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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ५.-उद्देशक ४.
भोप शना भिन्नताना कारणने लइने घणा भेदवाळी थएल-छठी अपभ्रंश भाषा " ते छ भाषामांनी मागधी भाषानुं अने प्राकृत भाषानु कांइक, कांहक
जेमां लक्षण छे ते अर्धमागधी' भाषा कड़वाय अर्थात् जे भाषामां थोडं घगुं मागवी भाषानुं निशान होय अने थोई घणुं प्राकृत भाषानुं निशान अर्धमागधी. होय.ते. अर्धमागधी' भाषा कहेवाय. आ प्रमागेनो अर्थ · अर्धमागधी '-' मागधीनुं अडधुं' ए प्रकारे ' अर्धमागधी ' शब्दनी व्युत्पत्ति उपरथी तरी आवे छे.
केवली अने छद्मस्थ विगेरे. २२.प्र.- केवली णं भंते !. अंतकरं वा, अंतिमसरीरियं २१, प्र० –हे. भगवन् ! केवली मनुष्य, अंतकरने वा वा जाणइ, पासई ?
चरमशरीरवाळाने जाणे, जूए ? २१. उ०--हंता, गोयमा ! जाणइ, पासइ.
२१. उ०—हा, गौतम ! जाणे अने जूए.
५. 'टु' ने वदले तु' पराय छे:-कुटुम्ब-कुतुंब.. ६. 'य' ने बदले 'रिय' वपराय छ:-भाया-भारियां. ७. 'न' ने बदले 'सिन' वपराय छे:--स्नान-सिनान, ८. '' ने बदले 'सट' वपराय छे:-कष्ट-कसट.
चलिका-पैशाची९. वर्गना त्रीजा अक्षरने बदले पेलो वपराय छे:-नगर-नकर. १०. वर्गना चोथा अक्षरने बदले बीजो वपराय छे:-मेघ-मेख, शौरसेनी भाषानुं खरूप आ प्रमाणे छ:
जे भाषा शूरसेन देशमा चालती होय ते शारसेनी कहेवाय. पूर्व समये शूरसेन देश की राजधानीनु नाम मधुरा हतु.. वतमान मथुरा अने तेनी आसपास बोलाती भाषाने 'व्रजभाषा' कहेवामां आवे छे. ए शौरसे नी भाषामा प्राकृत करता जे कांह खास मित्रता. छे ते आ के:
शौरसेनीमां१. अनादिमा रहेला 'त' ने बदले 'द' वपराय छ:-तात-ताद. २. एज प्रकारे 'थ'ने स्थाने 'घ' वपराय छ:-नाथ-नाध. ३. 'य' ने बदले 'प्य' वपराय छे:-सूर्य-सुय्य. मागधी विगेरे भाषाओना विशेष परिचय माटे श्रीहेमचंद्रजीन प्राकृत-व्याकरण जोवानी भलामण छे. अहीं तो मात्र खास खास विशेषता जजणावी.
१. श्रीहेमचंद्रजीना समयनी अपभ्रंश भाषानो नमुनो आ प्रमाणे छे:जस वयण विणिजिउ नं ससंकु अप्पाणु निसि हिं दंसह स-संकु, जसु नयणकंतिजियलजभरिग वणवासु पवनय नाइ हरिण.८ जसु सहहिं केसघण कसणवन्न नं छप्पय मुहपंकय पवन, भुवणिकवीरकंदप्पधणुह सुंदरिम विडंबहि जासु. भमुह. ९ जसु. अहर-हरियसोहरगसारु नं विद्दुम सेवइ जलहि खारु, जसु दंतपंति सुंदेरु रुंदु नहु सीओसहूं तु वि लइ कुंड. १० असणंगुलि पल्लव नहपसूण जसु सरलभुयाउ लयाउ नूग, घणपीणतुंगथणभारसत्तु जसु मज्झु तणुतणु नं पदत. ११
(कुमारपालप्रतिबधि 6-४४० वधू माटे जुओ श्री हेमचंद्रजीनुं आठमा अध्यायर्नु चोथु पादः-अनु. २. अर्धमागधीनुं स्वरूप आ प्रमाणे छे:. मागध्या अर्थम् '-अर्धमागधी-ए व्युत्पत्ति अवनागधी शब्दनी छे-ए व्युत्पत्तिथी बनतो अर्थागधी' शब्द एन स्पागे सूबते,छे के, जे भाषामा बराबर अडधी मागधी भाषा अने वरावर अडधी बीजी बीनी भाषाओ मिश्रित थरली होय ते.ज भाषा अर्धमागधी शब्दयी संबोवी शकाय. जो आपणे शब्दोनो हिसाब लगावीए तो. एम कल्ली शकाय के, जे भाषामा सो शयोमा पचास शब्दो तो मागधी भाषाना अने पचास शब्दो बीजी बोजी भाषाना-प्राकृत, पाली, शारसेनी अने पैशाची विगेरेना मिश्रित थएला होय ते ज भाषा 'अर्धमागधो' शब्दनो अर्थ धारण करी शके छे. • अर्धमागधी' ना खरूप विषे लखता आर्य श्रीजिनदास महत्तरजीए निशीथ चूर्णिमा ( लि. भ. पृ० ३५२ ) जणाव्यु छ के-“मंगहद्धविसयभा. सानिबद्ध अद्धमागह; अहह्वा अट्टारसदेसीभासाणि पतं अद्धमागधं" अधीत् मगधदेश नी अग्धी भाषामा निबंधाएल ते अर्धमागध; अनवा. अढार प्रकारनी देशी भाषामा नियत थएल ते अर्धमागध." ए विषे पोताना 'प्राकृतसवैख"मां महर्षि माकंडेयजी जणावे छे के-शौरसेन्या अदूरत्वाद् इयमेव अर्धमागधी" (पृ० १०३) मगधदेश अने शूरसेन देश पासे पासे होवाने लीधे मगधनी (मागधी) भाषाने शूरसेन देशनी भाषानो (शारसेनीनो) संपर्क थएल होवाथी मागधी भाषाने ज अर्धमागधी समजवानी छे. शारसेनी भाषामा प्राकृतर्नु अने पाली केटलुक मिश्रण रहेतुल) होवाथी तेना संपर्कवाळी मागधीभाषामां पण ते मिश्रण संभवे छे. एटले 'मागध्या अर्धम्' वाळो व्युत्पत्तिने जरा पण आंच आवती होय तेम जणातुं नथी.
___ अहीं, जे देवोनी पण अर्धमागधी भाषा होवार्नु जणाj छे ते मात्र वर्णन वा भाषा-प्रशंसा ज लागे छे. अथवा तो एम लागे छे के, जे संप्रदायने जे चीज पूज्य के प्रिय होय ते चीज, तेओ देवोने पण पूज्य के प्रिय होवानुं लख्या सिवाय रहेला नथी-जेम 'राम' ने जैनो जैन कहे छे, बौद्धो बौद्ध कहे छे भने वैदिको वैदिक कहे छे-एज रीते इन्द्र' विषे आगळ जणावाइ गयुं छे. पांडबोने माटे पण एम ज छे. शरुआतमा जनना मूळ प्रथो ए भाषामा लखाया हशे एथी जैनो ए भाषाने विशेष पूज्य अने देवभाषा कहेवा लाग्या तेम वैदिकोने संस्कृतभाषा प्रिय होवाथो तेओए तेने (संस्कृतने) देवभाषा कही अने बौद्धोए पण एम ज कह्यु-एटले आवा उल्लेखोमा मात्र सांप्रदायिकता सिवाय बीजो कशो भास आवतो लागतो नथीः-अनु०
मूलच्छाया:-केवली भगवन् ! अन्तकर वा, अन्तिमशरीरकं वा जानाति, पश्यति । इन्त, गौतम । जानाति, पश्यतिः-अनुक
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