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________________ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रह.. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. - --- सत्तमं सयं. १. १ आहार २ विरति ३ थावर ४ जीवा ५ पक्खी य ६ आउ ७ अणगारे ८ छउमत्थ ९ असंवुड १० अन्नउस्थि दस सत्तमंमि सए ॥ पढमो उद्देसो. २. [म०] तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वदासी-जीवे णं भंते ! के समयमणाहारए भवर ! [उ०] गोयमा! सप्तम शतक.. १. [उद्देशसंग्रह-] १ आहार, २ विरति, ३ स्थावर, ४ जीव, ५ पक्षी, ६ आयुष्, ७ अनगार, ८ छमस्थ, ९ असंवृत, अने १० अन्यतीर्थिक-ए संबन्धे सातमां शतकमा दश उद्देशको छे.. [प्रथम उद्देशकमा आहार-आहारक अने अनाहारक इत्यादि विषे हकीकतं छे, बीजा उद्देशकमा विरति-प्रत्याख्यानसंबंधी वर्णन छे, त्रीजा उद्देशकमा स्थावर-वनस्पति वगेरेनी वक्तव्यता छे, चोथा उद्देशकमां जीव-संसारी जीवनी प्ररूपणा छे, पांचमा उद्देशकमा पक्षीखेचरजीवोनी हकीकत छे, छट्ठा उद्देशकमां आयुष वगेरेनी हकीकत छे, सातमा उद्देशकमा अनगार-साधु वगेरेनी हकीकत छे, आठमा उद्देशकमां छद्मस्थ मनुष्यादिनी हकीकत छे, नवमा उद्देशकमां असंवृत-प्रमत्तसाधुवगेरेनी वक्तव्यता छे, अने दशमा उद्देशकमा कालोदायिप्रमुख अन्यतीर्थिकसंबन्धी वक्तव्यता छे.] प्रथम उद्देशक. २. (प्र०] ते काले अने ते समये (गौतम इन्द्रभूति) यावत् ए प्रमाणे बोल्या-हे भगवन् ! जीव (परभवमा जता) कये समये *अनाहारक (आहार नहि करनार) होय ! [उ०] हे गौतम ! (परभवमां) प्रिथम समये जीव कदाच आहारक होय अने कदाच अना माहारक भने मनाहारक. २. " आहारना बे प्रकार छे-१ आभोगनिवर्तित (इच्छापूर्वक प्रहण करायेलो) आहार भने २ अनाभोगनिर्वर्तित (इच्छाशिवाय अनाभोगपणे ग्रहण करायेलो) आहार. तेमा आभोगनिर्वर्तित आहार नियत समये होय छे, परन्तु अनाभोगनिर्वर्तित आहार उत्पत्तिना प्रथमसमयथी प्रारंभी अन्तसमय सुधी प्रतिसमय निरन्तर होय छ, जुओ-(प्रज्ञा. प. २९, प. ४९८.) ज्यारे जीव मरण पामी ऋजुगतिथी परभवमा प्रथम समये उत्पन थाय छे त्यारे परभवायुष्ना प्रथम संमयेज माहारक होय छे, परन्तु ज्यारे वक्रगति बडे बे समये उत्पन्न थाय छे त्यारे प्रथम समये अनाहारक होय छे अने बीजे समये आहारक होय छे, ज्यारे त्रण समये उत्पन्न थाय छे त्यारे प्रथमनाने Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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