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आवलिका उच्छवास निःश्वास प्राण स्तोक लव मुहूर्त अहोरात्र पक्ष मास ऋतु अयन संवत्सर युग वर्षशत वर्षसहस्र वर्षशतसहस्र पूर्वाग पूर्व त्रुटितांग त्रुटित अटटांग अटट अववांग अथव हूहूकांग हूहूक उत्पलांग उत्पल पद्मांग पद्म नलिनांग नलिन अर्थनुपूर ग अर्थनुपूर अयुतांग अयुत प्रयुतांग प्रयुत नयुतांग नयुत चूलिकांग चूलिका शीर्षप्रहेलिकांग एवधा काळनां प्रमाणोनुं स्वरूप. एटलो ज गणितनो विषय. औपमिककाळ पल्योपम. सागरम परमाणनुं स्वरूप. उच्छलक्ष्णश्लक्ष्णिका ऋक्षण क्षणका ऊर्ध्वरेणु त्रसरेणु रथरेणु बालाप्र लिक्षा यूका यवमध्य अंगुल पाद वितस्ति-चैत- रत्नि कुक्षि दं धनुष् युग नालिका अक्ष मुसल गव्यूत योजन. ए बधानुं स्वरूप पत्यो।पमनु स्वरू सागरोपमनुं स्वरूप उत्सर्पिणी अवस. पंणीनुं प्रमाण. सुषमसुषमान्ा भरतनुं स्वरूप. जीवा निगम, ही भगवन्! ते ए प्रमाणे.
शतक ६. उद्देशक ८. पृ० ३२७-३३६.
पृथिवीओ केली ? आम्, रत्नप्रभानी नीचे गृह ग्राम वगेरे छे ? ना. त्यां उदार बलादक अने स्तनितशब्द छे ? हा तेने देव असुर के नाग करे. त्यां बादर अनिकाय छे ? विग्रहगति सिवाय नही. त्यां चन्द्र के चन्द्र वगेरेनी कान्ति छे ? ना, एज प्रकारना प्रश्नोत्तर बधी नरको संबंधे. त्रीजीमां नाग न करे. चोथमां अने ते पछीनी बधमां एको देव ज करे. एश ज प्रश्न सोध दि देवोको सांधे, उत्तरो पर ग्वाज, विशेषमां मात्र नाग न करे. सनत्कुमार दि स्वर्गेमां देव ज करे. संग्रहगाथा. आयुष्यना बंधना प्रकार केटला ? छ, छपना नाम ए प्रमाणे यावत् त्रैमानिकों जीव संबंध बंधविक प्रश्नो अने उत्तरो. लवण समुद्र संबंधी विचार. जीवाभिगम, असंख्यद्वीप समुद्रो. एनां नामो केवां होय ? जे जेटलां शुभ नामो होय ते वधां द्वीप समुद्रोनां जाणवां, विहार.
शतक ६. उदेशक ९. पृ० ३३७-३४२.
ज्ञानावरणीय कर्म बांधतां साथ बीजी केटली कर्मप्रकृति बंधाय ? सात आठ के छ. बंधे देशक प्रज्ञापना. महर्षिक देव बहारनां पुद्गलोने, लीवा सिवाय विकुर्वण करे ? ना. बहारन पुगेने लग्ने विकुर्वण करे. इहगत तत्रगत अभ्यन्त्रगत पुगलोमांना तत्रगत पुगलोने लइने विकुर्वण. एक वर्ण अने अनेक रूपना चारकिल्प. देव, काळा पुनको नीलरूपे वा नीलपुद्गलने काळारूपे परिणत करे ? पुगलने लहने तेवो परिणाम करे. ए रीते गंध रस अन स्पर्शनो पण परिणामांतर, वर्णना १० विकल्प. गंधनो १ रसना १० अने स्पर्शना चार विकल्प. अविशुद्ध लेश्यः वाळो देव असमवदत आत्मा द्वारा अविशुद्ध श्यावाळा देवने, देवीने के बेमांना कोइ एकने जाणे ? ना. ए त्रणे पदना वार विकल्प आठमा न जाणे अने छेल्ला चारमा जाणे,
शतक ६. उदेशक १०. पृ० ३४३ - ३४८.
अन्यतीथिको कोलास्थिकमात्र निष्पावमात्र कलममात्र. माषमात्र मुद्रमात्र यूका मात्र लक्षा मात्र भगवान् महावीरनुं प्ररूपण, देवनुं अने गंधनां सूक्ष्मतम पुत्रलोनुं उदाहरण, जीव ए चैतन्य छ ? के चैतन्य ए जीत्र छे ? बन्ने परस्पर एकरूप छे. वैमानिको सुधी ए जातना विचार जीवे छे ए जीव छे ? के जीव छे ते जीवे छे ? जीवे छे ते तो जीव ज छे अने जीव तो जीवे पण अने न पण र्ज वे प्राण धारण करे सिद्धजीव वैमानिको सुधी ए विचार नैरविक अने भव द्विक. वधा जीवो एकांत दुःखने वेदे छे एवो अन्यतीर्थिकमत. भगवान् महावीरनुं प्ररूपण. कोर जीवो एकांत दुःखने, कोइ एकांत सुखने अने कोर सुखदुःखमिश्र वेदनाने वेदे छे. ते ते जीवोनो नामग्रह निर्देश. नैर यक अने तेनां आहारपुद्गलो. ए प्रमणे यावत वैमानिक केवली आदानो - इंद्रियो द्वारा जाणे जूए ? ना. केवलीनुं अमित शान निवृत दर्शन. गाथा. पष्ट शतक समाप्त.
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