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________________ बितीओ उद्देसो. १. [ प्र० ] से णूणं भंते ! सहपाणेहिं, सद्यभूपहिं, सधजीवेहिं, सङ्घसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स सुपायं भवति पयस्यायं भवति ? [४०] गोयमा सहपाणेहिं जाय सवसरोर्द्वि पथक्वायमिति यमाणस्स सिय सुपायं भवति, सिय पच्चक्खायं भवति । [ प्र०] से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ-सष्वपाणेहिं जाव सङ्घसत्तेहिं जाव सिदुपायं भवति ? [30] गोयमा ! जस्स णं सहपाणेहिं जाव सङ्घसत्तेहिं पचपखायमिति वदमाणस्य णो पर्य अभिसमन्नागवं भवति इमे जीया, इमे अजीवा, इमे तसा, इमे धावरा, तस्स व सक्षपाहि जाय सहसत्तेहिं पश्यफ्लावमिति वदमाणस्स नो सुपायं भवति, दुपश्यंसायं भवति । एवं खलु से दुपचपसाई सहपाणेहिं जाव सङ्घसत्तेहिं पच्चस्तायमिति वेदमाणे नो खयं भा मासा, मोसं भासं भासह । एवं खलु से मुसावाई सपाहिं जाव सहसतेहिं तिविद्धं तिविद्वेणं असंजय - विरय-पहिय-पचपायपायकम्मे, सकिरिए, असंबुडे, एगंतदंडे, एगंतवाले यावि भवति । जस्स णं सङ्घपाणेहिं जाच ससतेहि पथक्वायमिति यमाणस्स एवं अभिसमप्रागयं भवद्द दमे जीवा इमे अजीया इमे तसा हमे धारा, तस्स व सहपाणेहिं जाव ससत्तेि पथक्वायमिति यमाणस्स सुपंथपसायं भवति, नो दुपधपसायं भवति । एवं खलु से सुपथक्साई सपाहिं जाय स सत्ते पचखायमिति वयमाणे सच्चं भासं भासह, नो मोसं भासं भासइ । एवं खलु से सच्चवादी सधपाणेहिं, जाव सबसतेहि तिविहं तिविहेणं संजय विरय-पडिहय-पञ्चकखायपावकम्मे, अकिरिए, संबुडे, एगंतपंडिए यावि भवति, से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं सुधर जाब विचायं भवति । द्वितीय उद्देशक, प्रत्याख्यान. १. [प्र०] हे भगवन्! 'सर्व प्राणोमां, सर्व भूतोमां, सर्व जीवोमां अने सर्व सत्त्वोमां में [हिंसानुं] प्रत्याख्यानं कर्तुं छे' ए प्रमाणे बोलना- सुप्रयाख्यान भने दु रने सुप्रत्याख्यान थाय के दुष्प्रत्याख्यान थाय ? [उ०] हे गौतम! 'सर्व प्राणोमां यावत् सर्व सत्त्वोमां प्रत्याख्यान कयुं छे' ए प्रमाणे बो कदाच सुप्रत्याख्यान थाय अने कदाच दुष्प्रत्याख्यान थाय. [प्र०] हे भगवन् ! एम शा हेतुथी कहो छो के-सर्व प्राणोमां यावत् सर्वं सत्त्वोमां यावत् कदाच दुष्प्रत्याख्यान थाय ? [उ०] हे गौतम ! 'सर्व प्राणोमां यावत् सर्वं सत्त्वोमां प्रत्याख्यान कयुं छे' ए प्रमाणे बोलनार जेने आवा प्रकारं ज्ञान न होय के “आ जीवो छे, आ अजीवो छे, आ त्रसो छे, ओ स्थावरों छे!" तेने 'सर्व प्राणोमां यावत् सर्व सपोमां प्रत्याख्यान कर्तुं छे' ए प्रमाणे कहेनारने-सुप्रत्याख्यान न थाय, पण दुष्प्रत्याख्यान थाय. ए रीते खरेखर ते दुष्प्रत्याख्यानी 'सर्व प्राणिओमां यावत् सर्व दुष्प्रत्याख्यान थाय सच्चोमां प्रत्याख्यान कर्तुं छे' एम बोलतो सत्य भाषा बोलतो नाची, असला भाषा बोले छे. ए प्रमाणे ते मृषावादी सर्व प्राणोमां यावत् सर्व ए सत्त्वोमां त्रिविधे त्रिविधे असंयत - संयमरहित, अविरत - विरतिरहित, जेणे पापकर्मनो त्याग के प्रत्याख्यान कर्तुं नथी एवो, सक्रिय — कर्मबन्धसहित, संवररहित, एकान्त दण्ड एटले हिंसा करनार अने एकान्त अज्ञ छे. सर्व प्राणोमां यावत् 'सर्व सत्त्वोमां प्रत्याख्यान कर्तुं छे' प्रमाणे बोलनार जेने आज्ञान होय के “आ जीवो छे, आ अजीबो छे, आ त्रसो छे, आ स्थावरो छे," तेने- 'सर्व प्राणोमां यावत् सबै सत्त्वोमां प्रत्यारूपान कर्त्तुं छे' र प्रमाणे बोलनारने प्रत्याख्यान थाय दुष्प्रत्याख्यान न थाप. ए प्रमाणे खरेखर ते प्रत्याख्यानी 'सूर्यायानं पाय प्राणोमां यावत् सर्व सत्यां प्रत्याख्यान व छे एम वोलतो सत्य भाषा बोले छे, मृपा भाषा बोलतो नथी. ए रीते ते सुप्रलापानी, सत्यभाषी, सर्व प्राणोमां यावत् सर्व सत्त्वोमां त्रिविधे त्रिविधे संयत, विरति युक्त, जेणे पापकर्मनो घात ने प्रत्याख्यान कर्तुं छे एवो, अक्रियकर्मबंधरहित, संवरयुक्त एकान्त पंडित पण छे. हे गौतम! ते हेतुथी एम कहेवाय छे के यावत् कंदाच दुष्प्रत्याख्यान थाय. मो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org/
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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