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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
६. उदेशक है.
कोटी त्रिंशलक्षणः- द्वितीयमपि च फर्मस्थितिकालः स चाचाचाकापर्जितः कर्मनिषेककालो भवति. " एवम् अम्यकर्मस्वपि अबाधाकालो व्याख्येयः, नवरम्:- आयुषि त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि निषेकः, पूर्वकोटी त्रिभागश्च अबाधाकाल इति. ' वेयणिज्जं जहगं दो समय त्ति केवलयोगपबन्धाऽपेक्षया वेदनीयं द्विसमपस्थितिकं भवतिः - एकत्र बध्यते द्वितीये वैधते य उच्यतेः" वेयणियस्स जहना बारिस, नाम-गोयाण अट्ठ मुहुत्तं " ति तत् सकषायस्थितिबन्धम् आश्रित्य इति वेदितव्यम् इति,
"
यच
प्रबाधा-काळ. C
५. कर्मस्थितिना द्वारमां [' तिन्नि य वाससहस्साई अवाहा - अवाहाऊणिया कम्मद्विति- कम्मनिसेगो' त्ति ] 'लोडन ' अर्थमां वर्तता बाधू धातु उपरथी 'बाधा' शब्द बने छे, बाधा एटले कर्मनो उदय, बाधा नहि ते अवाधा अर्थात् ज्यारथी कर्मनो बंध थयो त्यारथी ज्यां सुधी कर्मनो उदय भाय त्यां सुधीना काळने एटले के कर्मनो मंच अने उदय ए वे बेना अंतराने अथाधा कहे छे, ते पूर्शक रूपवान्य अनाधाकाळची उणी कर्मस्थिति कर्मगो अवस्थानकाळ हे अर्थात् जे कर्मखितिनो काळ श्री सागरोपम कोडाकोडी दर्शाच्यो छे ते, पण हजार
कर्मनुं नाम.
मोहनीय.
ज्ञानावरण.
दर्शनावरण
कषायवाळा आ
रमाए बांधलुवेदनीय. *
अंतराय.
नाम.
गोत्र.
आयुष्य.
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वधारेमा वधारे स्थिति.
७० कोटाकोडी
सामरोपम
३० कोडाकोडी
सागरोपम
33
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२० कोड कोडी
सामरोपम
३३ सागरोपम उपरांत पूर्व कोटित्रिभाग.
ओछामा ओछी वधारेमा वधारे ओछामां ओछो वधारेमा वधारे बाधाकाळ -
खिले
कर्मनिषेक
+ मुं
"
"
बार मुहूर्त.
अंतर्मुहूर्त
आठ मुहूर्त.
अबाधाकाळ.
७००० वर्ष.
३००० वर्ष.
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२००० वर्ष.
"
अंतर्मुहूर्त. पूर्वकोटिप्रभाग
अबाधाकाळ.
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अनु
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७००० वर्षे ओछ
७० को ० सागरोपम
३००० वर्षे ओछ
३० को ० सागरोपम
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२००० वर्षे ओछां
२० को ० सागरोपम
पूर्वको माओ फक्त ३३ सागरोपम
ओछामा ओछो बाधाकाळ-कर्मनिषेक.
+ अंतर्मुहूर्ते ओधुं अंतर्मुहूर्त.
११
अंतर्मुहूर्त ओछु अंतर्मुहूर्त.
* उपर जणावेलां ए आठे कर्मोमां वेदनीय सिवायना सात कमीने बांधनारा आत्माओ कषायलिप्त ज होय छे त्यारे वेदनीय कर्मने बांधना आत्मा कषायलिप्त ज होय छे एम. कांइ नथी- ए तो अकषायी पण होय अधीत् कषायों के अकषायी ए बने प्रकारना आत्माओ वेदनीय कर्मने बांधी शके छे तो अहीं जे वेदनीयकर्म विषे जणावेलुं छे ते वेदनीय, कषायी आत्माएं बांधेलं ज गणवानुं छे. अकपायी आत्माएं बांधेला वेदनीयने लगती भबधी हकीकत तो श्रीभगवतीजीना मूळपाठमा अने टीकामां ज टीकाकारथीए जणावी दीधी छे:- अनु०
अंतर्मुहूर्ते ओछां सात मुहूर्त
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अंतर्मुहूर्तं प्रमाणे यापोभान गाज यहाँ एक सरला अंतत सब्द पण जुजुमान ( पंचसंग्रह - १० १७६ - ( गा० ३१–३२ भा० आ० ) :- अनु०
१. प्र० छाया-वेदनीयस जम्पा द्वादशनामी
अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त.
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