अपश्चक्खाणी, पश्चक्खाणापथक्खाणी ? [उ०] गोयमा ! जीवा पञ्चपखाणी वि तिन्नि वि. एवं मणुस्सा वि तिन्नि वि, पंचिंदियतिरिक्खजोणिया आइल्लविरहिया, सेसा सवे अपञ्चक्खाणी, जाव
वेमाणिया । नारक.
१५. [अ०] नारकोनो प्रश्न. [उ०] हे गौतम! नारको सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी नथी, देशमूलगुणप्रत्याख्यानी नथी, पण अप्रत्याख्यानी छे. पञ्चेन्द्रियतिर्यंच.
१६. प्र०] पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवोनो प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! पंचेन्द्रियतिर्यंचो सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी नथी, पण देशमूलगुणप्रत्याख्यानी छे अने अप्रत्याख्यानी छे. जेम जीवो कह्या तेम मनुष्यो जाणवा. जेम नारको कह्या तेम वानमंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिको
जाणवा. सर्वमूलगुणप्रत्या
१७. [प्र०] हे भगवन् ! सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी, देशमूलगुणप्रत्याख्यानी अने अप्रत्याख्यानी जीवोमां कोण कोनाथी यावत् विशेख्यानी बगेरेनुं षाधिक छे ! [उ०] हे गौतम ! सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी जीवो सर्वथी थोडा छे, देशमूलगुणप्रत्याख्यानी जीवो असंख्यगुण छे, अने अप्रअल्पवदुधः
त्याख्यानी अनंतगुण छे. ए प्रमाणे त्रणे (जीव, पंचेन्द्रियतिर्यंच अने मनुष्यना) अल्पबहुत्वो प्रथम दंडकमां सू० ११, १२, १३] कह्या
प्रमाणे जाणवा, परंतु सर्वथी थोडा पंचेन्द्रिय तिर्यंचो देशमूलगुणप्रत्याख्यानी छे, अने अप्रत्याख्यानी पंचेन्द्रिय तिर्यंचो असंख्यगुण छे. सर्वोत्तरगुणप्रत्या
१८. प्र०] हे भगवन्! शुं जीवो सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यानी छे, देशोत्तरगुणप्रत्याख्यानी छे, के अप्रत्याख्यानी छे ! [उ०] हे ख्यानी.वगेरे जीवो. गौतम! जीवो सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यानी विगेरे त्रणे प्रकारना छे. पंचेन्द्रिय तिर्यंचो अने मनुष्यो ए.प्रमाणे छे. बाकीना वैमानिक सुधीना
__जीवो अप्रत्याख्यानी छे. सर्वोत्तरगुणप्रत्या- १९. प्र०] हे भगवन् । सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यानी, देशोत्तरगुणप्रत्याख्यानी अने अप्रत्याख्यानी जीवोमां कोण कोनाथी यावत् विशे
____षाधिक छे! [उ०] त्रणे अल्पबहुत्वो प्रथम दंडकमां कह्या प्रमाणे यावत् मनुष्योने जाणवा. मरुपबहुत्व. संयत, असंयत,
२०. प्र०] हे भगवन् ! शुं जीवो संयत छे, असंयत छे के संयतासंयत (देश संयत) छे ! [उ०] हे गौतम! जीवो संयत भने देशसंयत. पण छे, असंयत पण छे, अने संयतासंयत पण छे-ए त्रणे प्रकारना छे. ए प्रमाणे जेम “पन्नवणामां कर्तुं छे ते प्रमाणे यावत् वैमानिकोने
अहीं कहेवू, तेम अल्पबहुत्व पण त्रणेनुं कहे. प्रत्याख्यानी विगेरे. २१. [प्र०] हे भगवन् ! शुं जीवो प्रत्याख्यानी छे, अप्रत्याख्यानी छे, के प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी (देशप्रत्याख्यानी) छे ! [उ०] हे
गौतम! जीवो प्रत्याख्यानी विगेरे त्रणे प्रकारना छे. ए प्रमाणे मनुष्यो पण त्रणे प्रकारना छे. पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिको प्रथमभंगरहित छे. बाकीना वैमानिक सुधीना सर्व जीवो अप्रत्याख्यानी छे.
चक्खाणा भ-घ। २ तिति विख। ।मणूसाणं घ। । अस्संजया घ। ५ वि एवं ति-घ। ६ मणुस्साण पिघ। २०. * प्रज्ञा० पद. ३, प. १३७-२ सू.७०,
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