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५.उदेशक ७.
भगवत्सु धर्मस्यापिप्रणीत भगवतीसूत्र.
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ते को
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एक लो-नमो सर्वे सर्वम् ए एक विकल न घंटे के पत्र बीना विकल्यो घटता नही. कारण के, परमाणु, अंश -भाग- रहित छे माटे बाकीना विकल्पोनो परमाणुमा असंभव है. शं० -- जो कदाच 'सर्वेण सर्वम् एटले 'बया बड़े बवाने शंका. स्पर्श' ए विकल्प स्वीकारवामां आये तो वे परनाशुनी एकता थइ जाप छे, अने ते एकता धनाथी जुदा हुंदा परमाणुओना योगथी जे घट वगेरे स्कंधो बने छे ते केम बनशे ? समा० 'सर्वेग सर्वे स्मृति' ए विकचनो एवो अर्थ नयी के, वे परमाणुत्रो परस्सर मळी जाय, पण ते वे साधन. परमाणु परस्पर एक बीजानो स्पर्श पोते समस्त स्वात्मवडे करें, कारण के, परमाणुओनां अर्ध वगेरे विभाग नथी माटे ते परम णुओ अर्ध वगेरे भागवडे स्पर्शी शकता नथी. बळी, घटादि पदार्थता अभावती आपति तो त्यारे ज होइ शके यारे ते वे परमाणुओनी एकता थई जती होय, परंतु ते यंत्र परंमओना स्वरूपनी जुदाई होवाची मे बेनी एकता पती नवी अने ते होवाथी पूर्वोपचिनी[सम नवमेहिं फुसइ ' त्ति ] ७ ' सर्ववडे देशने ' अने ९ ' सर्ववडे सर्वने 'ए वे विकलवडे स्पर्शे छे. तेमां ज्यारे वे प्रदेशवाळो - स्कंध, आंकाशना द्विप्रदेशिक अने - वे प्रदेशनां रहेलो होय त्यारे परमाणु, ते स्कंधना देशने सर्ववडे - पोताना समस्त आलावडे - सर्वे छे (७). कारण के, परमाणुनो विषय, ते पा ना देशनोज आडनावे प्रदेशस्थितं द्विरदेशिक कंपना देने परमाणु स्पर्ती के के बने ज्यारे ते द्विपदेश स्कंध
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(७) ज्या
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परिमाणन सूक्ष्मताथी आकाशना एक प्रदेशमां स्थित होय त्यारे 'परमाणु, पोताना सर्वात्मवडे ते स्कंबनां सर्वात्मने अडे छे' (९ ) एं प्रमाणे छे.[निपन्छिम तिहिं कुसर चि ] प्रदेश कंपने स्पर्शतो परमाणु सदन ऐसा पत्र विकल अडे हे मां उपारे विदेशिने प्रदेशवाळो स्कंध आकाशना त्रण प्रदेशमां रहेंलो होय त्यारे परमाणु, पोताना सर्वात्मवडे तेना एक देशने अड़े छे, कारण के, परमाणुने तो प. माणु प्रकारे रहेला ने त्रिदेशिक स्कंधनादेशनेवासा धना मे प्रदेश एक करहेड़ा क्षेप अने बीजो एके प्रदेश अन्यत्र रहेलो होय त्यारे तो एक आकाश प्रदेशमा रहेला बे परमाणुने अडानुं सामर्थ्य एक परमाणु होवाथी "पोताना बधावडे बे देशीने अडे छे ' एम कहेवाय छे ( ८ ) . ० पोताना बवावडे बे देशोने अडे छे ? आ.विकेस जेम त्रिदेशिक स्कंधर्मा घटायो शंका. तेम से प्रदेशवाळा धमां परा घटदो लोइए, कारण के, त्या पण ते द्विदेशिक कंचना बन्ने प्रदेशोने ते परमाणु पोताना सर्ववडे आडे. छे. माटे "ते द्विदेशिक स्कंध केम दर्शाव्यो नथी समाते प्रमागे द्विपदेशिक कंपनां घटतुं नक्षी. कारण के, त्यां द्विप्रदेशिक स्कंध पोते जसमधान अवयवी छे पण कोइनो अंश नथी माटे एम केन हेवाय के बचाव वे देशोने तो देशी अपेक्षा नो स्पर्श करतां एक प्रदेश बाकी रहे छे अर्थात् तेना जे वे परमाणु- एक आकाश प्रदेशमां रहेला हे ते बन्ने, जुदा आकाश प्रदेशमां रहेंल तेना एक परमाणुना बे अंशो - देशो-छे, अने एक परमाणु ते बे देशोने अंडे ले माटे 'सर्ववडे बे देशोने अडे छे' ए प्रकारनो व्यपदेश-कहे बुं-संगत छे. उयारे ए पिपदेशिक स्कंप, आकाशना एक प्रदेशमां स्थित होय त्यारे तो (९) आत्मबडे सममाने बड़े ए मनोवि कहेवाय. [ ' दुप्पएसिए णं' इत्यादि. ] [' तश्य - नवमे हिं, फुंसइ ' त्ति ] ज्यारे द्विप्रदेशिक स्कंध, आकाशना वे प्रदेशमा रहेलो होय, त्यारे .. पोताना एक देशवडे. परमाणुना सर्वात्मने स्पर्श करे छे, माटे त्यां' एक भागवडे सर्वने अडे छे' ए बीजो विकल्प लागे अने ज्यारे ते द्विप्रदेशिक परमाणु अने द्विप्रस्कंध, आकाशमा एक प्रदेशमां विंत दोष वारे पोताना सर्वालवंडे परमाणुना सर्वालने अंडे, माटे सर्व नवम देशिक. विवस लगे. [प्पएसओ दुप्पएसियं इत्यादि. ] उपाने] वने द्विपदेशिक सांचो पांश स्थित रेशम परस्पर एक मागवडे एक माने अडे, माटे एक देश एक देशने अडे हे ए प्रथम विकल्प लागे, अने ज्यारे एक द्विप्रदेशिक दिपदेशिक, स्कंध, एक आकाश प्रदेशमां स्थित होय अने बीजो द्विप्रदेशिक स्कंध, बे आकाश प्रदेशमां होय त्यारे 'एक देशवडे सर्वने अडे छे ' ए चीजो भंग खाने के कारण के, वे आकाश प्रदेशमां स्थित द्विदेशिक संच पोताना एक भागवडे एक आकाश प्रदेशमा रहेला प्रदेशिक स्कंधना खर्च मागोने स्पर्शी के छे. तथा सर्व देश आडे सातमो विकल्प जाणो कारण के, एक आकाश प्रदेशनां स्थित द्विदेशिक बंध पोताना सर्वात्मवडे बे आकाश प्रदेशमां स्थित द्विप्रदेशिक स्कंधना एक देशने अडे छे. नवमो विकल्प तो प्रतीतः सुस्पष्ट - जेछे आ दिशावडे आ प्रकारे जाओ पण यान
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परमाणुपुद्गलादिनी संस्थिति.
१६. प्र० -- परमाणुपोग्गले णं भंते ! कालओ केवचिरं
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१६.३० - गोवमा ! जो एवं समयं उकोसेणं अ संखेज्जं कालं, एवं जाव - अनंतपएसओ,
१७. प्र० - एगपएसोगाढे णं भंते । पोग्गले सेए तम्मि अमिया ठाणे काओ केचिरं होई
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१६. प्र० - हे भगवन् ! परमाणुपुद्गल, काळथी क्यां सुधी रहे?
१६. हे गौतम! परमाणुपुछ, ओ ओ एक . समय सुधी रहे अने वधारेगा वधारे असंख्य काल भी रहे ए प्रमाणे यावत् अनंतप्रदेशिक सुधीना स्कंध गाटे समजी लेवु.
१७. प्र० - हे भगवन् ! एक आकाश प्रदेशमां स्थित पुद्गल, होय ते स्थाने अथवा बीजे स्थाने काळथी क्यां सुधी सकंप
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१. मूलच्छायाः - परम णुपुद्गलो भगवन् । कालतः कियचिरं भवति ? गौतम ! जघन्येन एक समयम्, उत्कृष्टेन असंख्येयं कालम् एवं यावत्अनन्तप्रदेशिक एकप्रदेशाला भवनमा खाने, अम्यमित्रांने
मिचभवतः अनु०
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