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१६८ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ९.-उद्देशक ३३. मेयं भंते !, तहमेयं भंते !, अवितहमेयं भंते !, असंदिद्धमेयं भंते !, जाव से जहेयं तुम्भे वदह, जनवरं देवाणुप्पिया! अम्मापियरो आपुच्छामि, तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ. अणगारियं पंचयामि । अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंध।
२१. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं धुत्ते समाणे हट्ठ-तुढे समणं भगवं महावीर तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता तामेव चाउग्घंटं आसरहं दुरूहेइ, दुरूहित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ बहुसालाओ चेयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सकोरंट० जाव धरिजमाणे णं महयाभडचडगर-जाव परिक्खित्ते, जेणेव खत्तियकुंडग्गामे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता खत्तियकुंडग्गामं नयरं मझमझेणं, जेणेव सए गेहे, जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता रहं ठवेइ, ठवित्ता रहाओ पच्चोरुहाइ, रहाओ पश्चोरुहित्ता जेणेव अभितरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव अम्मा-पियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अम्मा-पियरो जएणं विजएणं बद्धावेद, जएणं २ वद्धावित्ता एवं वयासी-एवं खलु अम्म-ताओ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मे निसंते; से विय मे धम्मे इच्छिए, पडिच्छिए, अभिरुइए । तए णं तं जमालि खत्तियकुमारं अम्मा-पियरो एवं वयासी-धन्ने सिणे तुम जाया! कयत्थे सि णं तुम जाया!, कयपुग्ने सिणं तुम जाया!, कयलक्खणे सि णं तुम जाया! जणं तुमे समणरस भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मे निसंते, से वि य धम्मे इच्छिए, पडिच्छिए, अभिरुहए।
१२. तए.णं से जमालिखत्तियकुमारे अम्मा-पियरो दोचं पि एवं.वयासी-एवं खलु मए अम्म-तातो! समणस्स भगपओ महावीरस्स अंतिए धम्मे ते, जाव अभिरुइए । तए णं अहं अम्म-ताओ ! संसारभउधिग्गे, भीते जम्म-जरामरणेणं, तं इच्छामि णं अम्म-ताओ! तुम्भेहिं अभणुनाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भवित्ता भंगाराओ अणगारियं पचहत्तए ।
प्रवचन उपर रुचि करुं छु, अने हे भगवन् ! निग्रंथना प्रवचनानुसारे वर्तवाने तैयार थयो छु. वळी हे भगवन् ! जे तमे उपदेशों छो ते निम्रन्थ प्रवचन एम ज छे, हे भगवन् ! तेमज छे. हे भगवन् ! सत्य छे, हे भगवन् ! असंदिग्ध (निश्चित ) छे, परन्तु हे देवानुप्रिय ! मारा माता पितानी रजा मागीने हुँ आप देवानुप्रियनी पासे मुंड-दीक्षित थइ गृहवासनो त्याग करी अनगारिकपणाने स्वीकारवा इच्छु छु.' हे देवानुप्रिय ! जेम. सुख उपजे तेम करो, प्रतिबंध न करो.'
११. ज्यारे श्रमण भगवंत महावीरे जमालिने ए प्रमाणे का त्यारे ते प्रसन्न अने संतुष्ट थइ श्रमण भगवंत महावीरने त्रणवार प्रदक्षिणा करी यावत् नमस्कार करीने चारघंटावाळा अश्वरथ उपर चढे छे, चढीने श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी अने बहुशालक चैत्यथी नीकळे छे. नीकळीने माथे धराता यावत् कोरंटपुष्पनी मालावाळा छत्रसहित, मोटा सुभटोना समूहथी वीटायलो ते जमालि ज्यां क्षत्रियकुंडग्राम नामे नगर छे त्यां आवे छे. आवीने क्षत्रियकुंडग्राम नामे नगरनी मध्यभागमा थइने जे स्थळे पोतानुं घर छे अने ज्यां बहारनी उपस्थानशाला छे त्यां आवे छे. त्यां आवीने घोडाओने रोकीने रथने उभो राखे छे. उभो राखीने रथथी नीचे उतरे छे. उतरीने ज्या अंदरनी उपस्थानशाला छे, ज्यां माता-पिता (बेठा) छे त्यां आवे छे, आयीने माता-पिताने जय अने विजयथी वधावे छे. वधावीने ते जमालिए आ प्रमाणे कधु-हे माता पिता! ए प्रमाणे में श्रमण भगवंत महावीर पासेथी धर्म सांभळ्यो छे, ते धर्म मने इष्ट छे, अत्यन्त इष्ट छे, अने तेमां मारी अभिरुचि थइ छे. त्यारपछी ते जमालि कुमारने तेना माता पिताए आ प्रमाणे कथु-पुत्र! तुं धन्य छे, हे पुत्र! तुं कृतार्थ छे, हे पुत्र! तुं कृतपुण्य छे अने हे पुत्र! तुं कृतलक्षण छे के जे तें श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी धर्मने सांभळ्यो छे, अने ते धर्म तने प्रिय छे, अत्यन्त प्रिय छे अने तेमां तारी अभिरुचि थई छे.'
जमालि.
१२. पछी ते जमालि क्षत्रियकुमारे बीजीवार पण पोताना माता-पिताने आ प्रमाणे कर्दा के-हे माता-पिता! ए प्रमाणे में श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी धर्म सांभळ्यो छे, यावत् तेमां मारी अभिरुचि यइ छे. तेथी हे माता-पिता ! हुं संसारना भयपी उद्विग्न थयो छु, जन्म जरा अने मरणधी भय पाम्यो छ, तेथी हे माता-पिता! तमारी आज्ञाथी हुँ श्रमण भगवंत महावीरनी पासे दीक्षा लेइने, गृहवासनो त्याग करी, अनगारिकपणाने ग्रहण करवा इच्छु छं.
अंतियं क।४-हतिते का
५-भय-ग-ङ।
१ भागारा-ग-घ-छ। २ पध्वजामिक। • आगाराओ घ ङ।
जम्मणमरणेणं फ-ग।
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