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शतक ६. - उद्देशक ५.
भगवत्सुधर्मस्वामिणीत भगव
इत्याह-जाय ? इत्यादि साचेलेतः" होयंतियविमाणाते! तिचा पता ? गोवमा ! तिपादन हालिद्दा, सुकिल्ला, एवं पभाए निच्चालोया, गंधेणं इट्ठगंधा, एवं इट्ठफासा, एवं सव्वरयणामया; तेसु देवा समचउरंसा, अल्लमहुगयथा, पम्हलेस्सा. लोयतियविमा व भंते । राज्ये पाणा, भूज, जीवा, सत्ता विचार भाइयत्ताए, लेखकाइयाए बाउफाइबताए, वणस्सइकाइयसाए देवताए, देविचार उपवधपुच्या 'ह' इत्यादि लिखितमेचयति छान्दसत् ? हन्त' किपत्या अवाचया अन्तरेण लोकान्तः प्रज्ञप्त इलि.
भगवत्सुधर्मस्वामित्री श्रीभगवतीचे शते पथम उद्देशके श्रीअभयदेवसूरिविरचितमाम्
३. [ असु उपासंतरे चिनी
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अन्तर ते पहले अभ्यंतर उत्तरमी अने पूर्वनी बचे एक विमान के बास पने
पूर्वनी बच्चे बीजुं विमान छे, अभ्यंतर पूर्वनी अने दक्षिणनी वच्चे श्रीजुं विमान छे, बाह्य बन्ने दक्षिणनी वच्चे चोथुं विमान है, अभ्यंतर दक्षिणनी विमान अने पश्चिमनीचे पांच विमान के मजे माझ पश्चिम विभाग अभ्यंतर पश्चिम अने उत्तरनी व सात विभाग अने य
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अंते पहले समीपे जी रहे ते लोक वाय अनेकগিफ अथवा लोकांतिक जे देवो अने तेओना जे विमानो ते अर्चि बगेरे आठे विमानोनी हकीकत कहेबाना
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उत्तरमा आठ विमान छे. [ लोगंतियविमाण चि] लोक एटले लोकांतिकरूप जे विमानो ते लोकांतिक विमानो ( ए प्रमाणे समास करवो ) कहवाग, लोकान्तिक विमानो (ए प्राणे समास करयो) काय अहं अवकाशांतरमा रहनार संगम पण जे कृष्णजिओना मध्यम पचले भागे रहेना रिट भाग नवसुं विमान जगान्युं हे ते फक्त विमानना प्रस्तावधी व समय छे. १ सारस्वत, २ आदित्य, ३ वह्नि, ४ वरुण, ५ गद्दतोय, ६ तुसिय, ७ अव्याबाध, ८ आग्नेय अने नवमा रिष्ट, अहिं अक्षरीने अनुगारे- सरखतदेव लख्याने अनुसारे-एम जणाय छे के, सारस्वत देव अने आदित्य देव ए बन्ने समुदित देवोनो सात देव अन मातसो देवो परिवार हे अर्थात् ए बने देवोनो भेगो परिवार एटलो छे, ए प्रमाणे आगळ पण जाणी लेवुं, [' अवससाणं ' ति ] अव्यावाध देवनो, आग्नेय देवो अने रिदेवनोप परिवार जागी मो. [ एवं मेवंति ] ए मात्र पूर्वोक्त प्रधनना अनं उत्तरमा अभिलापभी ठोकांतिक मानोनीत
परिवार,
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१. प्र० छा:- लोकान्तिक विमाना भगवन्! कतिवर्णः प्रज्ञप्ताः ? गोतम ! त्रिवणी: लोहिताः, हारिद्राः, शुक्ला:; एवं प्रभया नित्यालोकाः, गन्धेन इष्टगन्धा एवम् स्पर्श एवं सर्वषु देवाः साः आईवीले सोकान्तिवानेषु भगवन्सर्वे प्राणाः, भूना, जीवाः, सच्चाः पृथिवी कायिकतया, अप्कायिकतया, तेजःकायिकतया, वायुकायिकतया, वनस्पतिकायिकतया देवतया, देवितया उपपन्नपूर्वीः !:- अनु०
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१. आ उपरना आ टीकाना मूळ सूत्रमां देवोने लगती हकीकत आपेली छे. जैनसंप्रदायने अभिमत एवी- देवोने लगती घणी हकीकत आ सूत्रमा अनेक ठेकाणे आवी गइ छे अने हवे पछी पण आवशे तो ए बधी हकीकतोनी साधे तुलना करवा सारु जो वैदिक संप्रदायने अभिमत एवी देवोने लगती हकीकत आपवामां आवे तो ठीक गणाय एम मानीने अहीं श्रीपातंजलसूत्रमां आवेली ए देवानी हकीकत अक्षरशः जणावी दइए छीए:
"ए पातासस्थानमी उपर की उपर मुक्तक (अंतरिक्षसो . पृथ्वीमा जे अजीम हे ए अंतरिक्ष- लोकमां पण असंख्य जीवो रहे छे, भुवर्लोकनी उपर स्वर्लोक रहे छे; एने महेंद्रलोक पण कहे छे. एमां असंख्य उत्तमोत्तम प्राणिओ रहे छे. ए १ महेंद्रलोकमां जे देव-जातिनो वासो छे तेना छ प्रकार छः १ त्रिदश, २ अग्निष्वात्त ३ याम्य, ४ तुषित, ५ अपरिनिर्मितवशी अने ६ परिनिर्मितयशी ए बधा देवो संकल्पसिद्ध सामर्थ्य वाळा, अणिमादि ऐश्वर्य संपन्न, कल्ल पर्यंत आयुष्यवाळा अने ओपपादिक देहवाळा छ ( ओपपादिकदेह एटले जे शरीर, माता पिताना संयोगवडे उत्पन्न थयुं नथी, किंतु पूर्वे करेला धर्मना प्रभावथी उत्पन्न थएल छे ) अर्थात् धर्मना तेजथी सुसंस्कृत अने पवित्र भांतिक अणुओं द्वारा तेओनो देह 'बनेलो होय छे. ए देह, निर्मळ, लघु वर्लोकनी उपर २ महर्लोक छे, तेमां पांच प्रकारना देवो वास एवधा महाभूतवशी छे एटले एओने स्थूल तथा सूक्ष्मभूतो संपूर्ण. काळे तेमने ए महाभूतो ते ते पदार्थने हाजर करे छ अर्थात् परिणाम पाने छे तेओ आपणी पेठे आहार करता नथी. भाग्य
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अने सूक्ष्मतम होय छ, एने मलिनदेहवाळा माणसो जोइ शकता नथी. ए करे छेः १ कुमुद, श्रभव, ३ प्रतर्धन, ४ अजनाभ अने ५ प्रचिताभ रूपे वश रहेला होय छे. तेओ (ज्यारे तेनी ) इच्छा करे छे, ते ज एमनी अमोघ इच्छाना प्रभावथी ए महाभूतो ते ते पदार्थने आकारे वस्तुनुं ध्यान तथा परिदर्शन करीने ज तेओ तृप्त तथा परिपुष्ट थाय छे. एमनुं आयुष्य हजार कल्प सुधीनुं छे. तेनी उपर ३ ' जनलोक' नामे ब्रह्मानो प्रथम लोक छे. ए लोकमां चार प्रकारनी देवजाति रहे छेः १ ब्रह्मपुरोहित, २ ब्रह्मकायिक, ३ ब्रह्ममहाकायिक अने ४ अमर. ए सघळा, महाभूत अने इंद्रियशेने वश करीने अपार आनंदमां रहे छे. एमनुं आयुष्य बे हजार कल्पनुं छे. तेना उपर ४ 'तप' नामे ब्रह्मानो बीजो लोक छे. एमां त्रम प्रकारनी देव जाति रहे छेः १ आभाखर, २ महाभाखर, ३ सत्य महाभाखर. महाभूतो इंद्रियो अने महत्-तत्व एटले मनः एमने वशीभूत छे. एमनुं आयुष्य चार हजार कल्पनुं छे. ए बधा ध्यानतृप्त अने अन्या - इतज्ञान संपन्न छे, सत्यलोकना विषय सिवायना अन्यलोकना सर्व विषयो तेमना जाणवामां छे. ए लोकनी उअर ब्रह्मानो नोजो ५ सत्य - लोक छे. एमां चार प्रकारनी देवजाति रहें छेः १ अच्युत, २ शुद्धनिवास, ३ सत्यभ्रा अने ४ संज्ञासंज्ञी. केटलाक तेओने १ अकृतभवनंन्यास, २ स्वप्रतिष्ठ, ३ उपरिस्थ अने ४ प्रधानवशी - एवा नानथी पण ओळखे छे. एमनुं आयुष्य अने सामर्थ्य ब्रह्माना जेटलं छेएओ बधा महाप्रलय पर्यंत जीवता रहे छे अने ब्रह्मानी पेठे नवी नवी सृष्टि करवामां समर्थ छे:- पातंजल योगदर्शन, विभूतिपाद, सू० २६ ( पृ० १७१–१७२ - १७३ नथुरामशर्मा ) [ आ उल्लेखमां 'कल' शब्दनो प्रयोग वारंवार भएको छे तो तेनी समजण माढ़े जिज्ञासुओए मनुस्मृतिमांनुं मन्वंतरनुं प्रकरण जोह लें | :- अनु०
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