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१६० श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ९.-उद्देशक ३२. जाणामि, नो असयं; असोचा एते एवं जाणामि, नो सोचा 'सतो नेरइया उववजंति, नो असओ नेरइया उवषजंति, जाव सतो वेमाणिया चयंति, नो असतो वेमाणिया चयंति'। [प्र०] से केणट्टेणं भंते ! एवं धुञ्चति-तं चेव, जाव 'नो असतो वेमाणिया चयंति' ? [उ०] गंगेया! केवली णं पुरस्थिमेणं मियं पि जाणह, अमियं पि जाणइ; दाहिणेणं एवं जहा संहदेसए, जाव निब्बुडे नाणे केवलिस्स; से तेणटेणं गंगेया! एवं वुश्चइ 'तं चेव जाव नो असतो वेमाणिया चयंति'।
४८. [प्र०] सयं भंते ! नेरइया नेरइएसु उववजंति, असयं नेरइया नेरहपसु उववजंति ? [उ०] गंगेया! सयं मेरइया नेरइएसु उववजंति, नो असयं नेरइया नेरदएसु उववजंति [प्र०] से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जाव उवषजति ? [उ०] गंगेया! कम्मोदएणं, कम्मगुरुयत्ताए, कम्ममारियत्ताए, कम्मगुरुसंभारियत्ताए; असुभाणं कम्माणं उदएणं, असुभाणं कम्माणं विवागणं, असुभाणं कम्माणं फलविवागेणं सयं नेरड्या नेरइएसु उववजंति, नो असयं नेरइया नेरहपसु उववजंति; से तेणटेणं गंगेया! जाव उववजंति ।
४९. [प्र०] सयं भंते ! असुरकुमारा० पुच्छा । [उ०] गंगेया! सयं असुरकुमारा जाव उववजंति, नो असयं असुरकुमारा जाव उववजंति ।[प्र०] से केणटेणं तं चेव जाव उववजति ? [उ०] गंगेया! कम्मोदएणं, कम्मोवसमेणं, कम्मविगतीए, कम्मविसोहीए, कम्मविसुद्धीए, सुभाणं कम्माणं उदएणं, सुभाणं कम्माणं विवागेणं, सुभाणं कम्माणं फलविवागणं सयं असुरकुमारा असुरकुमारत्ताए उववजंति, नो असयं असुरकुमारा जाव उववजंति; से तेणटेणं जाव उववजंति, एवं जाप थणियकुमारा।
५०. [३०] सयं भंते ! पुढविक्काइया० पुच्छा। [उ०] गंगेया! सयं पुढविक्काइया जाव उववजंति, नो असयं पुढधिकाइया जाव उववजंति । [प्र०] से केणटेणं जाव उववजंति ? [उ०] गंगेया! कम्मोदएणं, कम्मगुरुयत्ताए, कम्मभारियत्ताए, कम्मगुरुसंभारियत्ताए सुभा-सुभाणं कम्माणं उदएणं, सुभा-सुभाणं कम्माणं विवागणं, सुभा-सुभाणं कम्माणं फलवैमानिको च्यवे छे, पण असद् वैमानिको च्यवता नथी' ! [उ०] हे गांगेय ! हुं ए बधुं स्वयं जाणुं छु, पण अवयं (बीजानी सहायथी) जाणतो नशी. वली सांभळ्या विना आ प्रमाणे जाणुं छु, पण सांभळीने जाणतो नथी के 'सद् नैरयिको उत्पन्न थाय छे, पण असद् नैरयिको उत्पन्न थता नथी, यावत् सद् वैमानिको च्यवे छे, पण असद् वैमानिको च्यवता नथी.' [प्र०] हे भगवन् ! एम शा हेतुथी कहो छो के, 'हुं स्वयं जाणुं छु-इत्यादि पूर्वोक्त यावत् असद् वैमानिको च्यवता नथी' ! [उ०] हे गांगेय ! केवलज्ञानी पूर्वमा मित (मर्यादित) पण जाणे, अने अमित (अमर्यादित) पण जाणे, तथा दक्षिणमां पण ए प्रमाणे जाणे. ए प्रमाणे जेम "शब्द उद्देशकमां कडं छे तेम जाणवू, यावत् 'केवलिनु ज्ञान निरावरण होय छ,' माटे हे गांगेय ! ते हेतुथी एम कहुं छु के 'हुं खयं जाणुं छं-इत्यादि यावद् असद् वैमानिको च्यवता नथी.'
४८. [प्र०] हे भगवन् ! नैरयिको नैरयिकमां स्वयं उत्पन्न थाय छे के अवयं उत्पन्न थाय छे.! [उ०] हे गांगेय ! नैरयिको नैरयिका स्वयं उत्पन्न थाय छे, पण अखयं उत्पन्न थता नथी. [प्र०] हे भगवन् ! एम शा हेतुथी कहो छो के 'स्वयं यावद् उत्पन्न थाय छे' ! [उ०] हे गांगेय ! कर्मना उदयथी, कर्मना गुरुपणाथी, कर्मना भारेपणाथी, कर्मना अत्यन्त भारेपणाथी, अशुभ कर्मोना उदयथी, अशुभ कर्मोना विपाकथी अने अशुभ कर्मोना फल-विपाकथी नैरयिको नैरयिकोमा खयं उत्पन्न थाय छे, पण नैरयिको नैरयिकोमा अस्वयं उत्पन्न थता नथी; ते हेतुथी हे गांगेय ! एम कहेवाय छे के यावत् 'तेओ खयं उत्पन्न पाय छे.'
४९. [प्र०] हे भगवन् ! असुरकुमारो खयं [असुरकुमारपणे उत्पन्न थाय छे ! ] इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गांगेय ! असुरकुमारों खयं उत्पन्न थाय छे, पण अवयं उत्पन्न थता नथी. [प्र०] हे भगवन् ! एम शा हेतुथी कहो छो के तेओ 'स्वयं यावद् उत्पन्न थाय छे' ! [उ०] हे गांगेय ! कर्मना उदयथी, [अशुभ ] कर्मना उपशमथी, अशुभ कर्मना अभावथी, कर्मनी विशोधिथी, कर्मनी विशुद्धिथी, शुभ कर्मोना उदयथी, शुभ कर्मोना विपाकथी अने शुभ कर्माना फल-विपाकथी असुरकुमारो असुरकुमारपणे स्वयं उत्पन्न थाय छे, पण असुरकुमारो असुरकुमारपणे अस्वयं उत्पन्न थता नथी. माटे हे गांगेय । ते हेतुथी एम कहेवाय छे के, यावत् 'उत्पन्न थाय छे.' ए प्रमाणे यावत् स्तनितकुमारो सुधी जाणवू.
५०. [प्र०] हे भगवन् ! पृथिवीकायिको स्वयं उत्पन्न थाय छे !-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गांगेय ! पृथिवीकायिको स्वयं उत्पन्न घाय छे पण अस्वयं उत्पन्न थता नथी. [प्र०] हे भगवन् ! एम शा हेतुथी कहो छो के 'पृथिवीकायिको स्वयं उत्पन्न थाय छे' ! [उ०] हे गांगेय ! कर्मना उदयथी, कर्मना गुरुपणाथी, कर्मना भारथी, कर्मना अत्यन्त भारथी, शुभ अने अशुभ कर्मोना उदयथी, शुभ अने अशुभ
नैरयिको स्वयं उपजे छे के अस्वयं उपजेछ।
• असुरकुमारो.
पृथिवीकायिको.
१-पुरच्छिमेणं घ-ऊ। २ सगडुइ-क--घ-ङ । ४७ * भग० २ श. ६ उ. ४ पृ. १७०.
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