________________
शतक ८.-उद्देशक १०. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
१२१ १८. [प्र०] दो भंते ! पोग्गलस्थिकायपएसा कि दवं, दवदेसे-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! सिय दवं, सिय दवदेसे, सिय दवाई, सिय दधदेसा; सिय दवं च दवदेसे य, नो दवं च दवदेसा य; सेसा पडिसेहेयवा ।
१९. प्र० तिन्नि भंते ! पोग्गलत्थिकायपयसा किं दवं दवदेसे-पुच्छा । [उ०] गोयमा! सिय दवं, सिय दधदेसे, एवं सत्त भंगा भाणियवा, जाव सिय दवाइं च दवदेसे य, नो दवाइं च दवदेसा य ।
२०.०] चत्तारि भंते ! पोग्गलत्थिकायपएसा किं दवं-पुच्छा । [उ०] गोयमा! सिय दधं, सिय दवदेसे: अट्र वि भंगा भाणियथा, जाव सिय दवाइं च दधदेसा य; जहा चत्तारि भणिया एवं पंच, छ, सत्त, जाव असंखेजा।
२१. [प्र०] अणंता भंते ! पोग्गलत्थिकायपएसा कि दचं ? [उ०] एवं चेव, जावं सिय दवाई च दश्वदेसा य । २२. [प्र०] केवतिया णं भंते ! लोयागासपएसा पन्नत्ता ? [उ०] गोयमा ! असंखेजा लोयागासपएसा पन्नत्ता।
२३. [प्र०] एगमेगस्स णं भंते ! जीवस्स केवइया जीवपएसा पण्णत्ता? [उ०] गोयमा! जावतिया लोयागासपएसा, एगमेगस्स णं जीवस्स ऐवतिया जीवपरसा पण्णत्ता ।
२४. [प्र०] कैति णं भंते ! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ? [उ०] गोयमा! अट्ट कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ, तं जहानाणावरणिजं, जाव अंतराइयं ।
२५. [प्र०] नेरइयाणं भंते ! कति कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ? [उ०] गोयमा ! अट्ट, एवं सघजीवाणं अट्ठ कम्मपगडीओ ठावेयधाओ जाव वेमाणियाणं ।
२६. [प्र. नाणावरणिजस्स णं भंते! कम्मरस केवतिया अविभागपलिच्छेदा पण्णता?[उ.] गोयमा अणंता अविभागपलिच्छेदा पण्णत्ता।
१८. प्र०] हे भगवन् ! पुद्गलास्तिकायना बे प्रदेशो शुं द्रव्य छे के द्रव्यदेश छे ! इत्यादि पूर्वोक्त प्रश्न. [उ०] हे गौतम! कथं- प्रदेशो. चित् द्रव्य छे, २ कथंचित् द्रव्यदेश छे, ३ कथंचित् द्रव्यो छे, ४ कथंचित् द्रव्यदेशो छे, ५ कथंचित् द्रव्य अने द्रव्यदेश छे, पण द्रव्य अने द्रव्यदशो नथी, वाकीना विकल्पोनो प्रतिषेध करवो. . १९. [प्र०] हे भगवन् ! पुद्गलास्तिकायना त्रण प्रदेशो शुं द्रव्य छे, द्रव्यदेश छे ?-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! १ कथंचित् प्रण प्रदेशो. द्रव्य छे, २ कथंचित् द्रव्यदेश छे, ए प्रमाणे सात भांगाओ कहेवा, यावत् कथंचित् द्रव्यो अने द्रव्यदेश छे, पण द्रव्यो अने द्रव्यदेशो नथी.
२०. [प्र०] हे भगवन् ! पुद्गलास्तिकायना चार प्रदेशो शुं द्रव्य छे ! इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! १. कथंचिद् द्रव्य छे, चार प्रदेशो. २ कथंचित् द्रव्यदेश छे-इत्यादि आठ भांगा कहेवा, यावत् द्रव्यो अने द्रव्यदेशो छे, जेम चार प्रदेशो कह्या तेम पांच, छ, सात यावद् असंख्येय प्रदेशो पण कहेवा.
२१. [प्र०] हे भगवन् ! पुद्गलास्तिकायना अनन्त प्रदेशो शुं द्रव्य छे ? इत्यादि प्रश्न. [उ०] पूर्व प्रमाणेज जाणवू, यावत् कथं- अनन्त प्रदेशो. चित् द्रव्यो अने द्रव्यदेशो छे. २२. [प्र०] हे भगवन् ! लोकाकाशना प्रदेशो केटला कह्या छे ! [उ०] हे गौतम ! असंख्य प्रदेशो कह्या छे.
लोकाकाशना
प्रदेशो. २३. [प्र०] हे भगवन् ! एक एक जीवना केटला जीवप्रदेशो कह्या छे ? [उ०] हे गौतम ! जेटला लोकाकाशना प्रदेशो कह्या एक जीवना प्रदेशो. छ तेटला एक एक जीवना प्रदेशो कह्या छे. . २४. [प्र०] हे भगवन् ! कर्मप्रकृतिओ केटली कही छे ? [उ०] हे गौतम ! आठ कर्मप्रकृतिओ कही छे. ते आ प्रमाणे-ज्ञाना- मप्रकृति. चरणीय, यावद् अन्तराय.
२५. [प्र०] हे भगवन् ! नरयिकोने केटली कर्मप्रकृतिओ कही छे! [उ. हे गौतम ! आठ कर्मप्रकृतिओ कही छे. ए प्रमाणे नैरयिकोने यावर सर्वजीवोने यावद् वैमानिकोने आठ कर्मप्रकृतिओ कहेवी.
वैमानिकोने कर्मप्र
कृति. २६. [प्र०] हे भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्मना केटला अविभाग परिच्छेदो कह्या छे ! [उ०] हे गौतम ! अनंत *अविभागपरिच्छेदो पानापरणीय फमैना
अविभाग परिच्छेद.
फझा छे.
- -
पुच्छा तहेव क। २ एतावतिया ग। ३ काविहाणे छ।
RE.. जेना केवलज्ञानिनी प्रज्ञाथी पण विभाग न कल्पी शकाय एवा सूक्ष्म अंशोने भविभागपरिरछेद कहेवाय छे. ते कर्मपरमाणुओनी अपेक्षाए
अथवा ज्ञानना जेटला अविभाग परिच्छेदोर्नु आच्छादन कर्य के तेनी अपेक्षाए अनन्त छे.-टीका. Jain Education International .
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org