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शतक ८.-उद्देशक ९.
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
४६. [प्र०] तिरिक्खजोणियपंचिंदियवेउवियसरीरपुच्छा। उ०] गोयमा! वीरिय० जहा वाउकाइयाणं, मणुस्सपंचिदियवेउधिय एवं चेव । असुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउधिय. जहा रयणप्पभापुढविनेरइयाणं, एवं जाव थणियकुमारा, एवं वाणमंतरा, एवं जोइसिया, एवं सोहम्मकप्पोवया वेमाणिया, एवं जाव अच्चयगेवेजकप्पातीया वेमाणियां, अणुत्तरोघवाइयकप्पातीया वेमाणिया एवं चेव ।।
४७. [प्र०] वेउवियसरीरप्पओगबंधे णं भंते ! किं देसबंधे, सधबंधे ? [उ०] गोयमा! देसबंधे वि, सपबंधे वि । बाउकाइयएगिदिय० एवं चेव, रयणप्पभापुढविनेरइया एवं चेव, एवं जाव अणुत्तरोववाइया ।
४८. [प्र०] वेउनियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ ? [उ०] गोयमा! सवबंधे जहन्नेणं एक समयं, उकोसेणं दो समया। देसबंधे जहन्नेणं एकं समयं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाई।।
४९. [प्र०] वाउक्काइयएगिदियवेउश्चियपुच्छा । [उ०] गोयमा! सवबंधे एकं समयं, देसबंधे जहण्णेणं एवं समयं, उकोसेणं अंतोमुहुत्तं।
५०. [प्र.] रयणप्पभापुढविणेरइयपुच्छा । [उ०] गोयमा! सवबंधे एकं समयं, देसबंधे जहण्णेणं दसवाससहस्साई तिसमयऊणाई, उक्कोसेणं सागरोवमं समयूणं, एवं जाव अहे सत्तमा, नवरं देसबंधे जस्ल जा जहन्निया ठिती सा तिसमयूणा कायवा, जाव उक्कोसिआ सा समयूणा । पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं मणुस्साण य जहा वाउक्काइयाणं, असुरकुमारनागकुमार० जाव अणुत्तरोववाइयाणं जहा नेरइयाणं; नवरं जस्स जा ठिती सा भाणियचा, जाव अणुत्तरोववाइयाणं सवबंधे एक समय, देसबंधे जहन्नेणं एकतीसं सागरोवमाई तिसमऊणाई, उक्कोंसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाई ।
५१. [प्र०] वेउवियसरीरप्पओगबंधंतरं णं भंते ! कालओ केवश्चिरं होइ ? [उ०] गोयमा! सबंधंतरं जहन्नेणं एक समयं, उक्कोसेणं अणंतं कालं-अणंताओ-जाव आवलियाए असंखेजइभागो; एवं देसबंधंतरं पि ।
१६. प्रि०] तियंचयोनिक पंचेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबन्धसंबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! सवीर्यता, सयोगता अने सद्रव्यताथी तिर्यंचयोनिकवैक्रिय पूर्ववत् जेम वायुकायिकोने कयुं तेम जाणवू. मनुष्य पंचेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबन्ध पण ए प्रमाणे जाणवो. असुरकुमार भवनवासीदेव शरीरप्रयोगबन्ध. पंचेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबन्ध रत्नप्रभापृथिवीना नैरयिकनी पेठे जाणवो. ए प्रमाणे यावत् स्तनितकुमारो सुधी जाणवू. ए रीते वानव्यंतर, ज्योतिषिक, सौधर्मकल्पोपपन्नक वैमानिक यावद् अच्युत, अने अवेयक कल्पातीत वैमानिकोने जाणवं. तथा अनुत्तरीपपातिककल्पातीत वैमानिकोने पण ए प्रमाणे जाणवा.
४७. प्रि०] हे भगवन् ! वैक्रियशरीरप्रयोगबन्ध शुं देशबन्ध छे के सर्वबन्ध छे! [उ०] हे गौतम! ते देशबन्ध पण छे देशबन्ध बने सर्व अने सर्वबन्ध पण छे. ए प्रमाणे वायुकायिकएकेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबन्ध तथा रत्नप्रभापृथिवीनैरयिकवैक्रियशरीरप्रयोगबन्ध जाणवो. बन्ध. ए प्रमाणे यावद् अनुत्तरौपपातिक देवो सुधी जाणवू.
४८. [प्र०] हे भगवन् ! वैक्रियशरीरप्रयोगबन्ध कालथी क्या सुधी होय! [उ०] हे गौतम! सर्वबन्ध जघन्यथी एक समय, अने क्रियशरीरप्रयोगउत्कृष्टथी *बे समय सुधी होय. तथा देशबन्ध जघन्यथी एक समय, अने उत्कृष्टथी एक समय न्यून तेत्रीश सागरोपम सुधी होय.
वन्धकाल. ४९. [प्र०] वायुकायिकएकेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबन्धसंबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! सर्वबन्ध एक समय, अने देशबन्ध
वायुकायिक वैक्रियजघन्यथी एक समय अने उत्कृष्टथी अन्तर्मुहूर्त सुधी होय छे.
शरीरप्रयोगबन्धनो ५०. [प्र०] रत्नप्रभानैरयिकवैक्रियशरीरप्रयोगबन्धसंबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम! सर्वबन्ध एक समय, अने देशबन्ध जघन्यथी।
रत्नप्रभा नैरयिक त्रण समय उणा दशहजार वर्ष सुधी होय, तथा उत्कृष्टथी एक समय न्यून एक सागरोपम सुधी होय. ए प्रमाणे यावत् नीचे सातमी वैक्रियशरीरप्रयोग
बन्धकाल. नरकपृथ्वी सुधी जाणवू. परन्तु देशबन्धने विषे जेनी जे जघन्य स्थिति होय तेने एक समय न्यून करवी, अने यावत् जेनी उत्कृष्ट स्थिति होय ते पण समय न्यून करवी. पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच अने मनुष्यने वायुकायिकनी पेठे जाणवू. असुरकुमार, नागकुमार, यावद् अनुत्तरौपपातिक देवोने नारकनी पेठे जाणवा; परन्तु जेनी जे स्थिति (आयुष्य) होय ते कहेवी, यावद् अनुत्तरौपपातिकोनो सर्वबन्ध एक समय, अने देशबन्ध जघन्यथी त्रण समय न्यून एकत्रीश सागरोपम सुधीनो होय छे तथा उत्कृष्टथी एक समय न्यून तेत्रीश सागरोपम सुधीनो छे.
५१. [प्र०] हे भगवन् ! वैक्रियशरीरना प्रयोगबन्धनुं अन्तर कालथी क्यां सुधी होय ! [उ०] हे गौतम ! सर्वबन्धनुं अन्तर क्रियशरीरप्रयोगजघन्यथी एक समय, अने उत्कृष्टथी अनंतकाल अनन्त उत्सर्पिणी अवसर्पिणी, यावद् आवलिकाना असंख्यातमा भागना समय तुल्य असंख्य बन्धन अन्तर. पुद्गल परावर्त सुधी होय छे. ए प्रमाणे देशबन्धनुं अन्तर पण जाणवू.
1-नेरइया एवं क विनाऽन्यत्र । २-या णेयवा ङ। । एवं चेव अणु-ङ विनाऽन्यत्र । ४ सत्तमाए क-घ विना। ५ समऊणा घ। व जस्स जा उकोसा क-ङ विनाऽन्यत्र । ७ -बंधंतरे ण क विनाऽम्यन्त्र ।
४८.* औदारिकशरीरी वैक्रियशरीर करतो प्रथम समये सर्वबन्धक थईने मरण पामी देव के नारक थाय त्यारे प्रथम समये सर्वबन्ध करे, माटे वैक्रियशरीरप्रयोगवन्धनो सर्वबन्ध उत्कृष्टथी बे समय होय. तथा औदारिकशरीरी वैक्रिय शरीर करतो प्रथग समये सर्वबन्ध करी यीजे समये देशबन्धक याग भने तरत ज मरण पामे माटे देशबन्ध जघन्यथी एक समय होय छे.-टीका.
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