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________________ बाजीविकना प्रश्नो सामायिक करनार आवकना मांडने कोई पहरण करे केश तो ते मांडने शोधे अपडत भांड से भ भांड थाय तो 'पो ताना भांडने शोधेछे एम फेम कहेबाय ? ममत्वभावनुं प्रत्या नीम एमवाय के पोता ना भांडने शोधे छे. एमखीने से वे के अक्षीने सेवे Jain Education International पंचमओ उद्देसो । १. [अ०] रायगिहे जाव एवं वयासी - आजीविया णं भंते! थेरे भगवंते एवं वयासी - समणोवासगस्स णं भंते! सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स केइ 'भंड अवहरेजा, सेणं भंते! तं भंडं अणुगवेसमाणे किं सयं भंडं अणुगवेसर, रायमंड अणुगवेस ? [०] गोयमा ! सर्व मंडं अणुगवेसति, जो परायनं मंडं अणुणवेसा । १ - २. [प्र० ] तस्स णं भंते! तेहिं सीलवय-गुण-वेरमण-पञ्चक्खाण-पोसहोववासेहि से भंडे अभंडे मवह ? [30] हंता [प्र० ] से केखा नं अणं भंते! एवं युधा सयं मंडं अणुगवेसह, नो परायगं मंडं अणुगवेसा ? [४०] गोषमा ! ள் तस्स णं एवं भवइ-णो मे हिरण्णे, णो मे सुवन्ने, नो मे कंसे, नो मे दूसे, नो मे विपुलधण-कणग-रयण-मणि- मोत्तिय संखसिल-प्पबाल-रतरयणमादीप संतसारसाबदेखे, ममत्तभावे पुण से अपरिण्णाप भवर से तेणद्वेणं गोवमा ! एवं दुइ सयं भंड अणुगवेसर, नो परायगं भंडं अणुगवेसइ । ३. [प्र० ] समणोवासगस्स णं भंते ! सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स केइ जायं चरेज्जा, से णं भंते! किं जायं चर, अजायं चरह ? [30] गोयमा ! जायं चरर, नो अजायं चरह । पंचम उद्देशक. १. [प्र०] राजगृह नगरमां यावत् [ गौतमे ] ए प्रमाणे कह्युं के हे भगवन् ! आजीविकोए ( गोशालकना शिष्योए ) स्थविर भगवन्तोने आ प्रमाणे क हतुं-हे भगवन् ! जेणे सामायिक व छे एवा श्रमणना उपाश्रयमां बेठेला श्रमणोपासकना भांड-वस्त्रादि वस्तुनुं कोई अपहरण करे, तो हे भगवन्! [ सामायिक समाप्त थया पछी ] ते वस्तुनुं अन्वेषण करतो ते आयक झुं पोताना भांडने शोचे छे के पारका भांडने शोधे [उ०] हे गौतम! ते श्रावक पोताना मांडने शोधे छे, पण पारका मांडने शोधतो नथी, २. [प्र०] हे भगवन् ! ते शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत, प्रत्याख्यान अने पौषधोपवासवडे ते श्रावकनुं [ अपहृत ] भांड ते अभ थाय ? [उ०] हे गौतम ! हा, अभांड थाय. [प्र० ] हे भगवन् ! [ जो अभांड थाय तो ] एम शा हेतुथी कहो छो के -[ ते श्रमणोपासक ] पोताना भांडने शोघे छे, पण पारका भांडने शोधतो नथी ! [उ०] हे गौतम! [ सामायिक करनार ] ते श्रावकना मनमां एवो परिणाम होय छे - 'मारे हिरण्य नथी, मारे सुवर्ण नथी, मारे कांसुं नथी, मारे वस्त्र नथी, अने मारे विपुल धन, कनक, रत्न, मणि, मोती, शंख, परवाला, रक्त रत्नो-इत्यादि विद्यमान सारभूत द्रव्य नथी' परन्तु तेणे ममत्व भावनुं प्रत्याख्यान कर्यु नथी, ते हेतुथी हे गौतम! एम कहेवायु छे के ते पोताना भांडने गवेषे छे, पण पारका भांडने गवेषतो नथी. ३. [प्र०] हे भगवन् ! जेणे सामायिक क्युं छे एवा, श्रमणना उपाश्चयमां रहेला श्रमणोपासकनी स्त्रीने कोइ पुरुष सेवे तो चं ते तेनी स्त्री सेवे छे के अस्त्रीने-अन्यनी स्त्रीने सेवे ! [उ० ] हे गौतम! ते पुरुष तेनी खीने सेवे छे पण अन्यनी खीने सेवतो नथी. १ अंडे क, इहं मंडे ग For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org/
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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