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________________ शतक ५. उदेशक ६. ० १९९-२१२. जीवोनी अल्पायुष्यतानो हेतु. -हिंसा. मृषावाद. भ्रमण ब्राह्मणने अनुचित दान. जीवोनी दीर्घायुष्यतानो हेतु अहिंसा सत्य. उचित 'द थंनुं दान. अशुभदीर्घायुष्य हे घुमानीदेउ करिया अनेने ती वेचनार नारने लगती किया चार अनि माकिया विगेरे. पुरुष अने धनुष्यने लगती क्रियाओ. अन्यतीथिकोनुं मत. तेनी असल्यता. जीवाभिगम अधाकर्म दि आहार लेनारने थती हानि, कोतकृत, स्थापित. कान्तारभक्त. दुर्भिक्षभक्त. वादेलिकाभक्त ग्लानभक्त. शय्यापिंड. राजपिंड. आराधना अने विराधना. आचार्य उपाध्यायनी गति. खोटा बोलानां कर्मों. हे भगवन् । ते ए प्रमाणे. शतक ५. उदेशक ७. पृ० २१३-२३०. हे भगवन् ! परमाणु कंपे ? ते ते भावे परिणमे ? कदान कंपे, परिणमे; कदाच न कंपे, न परिणमे ए प्रमाणे द्विप्रदेशिक स्वध देशतः बंपन, अकंप त्रिप्रदेशिक स्कंध. चतुष्प्रदेशिक स्कंध पंच प्रदेशिक स्कंध यावत् अनंतप्रदेशिक स्कंध. देशात विकल्पो परमाणु अने असिधारा, परमाणु छेदाय ? ना. ए प्रमाणे यावत् असंख्यं प्रदेशिक स्कंध अनंत प्रदेशिक स्कंध अने असिधारा. ते छेदाय? हा ना. ए प्रमाणे अनि अने परमाणु . बिगो पुष्कर संवर्तक मेघ अने परमाणु विगेरे. गंगा महानदी अने परमाणु विगेरे. परमाणु अर्ध सहित छे ? मध्य सहित छे ? प्रदेश सहित छे ? तेम नथी. ए प्रमाणे द्विप्रदेशिक संघ. त्रिदेशिक स्कंध द्विप्रदेशिक स्कंपनी पेठे सम प्रदेशवाळा अने त्रिप्रदेशिक स्कंधनी पेठे विषम प्रदेशवाळा. संख्येय प्रदेशिक स्कंध. असंख्येय प्रदेशिक स्कंध अने अनंत प्रदेशिक स्कंध प माणु परमाणुनी परस्पर स्पर्शना नव विकल्प. प·माणु अने द्विप्रदेशिवनी ईना. परमाणु अने त्रिदेशिवनी स्पर्शना. ए प्रमाणे यावल परमाणु अने अनन्तप्रदेशिकनी स्पर्शना. द्विप्रदेठिक भने परमाणुनी पक्षमा द्विप्रवेदिक अने द्विपदेशियनी स्पर्शना डिधिक अशी स्पर्शना शिदेशिक भने परमाणुमी स्पर्शमा प्रवेशिक अशी स्पर्धाना त्रिदेशिक भने देशमा एया अनंत प्रदेशिकनी स्पर्शना *परमाणु पुनलनी कालतः स्थिति एक समय अने असंख्य काल. सकंप एक प्रदेशा६गाढ पुद्गलनी कालतः स्थिति एक समय अने आवलिकानो असंख्य भाग. ए प्रमाणे यावत् असंख्य प्रदेशावगढ. एक प्रदेशावगाढ निष्कंप पुद्गलनी कालतः स्थिति. एक समय अने असंख्य बाल. एक गुण काळा एगुल्नी कालतः स्थिति. एक समय अने असंख्य काल. ए प्रमाणे यावत् अनंत गुण वा पुद्गल. वर्ण, गंध, रस, स्पर्श. सूक्ष्म परिणाम बादर परिणाम. द.ब्द परिणत. पुहलनी चालतः स्थिति एक समय अने अवलिकानो असंख्य भाग. अशब्दपरिणत पुद्गल परमाणु पुलको अंतरकाल. एक समय अने असंख्य काल हिप्रदेशिक स्कंधनो अंतरकाल. एक समय अने अनंत काल, अनंत प्रदेशिक. एक प्रदेशावर..ढ रकंप पुगल अंतरकाल. एक समय अने असंख्य काल. ए रीते असंख्य प्रदेशादगाह एक प्रदेशावगाढ निष्कंप पुनसमो अंतरकाल, एक समय अने आधलिकाको असंख्य भाग. ए रीते असंख्य प्रदेशावगाढ. वर्णदिनों अंतरकाल. शब्दपरिणत पुद्गलनो अंतरकाल. एक समय अने असंख्यकाल. अशब्द परिणत पुल. द्रव्यस्थानायु, क्षेत्रस्थानायु, अवगाहनास्थानायु अने भावस्थानायुनी अल्प बहुता. कैदिको आरंभी पारंभ पृथिवीवादिन आरंभ कर्म भवन देवो देव ओ मनुष्यो मधुपणीको तिबंध, निर्यचणीओ, आसन, सदम, मां मात्र, उपकरण रेगे यदि आरंभ पंचेंद्रिय परिग्रह. टंक कूट वापी अने वन विगेरे. देवकुल आश्रम प्रपा स्तूप अने गोपुर विगेरे, प्रासाद गृह शरण लेण आपण शृंगाटक त्रिक चतुष्क अने महापथ विगेरे. शकट रथ यान भने मेना विगेरे. लोढी कडा अने कहछी दिगेरे. वानव्यंतरो ज्योतिषिको वम निको. पांच हेतु अने पांच अहेतु. हे भगवन् । ते ए प्रमाणे. शतक ५. उदेशक ८. पृ० २३१-२४४. महावीरन। अंतेवासी नारदपुत्र अने निर्बंथी पुत्र. पुद्गल शुं सार्ध छे? समध्य छे? सप्रदेश छे ? नारदपुत्रना मते सर्व पुद्गला सार्धं समध्य अने प्रदेश के ए नारदपुत्रनाम निधीनी सविस्तर चर्चा धेनुं पोत सेनी सख जागवानी इच्छा निर्वी मारने आपली सविस्तर समजले कि मार निर्मधीपुत्र पासे पोताना अजाणपणाने लगती म गेली क्षमा विहार. गौतम बोल्या- जीवे। वधे छे ? हीना थाय छे ? अवस्थित है ? जीवा वधता नथी, घटता नथी, अवस्थित छे. नैरयिकोथी यावत् वैमानिका सुधीक विचार, सिद्धोनी वध ष्ट स्थिरता दिषे विचार. जीवानुं अअस्थान वयां सुधी ? सर्व काल. नरयिकानुं वधवापणुं क्यां सुधी ? एक समय आवलिकाना असंख्य भाग. ए रीते घटवापणुं, नैरयिकेानुं अवस्थान क्यों सुधी ? एक समय- चोवीश मुहूर्त. एम साते नारकी तेने लगती विशेषता ए रीते असुरकुमारी बेदियनीयादी जमाती अद्याद वध घट-स्थिरतानी विचारणा ए जारुनी सिद्धोने लगती विचारणा. शुं जीवा सेोपचय छे? सापचय छे। सेोपचय-सापचय छे ? निरुपचय-निरपचय छे ? जीवा निरुपचय-निरपचय छ ? ए प्रमाणे सिद्धोने लगती विचारणा कालनी अपेक्षाए जीव मात्रने लग्ग ती ए जातनी विचारणा. हे भगवन्! ते ए प्रमाणे. शतक ५. उदेशक ९. पृ० २४५ - २५२. राजगृह नगर ए शुं कहेवाय ? पृथिवी विगेरे राजगृह नगर कहेवाय ? एना कारणनी नांध. दिवसे प्रकाश अने रात्रे अंधारं हाय ! हा. एवं शुं कारण ? शुभ पुद्गल भने अशुभ पुद्गल, नैरयिकाने प्रकाश होय के अंधकार ? अंधकार. तेनुं कारण अशुभ पुद्गल, असुरकुमारेने प्रकाश. पृथिवीकाय यावत् इंद्रियाने अंधकार- चउरिंद्वियाने प्रकाश अने अंधकार ए रोते यावत् मनुष्याने असुरकुमारनी पेठे भुवनपति बगेरे देनेने प्रकाश. नारकिमां रहेला नैरयिकाने 'काळ' नो ख्याल होय ? ना. एम केम ? 'काळ' नो ख्याल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org/
SR No.004641
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherJinagama Prakashan Sabha
Publication Year
Total Pages358
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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