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________________ शतक ६.-उद्देशक २. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. उपरना अने नीचेना । अव्यावीश हजार वर्ष ओगणत्रीश हजार वर्षे | वेय क. पछी. पछी. उपरना अने वचला प्रवेयक. ओगणत्रीश हजार वर्षेनी हजार वर्ष पछी.. पछी. उपर उपरना ग्रैवेयक. त्रीश हजार वर्ष पछी. एकत्रीश हजार वर्ष पछी पछी. विजय, वैजयंत, जयंत एकत्रीश हजार वर्ष तेत्रीश हजार वर्ष पछी. अने अपराजित. ___ सर्वार्थसिद्ध. | तेत्रीश हजार वर्ष पछी तेत्रीश हजार वर्ष पछी. (एकवार जम्या पछी स्वर्गमा रहेनाराओने ओछामा ओछे जे खो आहारनों अभिलाष थाय छे अने वधारेमा वधारे जे वखते (जेटलो बखत वीत्या पछी) आहारनो अभिलाष थाय छे ते उपरि-मिर्दिष्ट कोठा द्वारा सुस्पष्ट जणाइ शके तेम छे.) पृथ्वी, पाणी, अग्नि, वायु, वनस्पति, कीट, पतंग, पशु विगेरे तथा मनुष्य अने आहारः-ओरालियसरीरा जाव मणूसा सचित्ताहारा वि, अचित्ताहारा वि, मीसा- -औदारिक शरीरने धारण करनारा प्राणिओ यावत्-मनुष्यो ते बधा हारा वि. सचित्त, अचित्त अने मिश्र आहारवाळा पण छे. । प्र.-पुढवीकाइया णं भंते ! आहारट्ठो ? हे भगवन् ! पृथ्वीकायिको आहारना अर्थी छे ? उ.-हता, आहारट्टी. हा, तेओ आहारना अर्थी छे. प्र०-पुढवीकाइयाण भंते ! केवतिकालस्स आहारटे समुप्पजति ? हे भगवन् । पृथिवीकायिकोने केटलो केटलो वखत गया पछी आहारनो अभिलाष थाय छे? उ.-गोयमा ! अणुसमयं अविरहिते आहारठे समुप्पज्जइ. हे गौतम ! तेओने निरंतर ज आहारनो अभिलाष थया-करे छे. प्र-पुढविकाइया णे भंते ! कि आहार आहारैति ? हे भगवन् ! पृथिवीकायिको शु आहारने आहरे छे ? . उ.-एवं जहा नेरइयाण जाव (हे गौतम ! ) जेम नैरयिको संबंधे कह्यु तेम ए पृथिवीकायिको विषे पण समजी लेवानुं छे. प्र०-ताई कतिदिसि आहारेंति ? (हे भगवन् ! ) तेओ ते आहारना अणुओने कद कइ दिशामांथी लइने आहरे छे ? उ०-गोयमा ! निवाघातेण छदि से, वाघायं पडच सिय तिदिसिं, सिय हे गौतम ! जो काइ व्यवधान जेतुं न होय तो तेओ, छ ए दिशामाथी चउदिसि, सिय पंचदिसि. नवरे-ओसन्न कारणं न भण्णति. वण्णओ काल- आहारना अणुओ मेळवे छे अने जो कोई व्यवधान जे, होय तो कदाच नील-लोहित-हालिह-सुकिल्लाति, गंधतो सुम्मिगंध-दुभिगंधाति, रसतो त्रण दिशामांथी, कदाच चार दिशामांधी अने कदाच पांच दिशामाथी तित्तरस-कडुयरस-कसायरस- अंबिल-महुराई. फासतो फक्खडफास- आहारनां अणुओ मेळवे छे. विशेष ए के, अहीं 'घणु करीने' एम न कहे. - मउय-गुरुय-लहुय-सीत-उण्ह-णिद्ध-लुक्खाई-तेसिं पोराणे वण्णगुणे-से - तेओ जे अणुओने खावा माटे मेळवे छे ते, वणे काळो, नीला, लाल, पीळो जहा नेरझ्याणं जाव-आहच नीससंति. अने धोळा होय छे, गंधे सारां अने नरसा होय छे, रसे तीखा, कडवां, कषायला, खाटां अने मधुर होय छे, स्पर्श खडबचडी, सुवाळां, भारे, हळवां, ठंडा, उना, चीकणां अने लूखां होय छे-तेओ, ते अणुओना जूना गुणोने फेरवी नाखे छे-इत्यादि बधी हकीकत नैरयिकोनी पेठे समजी लेवानी छे यावत् कदाच निश्वास ले छे. प्र.-पढधिकाइयाण मंते ! जे पोग्गले आहारत्ताते गिण्हति, तेसिं हे भगवन् ! ए पृथिवीकायिको, जे अणुओने आहाररूपे प्रहे छ तेमांना भंते! पोग्गलाण सेयालंसि कतिभागं आहारैति, कतिभागं आसाएंति ? केटला भागने तेओ खाय छ केटला भागने तेओ चाखे छ? उ०-गोयमा! असंखेजहभाग आहारेंति, अर्णतभार्ग आसाएंति. हे गौतम ! तेमांना असंख्येय भागने तेओ खाय छे अने अनंत भागने तेओ चाखे छे. प्र--पुढ विकाइया णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताते गिव्हंति ते कि हे भगवन् ! तेओ जे अणुओने आहाररूपे ले छे तो शुं ते वधाने तेओ सब्वे आहारैति, नो सम्वे आहारेंति ? खाइ जाय छे ? के बधांने नथी खाइ जता! उ०-जहा नेरइया तहेव. (हे गौतम! ) जेम नैरयिको विषे कष्ट तेम आ पृथिवीकायिको विषे . पण समजी लेवानुं छे. प्र०-पुढविकाइया भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताते गिण्हंति ते ण हे भगवन् ! ए पृथिवीकायिको, आहाररूपे लीधेला ते अणुओने क्या तेसिं पुग्गला कीसत्ताए भुजो भुजो परिणति ? क्या रूपे वारंवार परिणमावे छे! उ०-गोयमा ! फासिंदियवेमायत्ताते भुजो भुज्जो परिणमंति, एवं हे गौतम ! तेओ, ते आहरेला अणुओने स्पर्श-इंद्रियना अनेक प्रकारना भाव-वणप्फकाइया. आकारमा परिणमावे छे. ए प्रमाणे यावत्-वनस्पतिकायिको विषे पण समजवावं छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org|
SR No.004641
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherJinagama Prakashan Sabha
Publication Year
Total Pages358
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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