________________
शतक ५:-उद्देशक ७.
ई भगवन् ! परमाणु. कंपे ? ते ते भावे परिणमे ? कदाच कंपे-परिणमे-कदाच न कंपेन परिणमे.-ए प्रमाणे द्विपदे शिवा स्कंध:-देशतः कंपन-अब पन.
त्रिप्रदेशिक स्कंध.-चतुष्प्रदेशिक स्कंध.-पंच प्रदेशिक स्कंध-यावत्-अनंतप्रदेशिक रकंध.-देशाश्रित, रि.प.पो.- परमाणु अने अरिधारा-परमाणु,
गाय.?-नी.-ए प्रमाणे यावत्-असंख्यप्रदेशि स्कंध,-अनंत प्रदशिक स्कंध अने असिधारा.-ते छेदाय ?-हा-ना.-ए प्रमाणे अग्नि अने परमाणु विगेरे.-पुष्करसंवर्तक मेव अने परमाणु विरे.-गंगा महानदी अने परमाणु विगेरे.-परमाणु अर्थ सहि छ ? मध्य सहित छ ? प्रदेश सहित छे ? तेम नथी.-ए प्रमाणे विप्रदेशिक स्कंध.-त्रिप्रदेशिक स्कंध.-द्विपदेशि रकंपनी पे सम प्रदेशवाळा अने त्रिप्रदेशिक स्कंधती हे विषम प्रदेशवा का.संख्येष प्रदेशिक स्कंथ-असंख्येय प्रदेशिक स्कंध अने अनंत प्रदेशिक स्कंध.-परमाणु परमाणुनी परस्पर सर्शना.-नव विकल्प.- परमाणु अने दिप्रदेशिकनी स्पर्शना.-परमाणु अने त्रिप्रदेशिकनी रपर्शना.-ए प्रमाणे यावत्-परमाणु अने अनन्तप्रदेशिकनी स्पर्शना.-रिप्रदेशिक अने परमाणुनी स्पर्शना.-द्विप्रदेशिक अने द्विप्रदेशिकनी स्पर्शना.-द्विप्रदेशिक अने त्रिप्रदेशिकनी पर्शना:-त्रिप्रदेशिक अने परमाणुनी पर्शना:-त्रिप्रदेशिक अने द्विप्रदेशिकनी स्पर्शना:-त्रिप्रदेशिक अने त्रिप्रदेशिकनी रपर्शना.-ए प्रमाणे यावत्-अनंत प्रदेशिकनी स्पर्शना.-परमाणु पुगलगी कालतः स्थिति.-एक 'समय अने असंख्य काल.-सकेप एक प्रदेशावगाढ पुद्गलनी कालत: स्थिति.-एक समय अने आवलिकानों असंख्य भाग.-'. प्रमाणे यावत्-असंख्य प्रदेशावगाढ.-एक प्रदेशावगाढ निष्क५ पुद्गलनी कालतः स्थिति.-एक समय अने असंख्य काल. एक गुण काळा पुद्गलनी कालतः स्थिति.-एक समय भने असंख्य काल.-ए प्रमाणे यावत्-अनंत गुण का कुं पुद्गल.-वर्ण-गंध-रस-रपर्श.-सूक्ष्म परिणाम. यादर परिणाम.-शब्द परिणतः पुद्गलनी कालतः स्थिति.-एक समय...अने आवलिकानो : असंख्य भाग.-अशब्दपरिणत. पुद्गल.- परमाणु पुद्रनो अंतरकाल.-एक समय अने असंख्य काल.दिप्रदेशिक स्कंधनो अंतरकाल.- एक समय अने अनंत काल.-अनंत प्रदेशिका.-एक प्रदेशावाढ सय पुगलनो अंतरकाल.-"क समय अने असंख्य काल.-ए रीते असंख्य प्रदेशावगाढ.-एक प्रदेशावगाढ़ निष्कंप पुद्गलनो.. अंतरकाल. एक समय अने आवलिकानो असंख्य भाग.-ए रोते असंख्य प्रदेशावगाढ.-वर्णादिनो अंतरकाल.-शब्दपरिणत पुद्गलनो अंतरकाल -एक रामय अने असंख्पकाल-अशब्द परिणत पुनल.-द्रव्यस्थानायु-क्षेत्रस्थानायु-अवगाहनास्थानायु अने भावस्थानायुनी अल्प बहुता -नैरयिको आरंभी अने परिग्रही ?-हा.-असुरोको परिग्रह अंगे अरंभ-पृथिवीकायादिनो आरंभ.-शरीर-कर्म-भवन-देवो-देवीओ-मनुष्यो-पनुषणीओ-तिर्यचो-तिर्य चणी-आसन-शयग-मा-मान-उपकरण--विगेरे असुरोनो परिग्रह.बेद्रिया दिनो आरंभ अने परिग्रह.-पंचेंद्रियनो परिग्रह-टंक-कूट-वापी अने वन-विगेरे.-देवचुल-आश्रम-प्रपा-रतूप अने गोपुर विगेरे.-प्रासाद-गृहशरण-लेण-आपण-शंगाटक-त्रिक-तुष्क अने महापथ विगेरे.-शकट-रथ-यान अने मेना विगेरे.-लोढी-कडायुं अने कटछी विगेरे,-वानन्यतरो. ज्योतिषिको.-वैमानिको.-पांच हेतु अने पांच अहेतु.-हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे.
१. प्र०-परमाणुपोग्गले णं भंते ! एयति, वेयति; जाव- तं तं भाव परिणमति ?
१. 30-गोयमा । सिय एयति, वेयति, जाव-परिणमति; सिय णो एयति, जाव-णो. परिणमति.
१. प्र "हे भगवन् ! परमाणु पुद्गल कंपे, विशेष कंपे यावत्-ते ते भावे परिणमे?
१. उ०-हे गौतम ! कदाच कंपे, विशेष कापे यावत् परिणमे अने कदाच न को यावत्-न परिणमे.
१. मूलच्छाया:--परमाणुपुद्गलो. भगंव। एजते, वेप (व्येज.) तेभ्याक्त-तत भाव परिणराति ? गौतम ! स्यात् एजते, वेपते, यावतूपरिणमतिः स्याद् जो एजते, यावत्-नो परिणम तिः-अनु०
Jain Education international
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org