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शतक ५.-उद्देशक ६. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
२०५ गाहावइस्स णं भते! ताओ धणाओ कि आरंभिया किरिया कजइ ५ ? कइयस्स वा ताओ धणाओ किं आरंभिया किरिया कन्नड़ ५१ गोयमा! गाहावइस्प ताओ धगाओ आरंभिया ४, मिच्छादसणपत्तिया किरिया सिय कन्जइ, सिय नो कज्जइ. कइयस्स णं ताओ सवाओ पयणुईभवंति.' धने उपनीते धनप्रत्य पत्वात् तासां गृहपतेर्महत्यः, ऋयिकस्य तु प्रतनुकाः, धनस्य -तदानीम् अतदीपत्वात्, एवं च प्रथमसूत्रसमम् इदं चतुर्थम् , इत्येतदनुसारेण च सूत्रपुस्तकाऽक्षराणि अवगन्तव्य नि.
२. हमणां कर्मबंधनी क्रिया कही, हवे बीजी क्रियाओना विषयोने निरूपवा [ 'गाहावइस्स' इत्यादि.] सूत्रो कह छे, गृहपति एटले गृहपति. गृहवाळो-गृहस्थ [ 'मिच्छाइसणकिरिया सिय कजा' इत्यादि.] मिथ्या दर्शनना हेतुवाळी क्रिया कदाचित् थाय अने कदाचित् न थाय, ज़्यारे गृहपति मिथ्यादृष्टि होय त्यारे मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी क्रिया लागे अने ज्यारे गृहपति सम्यग्दृष्टि होय-मिथ्यादर्शनवाळो न होय-त्यारे मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया न लागे. हवे क्रियामा ज विशेष कहे छः [ ' अह' इत्यादि.] ' अथ ' ए शब्द पक्षांतरने सूचववा मूक्यो छे. [ से भंडे' ति] ते भांड [ ' अभिसमण्णागए ' त्ति ] गवेषण करतां मन्यु होय [ 'तो' ति] मळ्या पछी, [से 'त्ति ] भांड. ते घरधणिने, ए भांड मच्या पछी तुरत ज [ 'सव्वाओ' त्ति ] जेओनो संभव छे ते वधी क्रियाओ [ 'पयणुईभवंति' ति.] टुकी थाय छे, चोराएल मांडने गोतवानी वेळाए ते गृहस्थ विशेष प्रयत्नवाळो होवाथी ते क्रियाओ मोटी होय छे अने ज्यारे ते चोराएल करियाणुं हाथ आवे त्यारे ते गृहस्थ प्रयत्नथी अटकेलो होवाथी ते क्रियाओ टुंकी-ओछी-थाय छे. [ 'कइए' ] ग्राहक [ 'भंडं साइजेज' त्ति ] ग्राहक 'भांडने-करीयाणाने पोते खरीधुं छे' ए प्रमाणे सत्यकार-बार्नु आपीने स्वीकारे. [ 'अणुवणीर' ति] ज्यां सुधी खरीदनारने सोंप्यु नथी. [' कइयस्स णं ताओ सव्वाओ पयणुईभवंति ' त्ति ] करीया' अमाप्त होवाथी ते संबंधनी क्रियाओ ओछी होय छे, अने जेने त्यां करीयाj पङ छे एवा गृहस्थने तो, तेनु पोतानुं करीयागु होबाथी ते क्रियाओ मोटारूपमा होय छे, ज्यारे ते करी कj, खरीदनारने सोंपाय छे त्यार खरीदनारने ते क्रियाओ मोटारूपमां होय छे अने घरधणीने तो ओछी होय छे. नाहि सोल अने सोपेल एम बे प्रकारर्नु भांड होवाथी आबे सूत्र ते परत्वे कयां छे, ए प्रमाणे धन संबंधे पण वे सूत्र कठेवां, तेगा पहेलुं सूत्र आ प्रमाण छ:-"हे भगवन् ! करीयाणाने वेचनार गृहस्थनुं प्रथम सूत्र. करीयाj, कोइ खरीदनार खरीद करे अने तेनु ( मूल्यरूप ) न हजु न गळ्युं होय तो खरीद करनारने ते धनथी | आरंभिकी बगेरे कियाओं लागे अन ते करीयाणाना धणी गृहपतिने ते धनथी शुं आरंभिकी वगेरे क्रियाओ लागे?, हे गौतम ! ते धनथी ते खरीदनारने हेठली मोटा प्रमाणवाळी-चार क्रियाओ लागे अने मिथ्यादर्शन क्रिया भजनाबडे-लागे अने न पण लागे, अने करीयाणावाळा घरधणीने ते बधी क्रियाओ ओछा प्रमाणमा लागे." ज्यां सुधी धन सोपायुं नथी त्यां सुधी खरीद करनारनुं धन होबाथी ते क्रियाओ तेने मोटा रूपमा लागे अने ते धन, सोंपाया पहेलां वेचनार गृहपतिनुं न होवाथी तेने ते क्रियाओ ओछा प्रमाणमा लागे. ए प्रमाणे आ त्रीजु सूत्र बीजा सूत्रनी समान समजवु, माटे ज कहे छ:---[ ' एयं पि जहा भंडे उवणीए तहा नेयव्वं ' ति ] वीजा सूत्रनी साथे समपणे समजबु. चोथु सूत्र तो ए प्रमाणे भणः- "हे च सय. भगवन् ! करीयाणाने वेचता गृहस्थ- करीयाj कोइ खरीद करनार खरीदे अने धन पण उपनीत--सोपेलुं होय तो हे भगवन् ! ते धनथी ते करीयाणाबाळा गृहपतिने शुं आरंभिकी वगरे कियाओ लागे?, अने ते धनथी ते खरीद करनारने शुं आरंभिकी वगरे क्रियाओ लागे? हे गौतम ! गृहपतिने ते धनथी आरंभिकी वगेरे क्रियाओ लागे अने मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया लागे अने न पण लगे तथा ते धनधी खरीद करनारने ते बधी क्रियाओ ओछा प्रमाणमा लागे. कारण के, ते क्रियाओ धनहेतुक छे माटे धन सोंपाया वाद गृहपतिने मोटा प्रमाणमा लागे अने ते वखते -सोपाया पछी-धन, खरीदनारनुं न होवाथी तेने ते क्रियाओ ओछा प्रमागमा लागे, अने ए प्रमाणे प्रथम सूत्र-समान आ चतुर्थ सूत्र छे. अने ए अनुसारे सूत्र पुस्तकना अक्षरो अवगमवाना-जाणवाना-छे.
अग्निकाय.
९.प्र०--अंगणिकाए णं भंते ! अहणोज्जलिए समाणे म- ९. प्र०-हे भगवन् ! हमणा जगवेलो अग्निकाय, महाहाकम्मतराए चेव, महाकिरिय महासव-महावेदणतराए चेव भवइ, कर्मवाळो, महाक्रियावाळो, महाआश्रयवाळो, महावेदनावाळो, अहे णं समए समए वोकास जमाणे, वोक्कासि जमाणे चरिमकाल- होय छे, हवे ते अग्नि समये समये-क्षणे क्ष.गे-ओहो थतो होय,
भूए, मुम्मुरब्भूए, छारियभूए; तओ पच्छा बुझाता होय अने छल्ले क्षणे अंगाररूप थयो, मुभुररूप थयो, अप्पकम्मतराए चेव अप्पकिरिया-ऽऽसव-अप्पवेयणतराए चेत्र भस्मरूप थयो त्यार बाद ते अग्नि अल्पकर्मवाळो, अल्पक्रियावाको भवइ?
अल्पआश्रववाळो अने अल्पवेदनायाळो थाय ९. उ०--हंता, गोयमा ! अगणिकाए णं अहणुज्जलिए ९. उ०-हा, गौतम ! हमणा जगवेलो अग्निकाय० ते ज समाणे तं चेव.
कहे.
३. क्रियाऽधिकाराद् इदमाह:-' अगाण' इत्यादि. 'अहुणोजलिए 'त्ति अधुनोउज्वलितः-सद्यः प्रदीप्तः, 'महाकम्मतराए'
मूलच्छाया-अग्निकायो भगवन् ! अधुनोज्ज्वलितः सन् महाकर्मतरीय चैव, महाक्रिया-महाऽऽसव-महावेदनतराय चैव भवति; अथ स्यिय समयाव्यपध्यमाणः, व्यपध्य माणश्वरमकालसमये अङ्गारभूत, मुमुरभूतः, छारिक (भस्मीभूतः, ततः पथाद् अल्पकर्मतराय चैव, अल्पक्रिया--पाऽऽस्र अल्पवेिदनतराय चैव भवति ? हन्त, गौतम अनिकायोऽधुलोज्ज्वलितः सन् तचैव:-अनु०
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