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________________ अभवसिद्धिक अने कालादेश. औघिकनी प्रेठे. नोभवसिद्धिक नोअभवसिद्धिक अने कार'देश. भंगत्रिक. संज्ञी अने कालादेश. भंगत्रय. असंशी अने कालादेश, भंगत्रिक. नैरयिक देव मनुष्य. भंगषटक, नोसंशी नोअसंशी. भंगत्रिक. औधिकनी पेठे लेश्यावाळा. कृष्णलेश्या नीललेश्या कापातलेश्या तेजोलेश्या पद्मलेश्या शुक्ललेश्या अलेश्या सम्यग्दृष्टि विकलेंद्रिय मिथ्या दृष्टि सम्यग मिथ्यादृष्टि असंयत संया. संयत नोसंयत नोअसंयत नोसंयतासंयत सकपायी एकेंद्रिय क्रोधकषायी देव मानकषायी मा याकपायी नैरयिक देव लेभकषायो औधिक ज्ञान आभिनिबाधिकज्ञान श्रुतज्ञान अघिज्ञान मनःपर्यवज्ञान केवलज्ञान औविकअज्ञान मति ज्ञान श्रुतअज्ञान विभंगज्ञान सयोगी मनयोगी वचन योगी काययोगी अयोगी साकारोपयुक्त अनाकारोपयुक्त सवेदक स्त्रीवेदक पुरुषवेदक नपुंसकवेदक अवेदक सशरीरी औदारिक बैक्रिय आहारक तेजस कर्मग अशरीर आहारपर्याप्ति शरीरपर्याप्ति इंद्रियपर्याप्ति आनप्राणपर्याप्ति भाषा मनःपर्याप्ति आहारअपर्याप्ति शरीरअपर्याप्ति इंद्रिय अपर्याप्ति आनप्राणअपर्याप्ति भाषा मनअपर्याप्ति ए बधांगी स थे कालादेशथी विचारणा संग्रहगाथा सप्रदेश आहारक भव्य संशी लेश्या दृष्टि संयत कषाय योग उपयोग वेद शरीर अने पर्याप्ति. हे भगवन् ! शुं जीवो प्रत्याख्यानी छे ? अप्रत्याख्यानी छ के बन्ने जातना छे? वधा प्रकारना छे. ए ज प्रमाणे नैरयिक यावत् चरिंद्रिय. पंचेंद्रियतिर्थग्यानिक अने मनुष्य ए वधा साथे प्रत्याख्याननी विचारणा. जीवो प्रत्याख्यान अप्रत्याख्यान अने ए बनेने जाणे छे? पंचेद्रियो जाणे छे अने बीजा नथी जाणता, जीवो प्रत्याख्यान अप्रत्याख्यान अने ए बनेने करे छे? पूर्व प्रमाणे. प्रत्याख्यान अने आयुष्य. अप्रत्याख्यान अने आयुष्य, ए बन्ने अने आयुष्य ए रीते प्रत्याख्यानने लगता चार दंडक. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे. शतक ६. उद्देशक ५. पृ०३०१-३१४. तमस्काय ए शुं पृथिवी कहेवाय? पाणी कहेवाय ? पाणी कहेवाय. तेनुं कारण ? तमस्काय अने पाणीनी समानखभावता. तमस्कायनी शरूआत क्याथी? एनी समाप्ति क्यों ? अरुणोदय समुद्रथी एनी शरूआत. ब्रह्मलोकमा एनी समाप्ति. तमस्कायनो आकार केवो. नीचे रामपा तरना मूलनी जेवो अने उपर कुकडाना पांजरा जेवो. तमस्कायनो विष्कंभ अने परिक्षेप केटले ? तमस्कायना बे प्रकार संख्येययोजन विस्तृत अने असंख्येययोजन विस्तृत. तमस्काय केवडो मोटो छे? शीघ्र गतिवाळो देव छ मास सुधी चालतां पण एना पारने न पहांची शके एवडे। मोटो. तमस्कायमां घर, हाट, गाम के संनिवेशो छे? ना. तमस्कायमा मोटा मेघो संस्वेदे छे? संमूठे छे? वरसे छे ? हा. ते देव करे ? असुर करे ? के नाग करे? त्रणे पण करे, तमस्कायया बादर स्तनित अने बादर विद्युत् छ ? हा देवकृत छे. तमस्कायमा बादर पृथिवी अने बादर अग्नि छ ! ना विग्रहगनिने अप्राप्त सिवाय. तमस्कायमा सूर्य चंद्र विगेरे छे ? ना. तेनी पडखे छे. तमस्कारमं सूर्यदिनी प्रभा छ ? ना अर्थात् ए प्रभा छ पण तमरक यरूपे परिणमेली छे. तमस्कायनो वर्ण केवो छ ? काळो कालामा कालो. वधारेमां वधारे काळो. तमस्काय भयंकर छे. एथी देवो पण क्षोभ भय पामे, तमस्कायना नाम केटलां? तेर तम. तमस्काय. अंधकार. महांधकार, लोकांधकार, लोकतमिस्र. देवारण्य. देवव्यूह. देवपरिघ. देवप्रतिक्षांभ, अरुणोदय (क) समुद्रः तमस्काय शेनो परिणाम छ ? पृथिवीनो? पाणीनो ? के जीव वा पुगलनो? ए पाणीनो परिणाम छे. जीव अने पुद्गल नो परिणाम छे. निवीनो परिणाम नधी. तमस्कायमा जीव मात्र अनेकवार पेदा थएला छे पण बादर पृथिवीपणे अने यादर अमिपणे नहि. कृष्णराजिओ केटली कही छे ? आठ, ए आठे क्यां छे ? रानाकुमार अने माद्रकल्पनी उपर, नीचे ब्रह्मलोकना अरिष्ट विमानना पाथडामां. एनो आकार अखाडानी जेवा समचोरस छे. पूर्वमा बे पश्चिममां बे दक्षिणमां बे अने उत्तरमा बे एबघी परस्पर स्पर्शली छे, एना आयाम अने विष्कंभ विषे विचार. एनी मोटाई विषे प्रश्न, ए कृष्णराजिओमा घर बगेरे छे के नहि ? इत्यादि बधो तमस्कायनी जेवो ज विचार, विशेषमा देव करे. कृष्णराजिनां आठ नाम कृष्णराजि. मेघराजि. मघा. माघवती. वातपरिघ वातप्रतिक्षोभा. देवपरिघा. देवप्रतिक्षोभा. ए कृष्णराजि पृथिवीनो परिणाम छे, पाणीनो परिणाम नथी. एमां बादर पाणीपणे बादर अग्निपणे अने बादर वनस्पतिपणे जीवो उत्पन्न थता नथी. बाकी बीजे कोइ पण प्रकारे उत्पन्न भएला छ. कृष्णराजिओना आठ अवक शांत रोमां लोकांतिक विमानो अची अचिमाली वैरोचन प्रमंकर केंद्राम सूर्याभ शुक्राभ सुप्रतिष्ट भ. ए अठे विमानोनी वच्चे रिष्टाभ विमान नवमुं. ए विमानोने लगती बीजी हकीकत. आठ लोकांतिक देवो सारस्वत आदित्य वरुण गर्दतोय तुषित अव्याबाध आग्नेय वरिष्ठ ए आठे देवोने लगती सविस्तर हकीकत, एओनां विमानो शेनी उपर प्रतिष्ठित छे ? वायु उपर. जीवाभिगम. बधा जीवो, ए विमानोमां पण उत्पन्न थएला छे मात्र देवपणे नहि. लोकांतिकनी स्थिति, आठ सागोपमलोकांतिक विमानोथी लोकनो छेडे। केटलो छेटे। छे? असंख्येय योजन. शतक ६. उदेशक ६. पृ० ३१५-३१८. पृथिवीओ केटली? सात. अनुत्तर विमानो केटला ? पांच. मारणांतिक समुद्धात. रत्नप्रभामा उत्पन्न थवाने योग्य जीव, त्यां पहोंचीने ज आहार करे? शरीरने रचे? केटलाक त्यां पहोंचीने करे अने केटल क त्यां पहेांची, त्यांची पाछा फरी, फरी वार त्यां पहेचीने तेम करे. ए ई ते साते पृथिवी असुरकुमारावासमा अने पृथिकायावासमां उत्पन्न थवाने योग्य जीव विषे पण ए ज विचार. मंदर पर्वत. अंगुल, वालाग्र. लिक्षा. यूका. यव. यावत् योजनकोटि ए रीते बधा एकेंद्रियो बेद्रियो यावत् अनुत्तरदेवो. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे. शतक ६. उदेशक ७. पृ० ३१९-३२६. शालि-त्रीदिगोधूम यव यवयव ए धान्योनी योनिनो बीजोत्पत्तिकाळ केटलो ? अन्तर्मूहुर्त.-वधारेमा वधारे प्रण वरस, कलाय मसूर तल मग अडद बाल कलथी चोला तुवेर चणा ए धान्योनी योनिनो बीजोत्पत्तिकाळ केटलो? वधारेमा वधारे पांच वरस. ए प्रमाणे अळसी कुसंभक कोद्रया कांग बंटी राळ कोदूसग शण सरसव अने मूलनीजनी योनि विषे प्रश्न, वधारेमां वधारे सात वरस. मुहूर्तना उच्छवास केटला ? ३७७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.004641
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherJinagama Prakashan Sabha
Publication Year
Total Pages358
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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